आज PM मोदी का हैप्पी बड्डे है, कहानी हम नरेंद्र की सुनाएंगे, जो कभी पीछे नहीं मुड़ा
लखनऊ : नरेंद्र दामोदर दास मोदी यानि की देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। हिंदू ह्रदय सम्राट। गुजरात का शेर और भी ना जाने क्या-क्या। कहने वाले कहते हैं कि जबसे मोदी ने देश की सत्ता संभाली देश विकास की दौड़ में फर्राटे भर रहा है। आज बड्डे है पीएम का, तो हम बताएंगे वो सब कुछ जो आपको थोड़ा-थोड़ा पता है।
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जानिए कौन है नरेन्द्र मोदी
नाम : नरेंद्र दामोदरदास मोदी
जन्म : 17 सितम्बर 1950
अक्टूबर 2001 में केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम बने थे। मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने पहले दिसंबर 2002 और उसके बाद दिसंबर 2007 के विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत हासिल किया। एक बेहद साधारण गुजराती परिवार में जन्में नरेंद्र ने आजीवन अविवाहित रहकर देश-सेवा का व्रत लिया और विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीति का आरंभ किया और कालांतर में संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बने। देश में हिंदुत्व की लहर जिस सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा से जगी उसमें मोदी कद्दावर बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी के सारथी रहे। सीएम केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद उन्हें गुजरात राज्य की कमान सौंपी गई।
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प्रारम्भिक जीवन
नरेंद्र का जन्म दामोदरदास मूलचन्द मोदी व हीराबेन मोदी के बेहद साधारण परिवार में गुजरात के मेहसाणा में हुआ। मेहसाणा उस समय बम्बई प्रान्त का हिस्सा था। मोदी के छह भाई बहन है, जिनमें वो तीसरे हैं। 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान मोदी ने एक स्वयंसेवक के तौर पर रेलवे स्टेशनों पर सैनिकों की आवभगत कर काफी शोहरत पाई। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा आरंभ किए गए भ्रष्टाचार विरोधी अभियान 'नव निर्माण' में इनको अपना सपना पूरा होता दिखा और फिर इसमें सक्रिय रूप से जुट गये इसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कर्ताधर्ताओं ने इस युवक मोदी को पूर्णकालिक प्रचारक बना दिया। इसके बाद जो मोदी ने आगे बढ़ना आरंभ किया फिर पलट कर पीछे नहीं देखा। मोदी ने संघ में ऐसा प्रभाव जमाया कि उनको भारतीय जनता पार्टी में संघ के प्रतिनिधि के रूप में भेजा गया।
एक समय ऐसा था जब मोदी बड़े भाई के साथ चाय की दुकान लगाते थे। लेकिन अपने जिद्दी स्वाभाव के चलते न सिर्फ गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर किया बल्कि गुजरात के मुख्यमंत्री बन बैठे।
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राजनीति जीवन
नरेंद्र ने युवावस्था से ही राजनीतिक सक्रियता दिखानी आरंभ कर दी थी और प्रदेश में बीजेपी को मजबूत करने में बड़ी भूमिका अदा की। शंकरसिंह वघेला का मजबूत जनाधार मोदी की रणनीति और कंधो पर ही टिका था। फिर वो समय आया जिसका सपना मोदी ने तब देखा था जब वो चाय की दुकान लगाते थे। ये बात है अप्रैल 1990 की उस समय केन्द्र में मिली जुली सरकारों का दौर नया नया आरंभ हुआ था। मोदी ने अब तक गुजरात में जो काम किया था। वो वर्ष 1995 के विधान सभा चुनावों में रंग लाया। बीजेपी ने अपने बलबूते प्रदेश में दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर सरकार बना ली। उसी बीच बीजेपी ने सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथ यात्रा घोषित कर दी। जिसमें बीजेपी के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने मोदी को अपना सारथी नियुक्त कर दिया। ठीक इसी तरह एक और रथ यात्रा कन्याकुमारी से लेकर काश्मीर तक नरेंद्र मोदी की ही देखरेख में आयोजित हुई। दोनों यात्राओं से जहां बीजेपी को लाभ हुआ वहीं मोदी का भी राजनीतिक कद इतना बढ़ा की शंकरसिंह वघेला उसके आगे बौने पड गए और पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद केशुभाई पटेल को गुजरात का सीएम बना दिया गया। मोदी को दिल्ली बुलाकर भाजपा में संगठन का दायित्व सौंप दिया गया।
वर्ष 1995 में मोदी को 5 प्रमुख राज्यों में पार्टी संगठन का काम दिया गया। इसके बाद वर्ष 1998 में उन्हें पदोन्नत करके संगठन महामंत्री का उत्तरदायित्व दिया गया। इस पद पर वे अक्टूबर 2001 तक काम करते रहे। बीजेपी ने अक्टूबर 2001 में केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात के सीएम पद की कमान नरेंद्र मोदी को सौंप दी।
गुजरात के सीएम मोदी
मोदी ने अपने कार्यकाल में गुजरात में कई ऐसे मन्दिरों को भी ध्वस्त करवाने में कभी कोई कोताही नहीं बरती जो सरकारी कानून कायदों के मुताबिक नहीं बने थे। हालांकि इसके लिये उन्हें विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों का कोपभाजन भी बनना पड़ा। परंतु उन्होंने इसकी रत्ती भर भी परवाह नहीं की। जो उन्हें उचित लगा करते रहे।
मोदी ने कई योजनायों का संचालन किया जिनमें पंचामृत योजना, सुजलाम् सुफलाम्रा, कृषि महोत्सव, चिरंजीवी योजना, मातृ-वन्दना, बेटी बचाओ, ज्योतिग्राम योजना, कर्मयोगी अभियान, कन्या कलावाणी योजना, बालभोग योजना सबसे अधिक चर्चित रही हैं।
गुजरात दंगे
27 फरवरी 2002 को अयोध्या से गुजरात वापस लौट कर आ रहे हिंदू तीर्थयात्रियों को गोधरा स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में मुस्लिमों द्वारा आग लगाकर जिन्दा जला दिया गया। इस घटना में 59 स्वयंसेवक भी मारे गये। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप समूचे गुजरात में दंगे भड़क उठे। मरने वाले 1180 लोगों में अधिकांश संख्या मुस्लिमों की थी। इसके लिये न्यूयॉर्क टाइम्स ने मोदी प्रशासन को जिम्मेवार ठहराया। विरोधी दल कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों ने सीएम मोदी के इस्तीफे की मांग की। मोदी ने गुजरात की दसवीं विधान सभा भंग करने की संस्तुति करते हुए राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। परिणामस्वरूप पूरे प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। गुजरात में दोबारा चुनाव हुए जिसमें बीजेपी ने मोदी के नेतृत्व में विधान सभा की कुल 182 सीटों में से 127 सीटों पर जीत हासिल की।
अप्रैल 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने विशेष जांच दल भेजकर यह जानना चाहा कि कहीं गुजरात के दंगों में मोदी की साजिश तो नहीं। यह विशेष जांच दल दंगें में मारे गये कांग्रेस सांसद ऐहसान ज़ाफ़री की विधवा ज़ाकिया ज़ाफ़री की शिकायत पर भेजा गया था। दिसंबर 2010 में उच्चतम न्यायालय ने एसआईटी की रिपोर्ट पर यह फैसला सुनाया कि इन दंगों में सीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला।
मोदी और विवाद
फरवरी 2011 में आरोप लगा कि रिपोर्ट में कुछ तथ्य जानबूझ कर छिपाये गये हैं। और सबूतों के अभाव में मोदी को अपराध से मुक्त नहीं किया जा सकता। बीजेपी ने मांग की कि एसआईटी की रिपोर्ट को लीक करके उसे प्रकाशित करवाने के पीछे सत्तारूढ कांग्रेस का राजनीतिक स्वार्थ है। इसकी भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा जांच होनी चाहिये। इस पर कोर्ट ने बिना कोई निर्णय दिये अहमदाबाद के ही एक मजिस्ट्रेट को इसकी निष्पक्ष जांच कर अबिलम्ब अपना निर्णय देने को कहा।
अप्रैल 2012 में एक अन्य विशेष जांच दल ने फिर ये बात दोहरायी कि यह बात तो सच है कि ये दंगे भीषण थे लेकिन नरेंद्र मोदी का इन दंगों में कोई भी प्रत्यक्ष हाथ नहीं।
7 मई 2012 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जज राजू रामचन्द्रन ने यह रिपोर्ट पेश की कि गुजरात के दंगों के लिये नरेन्द्र मोदी पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153 ए (1) (क) व (ख), 153 बी (1), 166 तथा 505 (2) के अन्तर्गत विभिन्न समुदायों के बीच बैमनस्य की भावना फैलाने के अपराध में दण्डित किया जा सकता है। हालांकि रामचन्द्रन की इस रिपोर्ट पर एसआईटी ने आलोचना करते हुए इसे दुर्भावना व पूर्वाग्रह से परिपूर्ण एक दस्तावेज़ बताया।
मोदी के साथ विवाद हमेशा जुड़े रहते हैं, 26 जुलाई 2012 को नई दुनिया उर्दू के संपादक शाहिद सिद्दीकी को दिए इन्टरव्यू में मोदी ने साफ कहा-"2004 में मैं पहले भी कह चुका हूं, '2002 के साम्प्रदायिक दंगों के लिये मैं क्यों माफ़ी मांगू ?' यदि मेरी सरकार ने ऐसा किया है तो उसके लिये मुझे सरे आम फांसी दे देनी चाहिये।" मोदी ने कहा, ''अगर मोदी ने अपराध किया है तो उसे फांसी पर लटका दो। लेकिन यदि मुझे राजनीतिक मजबूरी के चलते अपराधी कहा जाता है तो इसका मेरे पास कोई जवाब नहीं है।"
मोदी अपने बचाव में काफी मजबूत तर्क देते रहे हैं। जैसे कि गुजरात में और कब तक गुजरे ज़माने को लिये बैठे रहोगे? यह क्यों नहीं देखते कि पिछले 10 वर्षों में राज्य ने कितनी तरक्की की? इससे मुस्लिम समुदाय को भी तो फायदा पहुंचा है।
गुजरात में एक और नरेंद्र मोदी
गुजरात में मुस्लिमो का सबसे बड़ा दुश्मन कौन है। इस का जवाब आज सिर्फ गुजरात से ही नहीं बल्कि सारी दुनिया से यही मिलाता है ''नरेंद्र मोदी"। मानवता पर कलंक नरेंद्र मोदी। गुजरात का तानाशाह नरेंद्र मोदी। लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि मोदी का जितना विरोध है उतनी तेजी से लोकप्रियता भी बढ़ रही है, अब तो देश की कई सर्वे एजेंसीज कहने लगी हैं कि अगले पीएम भी मोदी ही होंगे।
आखिर क्यों मोदी लोकप्रिय नेताओं की पहली जमात में शामिल हैं
आखिर वो कौन से कारण है, जो मोदी को तेजी से लोकप्रियता प्रदान कर रहे हैं। इसके लोकप्रियता के मूल में प्रचंड हिंदुत्व छुपा है। आपको याद होगा जब अयोध्या से शिलापूजन कर लौट रहे कारसेवको को गोधरा में मुस्लिमो ने जलाकर राख कर दिया। तो गुजरात में प्रतिक्रिया के स्वरुप दंगा हुआ। इस दंगे के बाद से मोदी की सफलता की शुरुआत होती है। दंगों के बाद मोदी समर्थको की संख्या बढ़ती चली गई। क्योंकि अधिकतर हिंदुओं के मन में ये बात घर कर चुकी थी कि जब भी कोई दंगा होता है तो उसमें हिंदू ही मरे जाते है। मुस्लिमो को वोटबैंक समझने के कारण ज्यादातर सरकारें कहीं न कहीं से उनकी मदद ही करती हैं। लेकिन गुजरात दंगों के दौरान जो कुछ भी हुआ उससे मोदी के जनसमर्थन में काफी इजाफा हुआ। मोदी की लोकप्रियता का एक कारण ये भी है कि गुजरात में मोदी ने विकास की झड़ी लगा दी टाटा, अदानी सहित कई देशी विदेशी कंपनियों ने गुजरात में निवेश किया। टाइम्स पत्रिका जिसने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अंडरएचीवर कहा था उसने ही ‘मोदी मीन्स बिजनेस’ जैसे सम्मान के साथ मोदी क गुणगान किया था।
नमो की शरण में अटल की बीजेपी
मोदी आज बीजेपी के अंदर वट वृक्ष बन गए हैं। जो बीजेपी हिंदुत्व की लहर के चलते केंद्र में अटल बिहारी वाजपई के नेत्रत्व में सरकार बना सकी। वही जब इस मुद्दे से हटी तो सभी की निगाहें मोदी पर टिक गई और आज देश में बीजेपी नहीं मोदी को लोग हिंदुत्व अस्मिता का रक्षक मान रहे हैं। जनता के नजर में मोदी कुशल नेता है, जिस चीज को ठान लेते है उसे पूरा करके ही दम लेते है। इसका उदाहरण संजय जोशी विवाद है, मोदी ने जोशी को किनारे लगा कर ही दम लिया।
बात पुरानी है, वर्ष 1980 के दशक में बीजेपी के वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी और संजय जोशी नागपुर में आरएसएस की एक ही शाखा जुड़े हुए थे। संजय जोशी नागपुर के हैं। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद वो सीधे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़ गए। बीजेपी को गुजरात में मजबूत बनाने में जोशी की बड़ी भूमिका रही है। जोशी तेरह साल तक गुजरात में रहे।
1990 में संजय जोशी को गुजरात बीजेपी में संगठन मंत्री का पद दिया गया। उस समय नरेंद्र मोदी को उनसे ठीक उपर के पद यानी संगठन महामंत्री के पद पर काम करते हुए दो साल हो चुके थे। दोनों ने पार्टी की गुजरात इकाई में करीब 5 साल तक साथ-साथ काम किया। इसका परिणाम ये हुआ कि 1995 में बीजेपी ने अकेले अपने दम पर गुजरात में पहली बार सरकार बनाई। गुजरात में उस समय मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार थे, केशुभाई पटेल और शंकरसिंह वाघेला।
शंकरसिंह वाघेला मोदी और जोशी के गुरु रहे थे। किंतु बीजेपी की गुजरात में पहली सरकार के मुख्यमंत्री बनने का मामला सामने आया, तो मोदी और जोशी दोनों ने साथ दिया केशुभाई पटेल का। केशुभाई पटेल के मुख्यमंत्रित्व में गुजरात में बीजेपी की पहली सरकार की शानदार शुरुआत हुई थी। कुछ दिनों के बाद शंकरसिंह वाघेला ने बगावत का बिगुल बजा दिया। वाघेला इन सबके लिए नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार मानते थे। बगावत रोकने के लिए मोदी को दिल्ली बुला लिया गया और जोशी संगठन महामंत्री बन गए।
इसके बाद भी बगावत शांत नहीं हुई। कांग्रेस के सहयोग से वाघेला गुजरात के मुख्यमंत्री बन गए। 1998 में बीजेपी दोबारा सत्ता में आई लेकिन मोदी को कोई भाव नहीं मिला और 1998 में केशुभाई एक बार फिर गुजरात के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद मोदी जोशी से नफरत करने लगे। मोदी को समय का इंतजार था। जो आया 2001 में जब कुछ विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में बीजेपी को हार झेलनी पड़ी थी और केशुभाई को सीएम की गद्दी से हटाकर नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया गया। फिर क्या था, मोदी ने सत्ता में आते ही महीने भर के अंदर संजय जोशी को गुजरात से विदा कर दिया। इसके बाद मोदी बीजेपी के बड़े नेता के रूप में स्थापित हुए और संजय जोशी दिल्ली देखते रहे बिना कुछ बोले। ऐसे में जोशी की ताकत का अंदाजा सभी को उस समय हुआ जब संजय जोशी ने जिन्ना विवाद पर लाल कृष्ण आडवाणी से अध्यक्ष पद से इस्तीफा मांग लिया था और आडवाणी को इस्तीफा देना पड़ा।
सूत्र बताते हैं की मोदी ने एक कथित सीडी के ज़रिये संजय जोशी को इतना मजबूर कर दिया की जोशी को पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद से तो दोनों एक-दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते। बाद में जोशी निर्दोष साबित हुए और गडकरी के बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद 2011 में जोशी को यूपी में विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी चुनाव प्रभारी के तौर पर दी। मोदी इससे इतने नाराज हुए कि वो यूपी में 2012 में हुए चुनावों के दौरान पार्टी का प्रचार करने तक नहीं गए। मुंबई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने के लिए मोदी ने संजय जोशी का इस्तीफा तक दिलवा दिया। इससे ये साबित होता है की मोदी ने कभी भी अपने दुश्मनों को माफ़ नहीं किया उनको मिटाकर ही दम लिया।
आज यदि बीजेपी को देखें तो जिस पार्टी का गठन हिंदुत्व के मुद्दे पर हुआ था वो आज मोदीत्व के सहारे चल रही है। देखना ये होगा कि 2019 लोकसभा चुनाव में मोदीत्व क्या राग सुनाता है।