दुनिया की चिंता है एवरेस्ट पर 'काला पत्थर', फिर भी बांधी जाती हैं प्रार्थना पताकाएं

Update:2016-10-06 13:48 IST

Govind Pant Raju

लखनऊ: कहते हैं कि कुछ पल इस कदर यादगार बन जाते हैं कि उन्हें भूलना नामुमकिन होता है और शायद मेरा मेरे दोस्तों के साथ एवरेस्ट का यह टूर वाकई दिल में बस चुका था। अभी लौटने का रास्ता तो हमने तय ही नहीं किया था कि यादें मन में हिलोरे खाने लगी थी। एवरेस्ट यात्रा का एक-एक पल रगों में रोमांच भरने वाला था। खैर आइए बताते हैं आपको आगे की यात्रा के बारे में...

गोरखशेप से एवरेस्ट के बीच का रास्ता हमें जाते समय जितना लंबा लगा था, वापस आते वक्त वह उतना ही छोटा लगने लगा था। पहाड़ों में अक्सर चढ़ते वक्त दूरियां ज्यादा लंबी लगती हैं। इसका एक कारण तो ऊंचाई का बढ़ते जाना और सांस लेने में होने वाली दिक्कत है, मगर दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक होता है। चढ़ते समय लक्ष्य तय तो होता है, लेकिन वहां पहुंचने में लगने वाला वक्त और परिस्थितियां तय नहीं होतीं। जबकि वापस लौटते वक्त ज्यादातर चीजें तय होती हैं।

(राइटर दुनिया के पहले जर्नलिस्ट हैं, जो अंटार्कटिका मिशन में शामिल हुए थे और उन्होंने वहां से रिपोर्टिंग की थी। )

फिर लक्ष्य हासिल कर लेने का संतोष भी अतिरिक्त जोश पैदा कर देता है। लेकिन अनेक बार यही जोश दुर्घटनाओं की वजह बन जाता है। इस जोश के कारण पर्वतारोही थोड़ा असावधान हो जाता है और पहाड़ों में तो यह कहा ही जाता है कि ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’। पर्वतारोहण के मामले में आंकड़े भी बताते हैं कि शिखर से वापस लौटते वक्त दुर्घटनाएं अधिक होती हैं।

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एक लंबी रिज पार कर हम जब अपेक्षाकृत एक खुले इलाके में पहुंचे तो हमें अहसास हुआ कि इस बिंदु के बाद एवरेस्ट बेस कैंप और खुम्भू ग्लेशियर का इलाका हमारी नजरों से ओझल हो जाएगा। अब हमारे सामने कई घाटियों के पार दूर गोरखशेप का पड़ाव था और था, उसके ऊपर का काला सा पहाड़ी टीला यानी काला पत्थर। हमें गोरखशेप से काला पत्थर जाना था।

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काला पत्थर 5644 मीटर ऊंचाई वाला एक पथरीला सा टीला है। दूर से देखने पर यह काला दिखता है, इसीलिए इसे काला पत्थर नाम मिला है। हालांकि साल से 6-7 महीने यह बर्फ से ढका रहता है। मगर अप्रैल से सितंबर के बीच यह एवरेस्ट आने वाले पर्वतारोहियों और घुमक्कड़ों के स्वागत में बर्फ विहीन काला सा पहाड़ बन जाता है।

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इसकी खूबी यह है कि यहां से एवरेस्ट शिखर और खुम्भू आइसफॉल तथा खुम्भू ग्लेशियर दृश्य बहुत ही सुंदर दिखता है। बहुत से लोग यहां से सूर्यास्त और सूर्योदय का नजारा देखने के लिए रात भर काला पत्थर में रूके रहते हैं। चूंकि एवरेस्ट में सूर्यास्त काफी देर में और सूर्योदय काफी पहले हो जाता है, इसलिए शाम 6 बजे से रात 8 बजे तक और प्रातः 3:30 से 4:50 के बीच क्रमशः एवरेस्ट का सूर्यास्त और सूर्योदय देखने के लिए काला पत्थर में लोगों की भीड़ मौजूद रहती है।

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काला पत्थर पुमोरी शिखर की दक्षिणी रिज के साथ जुड़ा है और कभी-कभार पुमोरी आरोहण के लिए पर्वतारोही काला पत्थर की ओर से भी जाते हैं। काला पत्थर शिखर छोटी-बड़ी चट्टानों के टुकड़ों से बना है और मुख्य शिखर जहां पर प्रेयर फ्लेग्स (प्रार्थना पताकाएं) बांधी गई हैं। वह आस-पास के मिट्टी वाले इलाके से 10-15 मीटर ही ऊंचा है।

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5,164 मीटर ऊंचे गोरखशेप से काला पत्थर तक चढ़ने में सामान्यतः दो-ढाई घंटे लगते हैं। काला पत्थर के सबसे ऊंचे बिंदु को पहले 5,550 मीटर के आस-पास की ऊंचाई वाला माना जाता था, लेकिन दिसंबर 2006 में पोर्ट लैण्ड विश्वविद्यालय की टीम ने जीपीएस पद्धति से इसकी ऊंचाई 5645 मीटर नापी।

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इसके बाद से इसी को अधिकृत ऊंचाई मान लिया गया। काला पत्थर से नूप्ल्से, एवरेस्ट और लोत्से का विहंगम दृश्य दिखता है। यह एक ऐसा स्थान है, जहां तक पहुंचने में अधिक परेशानियां भी नहीं होतीं और यहां से एवरेस्ट शिखर से लेकर एवरेस्ट बेस कैंप तक का इलाका साफ-साफ दिखाई देता है। चूंकि बेस कैम्प से एवरेस्ट क्षेत्र का ज्यादातर भाग नहीं दिखाई देता, इसलिए बहुत से पर्वतारोही एवरेस्ट के विहगंम दर्शनों के लिए काला पत्थर जाना अधिक पसंद करते हैं।

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एवरेस्ट बेस कैंप और शिखर समूह की ज्यादातर बेहतरीन तस्वीरें यहीं से खींची गई हैं। आज तो फोटोग्राफी के लिए एक से एक बेहतरीन कैमरे आसानी से उपलब्ध हैं और फोटोग्राफी बहुत आसान हो गई है। मगर बाॅक्स कैमरों के दिनों में भी एवरेस्ट की बहुत सी ब्लेक एण्ड व्हाइट तस्वीरें काला पत्थर से ही खींची गई थीं।

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जिस तरह स्थानीय लोग 7,161 मीटर ऊंचे पुमोरी शिखर को जार्ज मैलोरी के दिए नाम ‘अविवाहित युवती’ से भी जानते हैं, उसी तक अनेक पर्वतारोही काला पत्थर को ‘एवरेस्ट की बेटी’ कह कर भी पुकारते हैं।

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इस नाम के पीछे कारण चाहे जो भी हो मगर काला पत्थर से एवरेस्ट की सुंदरता निहारने में मन में एक तरह की उदासी जरूर भर जाती है। शायद एक बेटी अपने पिता को देख कर उस तक पहुंचने की दुश्वारियों को जिस तरह महसूस करती होगी वही भाव इस नामकरण के पीछे भी रहा होगा शायद। काला पत्थर को निहारते हुए राजेंद्र को काला पत्थर का आकर्षण कविता लिखने को प्रेरित कर कहा था और ताशी बार-बार दौड़ कर ऊपर चढ़ने का प्रयास कर रहा था। अरूण नवांग के साथ तस्वीरें खींचने में व्यस्त था और मैं यह सोच रहा था कि एवरेस्ट के सामने यह छोटा सा टीला पूरी दुनिया को जलवायु परिवर्तन के लिए कितनी बड़ी चेतावनी दे चुका था।

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दिसंबर 2009 में नेपाली प्रधान मंत्री माधव कुमार नेपाल ने काला पत्थर के नीचे ही नेपाली केबीनेट की एक प्रतीकात्मक बैठक कर पूरी दुनिया को जलवायु परिवर्तन के खतरों के प्रति आगाह किया था। वस्तुतः एवरेस्ट की बर्फ के लिए भी ग्लोबल वार्मिंग को एक बड़ी समस्या माना जा रहा है क्योंकि एवरेस्ट आरोहण करने वाले पर्वतारोहियों को वहां कई बार आकस्मिक बदलावों का सामना करना पड़ता है। हवा में मौजूद कार्बन कणों को एवरेस्ट क्षेत्र की बर्फ के पिघलने की गति तेज करने की एक वजह माना जा रहा है। इसलिए काला पत्थर हमारे लिए एवरेस्ट को निहारने की एक बेहतरीन जगह ही नहीं था बल्कि एवरेस्ट के अस्तित्व और उसकी सुंदरता को बरकरार रखने की वैश्विक चिंता का एक प्रतीक भी था।

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काला पत्थर को हम इसी रूप में याद रखना चाहते हैं। सफेद हिमालय से घिरा हुआ काला पहाड़, जो एक बड़ी चेतावनी का भी प्रतीक है। काली पत्थर की तस्वीरों को हम एक विशेष स्मृति के रूप में अपने साथ ले जा रहे थे और यह हम सबको एक अलग तरह का अहसास दे रहा था। हम काला पत्थर से एवरेस्ट पर एक और सूर्योदय देखने की उम्मीद में बेहद रोमांचित हो रहे थे और इसी उत्साह में हम तेजी से गोरखशेप की ओर बढ़ते जा रहे थे।

गोविंद पंत राजू

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