Khannath Unique Tradition: कहानी एक अनोखे गाँव की, 500 साल पुरानी शादियों की परम्परा

Khannath Village Unique Tradition: यह गाँव कुर्मियों द्वारा बसाया गया है ।जिसमें आज भी सबसे ज़्यादा कुर्मी परिवार ही रहते हैं ।खन्नाथ गांव शहडोल जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर है ।यहाँ सारे त्योहार एक साथ मनाए जाते हैं ।

Update:2023-08-26 16:29 IST
Khannath Village Unique Tradition (photo: social media )

Khannath Village Unique Tradition: मध्यप्रदेश के शहडोल ज़िले में हो रही शादियाँ आपको हैरान कर देंगी।हैरानी के साथ साथ आपको अच्छा अनुभव भी होगा।ये शादियाँ शहडोल जिले के खन्नाथ गांव में हो रही है।इन शादियों की परम्परा 500 साल पुरानी है जो अभी भी जीवित है ।

यह गाँव कुर्मियों द्वारा बसाया गया है ।जिसमें आज भी सबसे ज़्यादा कुर्मी परिवार ही रहते हैं ।खन्नाथ गांव शहडोल जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर है ।यहाँ सारे त्योहार एक साथ मनाए जाते हैं ।सबसे हैरानी की बात ये है कि यह पूरा गाँव ही एक दूसरे के रिशेतदार हैं ।यहाँ रहने वाला हर व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति से कम से कम तीन रिश्तों में जुड़ा है।

यहाँ के पूर्वज की बनायी गयी परम्परा आज भी चल रही है ।यहाँ के लोग किसी और समुदाय तो क्या गाँव के बाहर भी शादी नहीं करते हैं ।यह गाँव चार हज़ार से ज़्यादा आबादी वाला है , जिसमें 60 प्रतिशत पटेल या कुर्मी परिवार ही रहते हैं ।इस गाँव के आस पास अन्य आठ और गाँव भी हैं ।जहां पटेल समुदाय की लगभग पूरी रिश्तेदारी है। इनमें बोडरी, पिपरिया, खैरहा, नौगांव, चौराडीह, कंचनपुर, बंडी और नदना शामिल है। गांव के बाहर यदि कुछ शादियां होती भी हैं तो इन्हीं गांव से बारात आएगी या जाएगी।

गांव में होने वाली शादियों की संख्या 500 के पार

ग्रामीणों के अनुसार गांव की गांव में होने वाली शादियों की संख्या 500 के पार जा चुकी हैं।जिस कारण आज पूरा गांव एक-दूसरे का रिश्तेदार बन गया है।सबसे बडी बात यहाँ पर युवक युवतियों को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार है ।और ऐसा नहीं है कि गांव में ही शादी करने के कारण उनके ऊपर बहुत बंदिशें लगा दी हैं। अगर कोई अपना जोड़ा चुनता है तो गांव के लोग उसकी भावना को समझते हुए उसकी शादी कराते हैं।वे इसकी जानकारी अपने परिजन को देते हैं, उसके बाद परिजन कुल (कुनबा/गोत्र) इत्यादि देखकर उनकी शादी की तैयारी शुरू कर देते हैं। गांव में हर साल 4 से 5 शादी होती है। जिसमें बारात एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले में निकलती है।

शादी भी हो जाती है और इस समुदाय में दहेज की भी कोई प्रथा नहीं है ।पटेल समुदाय आज भी दहेज के खिलाफ है। यहां गांव की शादी गांव में बिना दहेज के ही सदियों से होती चली आ रही है। 51 रुपए में तिलक की रस्म अदा कर ली जाती है।जब लड़का और लड़की एक-दूसरे को पसंद कर लेते हैं । तो दोनों पक्ष एक-दूसरे को अपने-अपने घर भोज के लिए आमंत्रित करते हैं। भोज के बाद एक-दूसरे को नेग देने की भी परंपरा है। इसके बाद रिश्ता पक्का हो जाता है ।

दोनों पक्ष एक-दूसरे का हाथ बंटाते हैं

थोड़ी ही दूर में शादी होने के कारण कई फायदे होते हैं। किसी भी प्रकार के त्योहार, कार्यक्रम, संकट के समय, दुख में वो एक-दूसरे के साथ होते हैं। बात खेती की हो या फिर मजदूरी की दोनों पक्ष एक-दूसरे का हाथ बंटाने में परहेज नहीं करता है। यदि किसी प्रकार की कोई आर्थिक समस्या भी आती है तो एक पक्ष दूसरे पक्ष का खुलकर सहयोग करता है।

यहाँ तक कि यह परंपरा 500 साल पुरानी है फिर भी इसमें अभी तक एक भी तलाक का केस नहीं आया है।यदि किसी कारणवश दंपती के रिश्तों में खटास आती भी है या कोई हादसा हो गया तो सामाजिक बैठक कर उसका फिर से नया रिश्ता बना दिया जाता है।

इस तरह की शादी होने का एक फ़ायदा और भी है ।गांव की शादी गांव के ही दूसरे मोहल्ले में होने से कम खर्च में शादी हो जाती है। बारात पैदल ही एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले चली जाती है, रात रुकने के लिए कोई अतिरिक्त व्यवस्था नहीं करना पड़ता है।केटरर , गाना ,बजाना दोनों तरफ़ से हो जाता है ।गाँव में सभी रिश्तेदार हैं तो कभी भी किसी की शादी में रुकावट नहीं आती है , सभी लोग सहयोग भावना से शादी में योगदान देते हैं ।इसी वजह से भी इन शादियों को बल मिल रहा है ।

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