Charbagh Railway Station History: चारबाग स्टेशन से जुड़े कुछ रहस्यमय, रोचक बातें...

Charbagh Railway Station History: लखनऊ अपनी संस्कृति, स्वाद और ऐतिहासिक विरासत सहित कई अन्य चीजों के लिए जाना जाता है। लेकिन अगर खास विरासत की बात करें तो चारबाग रेलवे स्टेशन भी उन चंद ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है जो अपने आप में कई रोचक तथ्य समेटे हुए है।

Update: 2023-05-18 07:51 GMT
Charbagh Railway Station History

Charbagh Railway Station History: दूसरे शहर से आने वाले व्यक्ति के कदम जैसे ही चारबाग रेलवे स्टेशन पर पड़ते हैं, यहां की खूबसूरती और भव्यता उसे अपना दीवाना बना लेती है। देश के सबसे खूबसूरत रेलवे स्टेशनों में से एक चारबाग ऊपर से देखने पर शतरंज की बिसात जैसा दिखता है। तो चलिए कुछ इतिहासकारों से बात करते हैं और आपको चारबाग रेलवे स्टेशन के इतिहास और खूबियों से रूबरू करवाते हैं...इतिहासकार योगेश प्रवीण का कहना है कि, ऐशबाग की तरह नवाब आसफ-उद-दौला का पसंदीदा बाग चारबाग भी शहर के खूबसूरत बागों में से एक था। चौपड़ के समान चार नहरें बिछाकर चारों कोनों पर चार उद्यान बनाए गए है। ऐसे उद्यानों को फारसी भाषा में चाहर बाग कहा जाता है। यहीं पर चाहर बाग बाद में चारबाग में बदल गया।

स्टेशन की नींव अंग्रेजों ने रखी थी

इतिहासकार रोशन तकी बताते हैं कि चारबाग की नींव लखनऊ के मुनव्वर बाग के उत्तर में रखी गई थी। जब नवाबी दौर खत्म हुआ तो इस बाग की खूबसूरती भी फीकी पड़ गई। इसी समय ब्रिटिश सरकार ने बड़ी लाइन पर एक शानदार स्टेशन की योजना बनाई। मोहम्मद बाग और आलमबाग के बीच का यह क्षेत्र ब्रिटिश अधिकारियों को बहुत पसंद आया। यह वह दौर था जब लखनऊ में ऐशबाग का रेलवे स्टेशन था। चारबाग और चार महल के नवाबों को मुआवजे के तौर पर मौलवीगंज और पुरानी इमली क्षेत्र देकर यहां पटरियां बिछाई गईं। बिशप जॉर्ज हर्बर्ट ने 21 मार्च 1914 को इसकी आधारशिला रखी।

70 लाख थी कीमत

उस काल के प्रसिद्ध वास्तुकार जैकब ने इस भवन की योजना तैयार की थी। उस समय चारबाग स्टेशन के निर्माण में 70 लाख रुपए खर्च किए गए थे। राजपूत शैली में बने इस भवन में निर्माण कला के दो कौशल दिखाई देते हैं। ऊपर से देखने पर सबसे पहले इस इमारत के बड़े और छोटे छतरी के आकार के गुंबद एक साथ शतरंज की बिसात का एक पैटर्न पेश करते हैं।

ट्रेन की आवाज बाहर नहीं आती

चारबाग स्टेशन अपनी खूबियों की वजह से देश के खास स्टेशनों में गिना जाता है, इनमें से एक यह भी है कि यहां ट्रेन की आवाज नहीं निकलती है। योगेश बताते हैं कि प्लेटफॉर्म पर ट्रेन कितनी भी शोर क्यों न कर ले, उसकी आवाज स्टेशन के बाहर नहीं आती।

गांधी-नेहरू की पहली मुलाकात यहीं हुई थी

स्वतंत्र भारत देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की गांधी जी से पहली मुलाकात लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर हुई थी। महात्मा गांधी 26 दिसंबर 1916 को पहली बार लखनऊ आए थे। मौका था कांग्रेस के अधिवेशन का, जिसमें वे पांच दिन शहर में रहे। करीब 20 मिनट की मुलाकात में पंडितजी बापू के विचारों से काफी प्रभावित हुए। जवाहरलाल नेहरू अपने पिता मोती लाल नेहरू के साथ आए थे। इस मुलाकात का जिक्र नेहरू जी ने अपनी आत्मकथा में भी किया है। जिस स्थान पर गांधी नेहरू मिले थे, वह अब स्टेशन का पार्किंग स्थल है। इस मिलन की निशानी के तौर पर उस जगह पर एक पत्थर भी लगाया गया है।

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