एकता की मिसाल है यह मुस्लिम परिवार, 60 सालों से बना रहा है दशहरा के लिए पुतले

Update: 2016-10-10 06:44 GMT

वाराणसी: एक तरफ जहां पूरा देश नवरात्रि के भक्ति में सराबोर है, तो वहीं दूसरी तरफ दशहरे की तैयारियां भी जोर-शोर से चल रही हैं। धर्म और संस्कृति की राजधानी काशी को गंगा-जमुनी तहजीब का शहर भी कहा जाता है। गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल बुराई पर अच्छाई के पर्व विजयादशमी में देखने को मिलती है।

सभी जानते हैं कि आजकल देश में पाकिस्तान के साथ तनाव की स्थितियां चल रही हैं। तो वहीं वाराणसी में डीरेका मैदान में रावण का जो पुतला बनता है, उसे एक मुस्लिम परिवार कई पीढ़ियों से बनाता आ रहा है, जो अपने आप में ही एकता की अनूठी मिसाल है।

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वाराणसी के डीएलडब्लू में रामलीला कराने वाली विजयादशमी रामलीला समिति की ओर से जलाए जाने वाले पुतले रावण, कुंभकरण और मेघनाथ को मुस्लिम अरशद खां और उनके परिवार के लोग मिलकर बनाते हैं।

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इनके परिवार में यह काम पिछले 60 सालों से किया जा रहा है। मुस्लिम कारीगर ने बताया कि बड़ी मेहनत और लगन से पूरा परिवार इन पुतलों की सजावट करता है।

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एकता की मिसाल बने मरहूम बाबू खां की पीढ़ी दर पीढ़ी डीरेका में होने वाले इस पुतला दहन के लिए रावण, मेघनाथ और कुंभकरण का पुतला बनाने का काम करती आ रही है। अब इसका जिम्मा अपने हाथों में लिया है अरशद खान ने। उन्होंने बताया कि इस बार रावण का पुतला जहां 70 फीट का बनाया जा रहा है, तो वहीं कुंभकरण का 65 और मेघनाथ का 60 फीट का पुतला तैयार किया जा रहा है।

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इन पुतलों को बनाने के लिए पिछले तीन माह से पूरा परिवार लगा हुआ है। यह पूर्वांचल का सबसे बड़ा रावण बनता है, जिसे डीरेका के मैदान में जलाया जाता है।

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परिवार के सदस्यों का कहना है कि हम सब पूरी श्रद्धा और ख़ुशी के साथ इस कार्य को करते आ रहे हैं।

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अरशद के रिश्तेदार और पुतला तैयार करने में उनका सहयोग कर रहे राजू खान कहते हैं कि कोई पूछता है कि मुस्लिम होने के बाद भी तुम सब यह काम करते हो? तो हमारा जवाब होता है कि काशी की गंगा-जमुनी मिसाल को कायम रखना ही हमारा धर्म है।

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