आगरा: सात समंदर पार से लोग ताजमहल के दीदार के लिए चले आते हैं। हर दिन यहां हजारों की तादाद में पर्यटक आते रहते हैं। लव बर्डस और न्यू कपल जिंदगी में एक बार ताज की पनाह में जरूर आना चाहते हैं। ताज से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से हैं, जिन्हें जानकर आप हैरान रह जाएंगे।
दो बार ढका गया था ताज
दूसरे विश्व युद्ध के समय ताज महल को खतरा पैदा हो गया था। उस वक्त अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य को खुफिया सूचना मिली थी कि जापान और जर्मनी ताज महल पर बम गिराने वाले हैं। इसके बाद तुरंत ताज महल पर बांस और बल्लियों का आवरण चढ़ा दिया गया था। इसकी तस्वीरें भी ली गईं थीं। ब्रिटेन ने अमेरिकी सेना के सहयोग से ताज महल को बांस और बल्लियों से पूरी तरह ढकवा दिया था।
भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान साल 1971 में जब ताजमहल पर खतरा मंडराने लगा था। उस वक्त उसको हरे कपड़े से ढका गया था ताकि पाकिस्तानी विमानों को ताजमहल की जगह हरियाली नजर आए। ये खतरा इसलिए भी था कि पाकिस्तानी विमानों ने ताजमहल से करीब 10 किमी. दूर एयरफोर्स स्टेशन पर बम गिराए थे। हालांकि इस दौरान सुरक्षा के लिहाज से तस्वीरें नहीं ली गई थीं।
अंग्रेजों ने बेच दिया था ताज महल
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिए मोहब्बत की इस निशानी को बेच दिया था। वो ताज महल तोड़कर इसके कीमती पत्थरों को ब्रिटेन लेकर जाना चाहते थे। बाकी संगमरमर के पत्थरों को बेचकर सरकारी खजाना भरने की फिराक में थे। साल 1828 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक ने कोलकाता के अखबार में टेंडर भी जारी किया था। ब्रिटिश हुकूमत के समय राजधानी कोलकाता हुआ करती थी।
तब एक अंग्रेजी दैनिक अखबार में 26 जुलाई, 1831 के अंक में ताजमहल को बेचने की एक विज्ञप्ति प्रकाशित की गई थी। उस समय ताजमहल को मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद ने सात लाख की बोली लगाकर इसे खरीद लिया था। नीलामी में ये भी शर्त थी कि इसे तोड़कर इसके खूबसूरत पत्थरों को अंग्रेजों को सौंपना होगा। सेठ का परिवार आज भी मथुरा में रहता है। इतिहासकार प्रो. रामनाथ ने 'दि ताज महल' किताब में इस घटना का विवरण दिया है।
उसके अनुसार, ताज महल के पुराने सेवादारों को अंग्रेजी हुकूमत के विनाशकारी आदेश की भनक लग गई थी। खबर आग की तरह फैली और लंदन तक चली गई। लंदन में एसेंबली में नीलामी पर सवाल उठे। तब गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक को ताज महल की नीलामी रद्द करनी पड़ी।
ताज की मशहूर डायना बेंच
ताज महल में एक खास बेंच है। सेंट्रल टैंक पर स्थित इस बेंच को डायना बेंच कहा जाता है। इस पर बैठकर फोटो खिंचवाने के लिए सारे पर्यटक बेकरार रहते हैं, लेकिन ये बेंच शाहजहां ने नहीं बनवाई थी। इतिहासकार रविंद्र राठौर बताते हैं कि जब ब्रिटिश वायसराय लार्ड कर्जन ताज महल पहुंचे थे, उस वक्त ताज महल के सामने ऊंचे-ऊंचे पेड़ थे। ऐसे में दूर से उसे देखने में उन्हें दिक्कत हो रही थी। ये बात 18 अप्रैल, 1902 की है।
तब लॉर्ड कर्जन ने अहम बैठक कर ताज महल के बगीचे को सुधारने का आदेश दिया। इसके बाद पेड़ कटवाए गए, ताकि ताज महल बेहतर दिख सके। इसके बाद बैठने के लिए ताज महल के सामने सेंट्रल टैंक वाले चबूतरे पर संगमरमर के स्लैब लगवाए गए। इसे ही अब 'डायना बेंच' कहते हैं। बाद में प्रिंस चार्ल्स की दिवंगत पत्नी डायना ने इस पर बैठकर तस्वीरें खिंचवाईं। उसी के बाद से ये बेंच डायना बेंच के नाम से मशहूर हो गई।
3 बार बदले गए कलश, पहले सोने का, अब कांसे का है
ताज महल के निर्माण के समय बादशाह शाहजहां ने इसके शिखर पर सोने का कलश लगवाया था। इसकी लंबाई 30 फीट 6 इंच लंबी थी। कलश में 40 हजार तोला (466 किलोग्राम) सोना लगा था। इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि ताज महल का कलश तीन बार बदला गया। आगरा के किले को साल 1803 में हथियाने के बाद से ही अंग्रेजों की नजर ताज महल पर थी।
साल 1810 में अंग्रेजी सेना के अफसर जोसेफ टेलर ने ताज महल के शिखर पर लगा सोने का कलश उतरवा दिया। उसकी जगह वैसा ही दिखने वाला सोने की पालिश किया हुआ तांबे का कलश वहां लगवा दिया था। अगर स्वर्ण कलश आज भी वहां लगा होता तो उसकी कीमत 137 करोड़ रुपए होती। इसके बाद साल 1876 और फिर 1940 में ताज महल के कलश बदले गए। मौजूदा कलश कांसे का है।
इतिहासकार राजकिशोर राजे ने लिखा है कि मेहमानखाने के सामने फर्श पर बनी कलश की अनुकृति साल 1888 में नाथूराम नाम के कलाकार ने बनाई थी। ताज महल के निर्माण के समय बादशाह शाहजहां ने खासतौर पर लाहौर के निवासी काजिम खान को आगरा बुलाया था। उन्होंने ही सोने का कलश तैयार किया था। इस कलश पर चंद्रमा बना है।
ताजमहल में अंग्रेजी जोड़े मनाते थे सुहागरात
ताज महल के मुख्य स्मारक के एक तरफ लाल रंग की मस्जिद है और दूसरी तरफ मेहमानखाना। ब्रिटिश शासन के दौरान मुख्य स्मारक के बगल का मेहमानखाना किराए पर दिया जाता था। इसमें नवविवाहित अंग्रेज जोड़े सुहागरात मनाते थे। उस वक्त इसका किराया काफी महंगा था।
इतिहासकार राजकिशोर राजे ने अपनी किताब 'तवारीख-ए-आगरा' में लिखा है कि ताज महल के मेहमानखाने की पहली मंजिल पर पहले दीवारें बंद नहीं थी। अंग्रेजों के समय में इसमें दीवारें जोड़ी गईं और उन्हें कमरों में तब्दील कर दिया गया था। इसे अंदर से बेहद खूबसूरत बनाया गया था।