जयपुर:हिमाचल प्रदेश की दिलकश खूबसूरती कुछ प्रसिद्ध जगहों तक सीमित नहीं है। यहां कितने ही आकर्षक स्थल हैं। उन्ही में नाहन एक छोटा सुन्दर शहर है। खासकर यहां के तालाब ।नाहन को तालाबों का शहर भी कहा जा सकता है। यहां कालिस्थान तालाब, पक्का तालाब व रानी ताल के अलावा ग्रामीण इलाके में बावड़ियां भी हैं। बाज़ार के कुशल खिलाड़ियों की कोशिश को असफल कर शहर के पर्यावरण प्रेमियों ने इन जल स्त्रोतों को जीवित रखने की कोशिश की। तालाब ज़मीन में नमी बरकरार रखते हुए सामाजिक उपयोगिता के साथ, पारिस्थितिकीय संतुलन बनाने रखने में भूमिका निभा रहे हैं।
पुराना छोटा शहर संकरी गलियां बाज़ार शिवालिक पहाड़ियों पर सन 1621 में बसे नाहन का श्रेय तीन व्यक्तियों को जाता है। एक योद्धा राजकुमार, पालतू शेर के साथ रहने वाले साधु और अपनी लूट यहां छिपाने वाला एक कुख्यात लुटेरा। 933 मीटर पर बसे नाहन को कभी हिमाचल का बंगलौर कहा जाता था। कई एतिहासिक इमारतें लिए पर्यावरणीय बदलाव के बाद नाहन उम्दा मौसम के कारण आज भी हिमाचल के चुने हुए शहरों में शुमार है।
यहां की सड़कों और गलियों का जुड़ाव किसी को गुम नहीं होने देता। यहां गलियां संकरी हैं, घरों की छतें ऊपर नीचे हैं तभी तो एक छत से दूसरी पर आराम से जाया जा सकता है। सुबह अनगिनत स्थानीय लोग व पर्यटक विला राऊण्ड स्थित जौगर्स पार्क व छतरी के पास उगे चीड़ के स्वास्थ्य वर्धक वृक्षों के सानिध्य में सैर का मज़ा लेते हैं। प्रदेश के सबसे पुराने बागों में से एक, 129 वर्षीय रानीताल बाग भी सैर के लिए लाजवाब है। शहर में बरसात का पानी रुकता नहीं और घूमती धुंध, ठहरते खिसकते बादल आवारगी को रोमांस से लबरेज कर देते हैं। रंग बदलते नयनाभिराम सूर्यास्त शाम को सुहानी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। शाम होते होते चौगान में चहल पहल जवां हो जाती है।
नाहन में अनेक पुराने मंदिर, मस्जिद गुरुद्वारा व चर्च हैं। रानीताल में विशिष्ट शैली में निर्मित शिवालय हैं। यहां लगने वाला वामन द्वादशी व छड़ियों का प्रसिद्ध मेला स्थानीय ही नहीं आसपास के क्षेत्रों से हज़ारों को बुलाते हैं। शहर के सभी उत्सवों में सभी धर्मों के लोग आपसी सद्भाव बढ़ाने के लिए शामिल होते हैं। यहां का मुहर्रम विरला आयोजन है। अन्यत्र जगहों पर यह आयोजन शिया सम्प्रदाय द्वारा होता है मगर नाहन में यह सुन्नी सम्प्रदाय द्वारा आयोजित किया जाता है। ऐसा यहां राजा के ज़माने से हो रहा है।
इस शहर को चंद घंटों में पैदल घूमा जा सकता है। सरकार द्वारा कोई स्थानीय ट्रांसपोर्ट उपलब्ध नहीं है यहां इसलिए पैदल चलना ही पड़ता है। शहर के पुराने लोग आज भी पैदल ही चलते हैं जिससे उनकी सेहत ठीक रहती है। यहां के पुराने बाज़ार में लगे कोबल्ड पत्थर, ब्रसेल व प्रेग की गलियों की याद दिलाते थे, इस शहर में और आसपास साल के लोहे जैसे ठोस वृक्ष, चीड़ व अन्य वृक्षों के अलावा जड़ी बूटियां उपलब्ध हैं।
यहां आकर सहज, शांत व आराम महसूस करेंगे। नाहन, चंडीगढ़ से 90 किलोमीटर है यह रास्ता दोसड़का पहुंचाएगा जहां से चढ़ाई वाले कुछ मोड़ काटकर, ऊंट जैसी पहाड़ी पर बसा शहर मिलेगा। देहरादून से भी यह 90 किमी है, पाव्ंटा साहिब होकर आ सकते हैं। यहां से ड्राइव, काफी दूर तक नदी के किनारे, साल के खूबसूरत दरख्तों के साथ साथ है। यह रास्ता, वृक्ष आपको बार बार रोकेंगे जहां कैमरा अपना रोल बखूबी निभाएगा। खजूरना पुल पर कुछ देर रुक कर दोसड़का से वही रास्ता मिलेगा। शिमला से नाहन 135 किमी दूर है।