Gujarat Rani Ki Vav: इस बावड़ी के अंदर है सुरंग

Gujarat Rani Ki Vav: जिस बावड़ी की बात की जा रही है वह गुजरात के सबसे पुराने और बेहतरीन बावड़ियों में से एक है। 100 रुपय का नया नोट आप देखते हैं उसमें इसी बावड़ी का चित्र है ।

Written By :  Akshita
Update: 2023-10-02 04:45 GMT

Rani Ki Vav (फोटो: सोशल मीडिया )

Gujarat Rani Ki Vav: बावड़ियों का नाम आपने सुना होगा ।जिसे पुराने जमाने में जल का एक प्रमुख स्त्रोत माना जाता था ।यह राजा रानी के द्वारा बनवायी जाती थी।इसकी बनावट कुएँ के समान होती है ,पर यह सीढ़ीदार कुआं होता है ।या फिर बावड़ी उल्टे मंदिर की तरह देखने में लगती है ।पुराने जमाने में राजा-महाराजा अक्सर अपने राज्य में जगह-जगह कुआं खुदवाते रहते थे, ताकि पानी की कमी न हो।

जिस बावड़ी की बात की जा रही है वह गुजरात के सबसे पुराने और बेहतरीन बावड़ियों में से एक है।100 रुपय का नया नोट आप देखते हैं उसमें इसी बावड़ी का चित्र है ।आज भी आप कई कुओं को देखते हैं ,जो सैकड़ों साल पुराने हैं और कुछ तो हजार साल भी। आज हम ऐसी ही बावड़ी के बारे में बताएँगे जिसे 'रानी की बावड़ी' कहा जाता है। 'रानी की बावड़ी' 900 साल से भी ज्यादा पुरानी है। इस बावड़ी का निर्माण 1063 ईस्वी में सोलंकी राजवंश के राजा भीमदेव प्रथम की स्मृति में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने करवाया था।रानी उदयमति जूनागढ़ के चूड़ासमा शासक रा' खेंगार की पुत्री थीं। यह वाव 64 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा और 27 मीटर गहरा है।यह अनोखे तरह की बावड़ी है ।इस बावड़ी के अंदर भगवान के स्वरूप की नक्काशियां की गयी हैं ।इसमें भगवान राम, वामन, नरसिम्हा, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं। यह बावड़ी सात मंज़िला है ।इसकी वास्तु शैली मारू-गुर्जर शैली से प्रेरित है ।


कहा जाता है कि यह करीब सात शताब्दी तक सरस्वती नदी के लापता होने के बाद गाद में दबी हुई थी। जिसे भारतीय पुरातत्व विभाग ने खोजा था और साफ-सफाई करवाई।अब यह टुरिस्ट प्लेस के रूप जाना जाता है ।यहां बड़ी संख्या में लोग घूमने के लिए भी आते हैं। इस बावड़ी की सबसे बडी बात और अनोखी बात यह है कि बावड़ी के अंदर करीब 30 किलोमीटर लंबी सुरंग बनी हुई है। यह सुरंग पाटण के सिद्धपुर में जाकर खुलती है।


खुफिया सुरंग का उपयोग सुरक्षा के लिए  

ऐसा माना जाता है कि पहले इस खुफिया सुरंग का उपयोग सुरक्षा की दृष्टि से किया जाता था।राजा और उसका परिवार युद्ध या फिर किसी कठिन परिस्थिति में इन बावड़ियों में स्तिथ सुरंग का इस्तेमाल करते थे। फिलहाल अभी तो यह सुरंग बंद है, पूरे में कीचड़ भरा हुआ है। इस बावड़ी को साल 2014 में यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल घोषित किया था।


भारत में कई ऐसी इमारतें हैं जिन्हें राजाओं ने अपनी पत्नी के याद में बनवाया है पर ये बावड़ी इन सबसे अलग है क्योंकि इसे रानी उदयमती ने अपने पति भीम राव के याद में बनवाया था ।इस बावड़ी की एक ख़ासियत और यह भी है कि लगभग 5 दशक पहले, बावड़ी में औषधीय पौधे और संग्रहीत पानी का उपयोग वायरल बुखार और अन्य बीमारियों को ठीक करने में किया जाता था।यह गुजरात के सबसे पुराने और बेहतरीन बावड़ियों में से एक है।

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