SURROGACY: सर्वे से सामने आया महिलाओं के शोषण का काला सच

Update: 2016-08-24 22:05 GMT

किसा नकवी

लखनऊः चंद रुपयों के लिए तमाम दंपतियों के सूने आंगन को किलकारी से भरने के लिए किराए पर कोख देने (सरोगेसी) वाली महिलाओं की कथा कम करुण नहीं है। ये काम करने वाली महिलाएं खुद शोषण का शिकार हैं। एक सर्वे से पता चला है कि दिल्ली-मुंबई जैसे बड़े शहरों में पति के दबाव में उन्होंने अपनी कोख किराए पर दी। कुछ और चौंकाने वाले खुलासे भी इस सर्वे में हुए हैं।

सामने आये चौकाने वाले खुलासे

सेंटर फॉर सोशल रिसर्च ने विमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट मिनिस्ट्री के साथ मिलकर दिल्ली और मुंबई में करीब 100 सरोगेट मदर्स पर एक सर्वे किया। इस सर्वे में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए। मुंबई में 73 फीसदी और दिल्ली में 52 फीसदी महिलाओं का कहना था कि वे पति के दबाव में सरोगेट मदर बनीं। यही नहीं, मुंबई की 92 फीसदी और दिल्ली की 60 फीसदी महिलाओं को आईवीएफ क्लीनिक के साथ हुए कॉन्ट्रैक्ट की जानकारी तक नहीं थी।

लखनऊ में भी सरोगेसी का गोरखधंधा

दिल्ली और मुंबई ही नहीं, किराए की कोख का यह खेल इंदौर, आगरा और लखनऊ में भी धड़ल्ले से चल रहा है। बड़े शहरों के अस्पताल की बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों के अंदर कई ऐसी मासूम महिलाएं होती हैं, जिन्हें यह तक नहीं पता कि उनकी कोख का सौदा हो चुका है। कई अस्पतालों में सरोगेट मदर्स के लिए सरोगेट हॉउस बने होते हैं। इनमें महिलाएं बच्चे के दुनिया में आने तक अपनी 9 महीने की जिंदगी परिवार से अलग गुजारती हैं।

सरोगेट मदर्स को मिलते हैं चंद रुपए

आईवीएफ क्लीनिक सरोगेसी के लिए 30 से 40 लाख रुपये वसूल रहे हैं, लेकिन सरोगेट मदर के हिस्से 3 से 4 लाख रुपए ही आते हैं। इनमें से कई सरोगेट मदर्स ने पूरा भुगतान न होने की शिकायत भी की। ज्यादातर मामलों में पाया गया कि महिलाओं को वादे के मुताबिक न तो सही खान-पान दिया गया और ना ही उनकी सेहत की अच्छी तरह से देखभाल की गई।

मानक के विपरीत काम करते हैं क्लीनिक

शहरों में फर्टिलिटी क्लीनिक चलाने वाले डॉक्टर्स से जब newstrack.com ने बात की तो उन्होंने कहा कि सरकार ने विदेशियों के लिए सरोगेसी बैन की है, जबकि देश में निसंतान दंपतियों के लिए जो मानक तय किए हैं, फर्टिलिटी क्लीनिक उन्हीं के तहत काम करते है। हकीकत ये है कि हालात ठीक इसके उलट हैं।

होता है सेक्स डिटरमिनेशन टेस्ट

सरोगेट मदर पर हुए एक और सर्वे से साबित होता है कि इस दौरान सेक्स डिटरमिनेशन टेस्ट भी हुए। यही वजह है कि सरोगेसी के तहत ज्यादातर महिलाओं ने लड़कों को ही जन्म दिया। यही नहीं, जिन महिलाओं का पहली बार में गर्भपात हो गया, उन्हें न तो किसी तरह का भुगतान किया गया और न ही उनकी दवा और चेकअप पर खर्च किया गया।

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