Chaudhary Charan Singh: इस नेता के नाम पर मनाया जा रहा है किसान दिवस, आइये जाने चौधरी चरण सिंह के बारे में

Chaudhary Charan Singh Wikipedia Hindi: चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक जीवन 1937 में शुरू हुआ, जब वे पहली बार उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य बने।

Written By :  AKshita Pidiha
Update:2024-12-22 16:50 IST

Chaudhary Charan Singh Biography Wiki in Hindi 

Chaudhary Charan Singh Ka Jivan Parichay: चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीति में एक ऐसा नाम है, जिसने ग्रामीण भारत की आवाज को मुख्यधारा में लाने का काम किया। उनका जन्म 23 दिसंबर, 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर गांव में एक साधारण जाट किसान परिवार में हुआ था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वे महात्मा गांधी के विचारों से गहरे प्रभावित हुए और देश की आजादी के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। एक साधारण परिवार में पले-बढ़े चरण सिंह की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता और मेहनत ने उन्हें मेरठ और आगरा विश्वविद्यालय तक पहुंचाया, जहां से उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की।चौधरी साहब ने जातिवाद का भी खुल कर विरोध किया। साथ ही अंतर्जातीय विवाह कराने के लिए कई कदम उठाए ।

राजनीतिक जीवन की शुरुआत

उनका जीवन गांव और खेतों से जुड़ा हुआ था। यही अनुभव उनकी राजनीति का आधार बना। उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद समाज के वंचित वर्गों के लिए लड़ाई लड़ी। 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेकर उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभाई और जेल भी गए।


यही वह समय था जब उन्होंने किसानों की दयनीय स्थिति को समझा और ठान लिया कि वह अपने जीवन का उद्देश्य उन्हें न्याय दिलाने में लगाएंगे।स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी शासन की नाक में दम करने वाले चौधरी साहब ने हमेशा गांव, गरीब एवं किसानों की आवाज को बुलंद किया। चौधरी साहब गाय को बेचने के खिलाफ थे।

राजनीतिक जीवन की शुरुआत

चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक जीवन 1937 में शुरू हुआ, जब वे पहली बार उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य बने। राजनीति में आने के साथ ही उन्होंने किसानों और ग्रामीण भारत की समस्याओं को अपनी प्राथमिकता बनाया। ज़मींदारी प्रथा के कारण किसानों को जो अत्याचार झेलना पड़ता था, उससे वे बेहद आहत थे।


इसके खिलाफ उन्होंने ज़मींदारी उन्मूलन अधिनियम का मसौदा तैयार किया, जिसने लाखों किसानों को जमीन का मालिकाना हक दिलाया। यह उनकी सोच और दृढ़ संकल्प का परिणाम था कि कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा समर्पित कर दिया।

मुख्यमंत्री के रूप मे किसानों का जीवन सुधारा

मुख्यमंत्री के रूप में उनके योगदान ने उत्तर प्रदेश में एक नई दिशा दी। वे पहली बार 1967 में और फिर 1970 में मुख्यमंत्री बने। इस दौरान उन्होंने कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के लिए कई योजनाएं बनाईं। किसानों को सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की, उन्हें सस्ते ऋण दिलाए और उनके लिए बाजार व्यवस्था को सरल बनाया।


उनके कार्यकाल में शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण सुधार हुए, लेकिन उनका प्रमुख ध्यान हमेशा किसानों के अधिकार और उनके जीवन स्तर को सुधारने पर था।

इंदिरा गांधी का विरोध

आपातकाल (1975-77) के दौरान चौधरी चरण सिंह ने इंदिरा गांधी की नीतियों का कड़ा विरोध किया। वे विपक्ष के प्रमुख नेताओं में से एक थे, जिन्होंने लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष किया। जनता पार्टी के गठन के बाद उन्होंने 1977 में उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के रूप में देश की सेवा की।


हालांकि, जनता पार्टी के भीतर मतभेदों ने उनके राजनीतिक जीवन में उथल-पुथल मचाई। इन मतभेदों के चलते उन्होंने भारतीय लोकदल नामक पार्टी और अपनी स्वतंत्र राजनीतिक राह बनाई।

प्रधानमंत्री पद की ली शपथ

28 जुलाई,1979 को चौधरी चरण सिंह भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने। उनका कार्यकाल हालांकि केवल सात महीने तक चला।लेकिन इस दौरान भी उन्होंने किसानों और गरीबों के हितों को प्राथमिकता दी। वे देश में कृषि सुधारों और ग्रामीण विकास को लेकर अपने विजन पर अडिग रहे। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद किसानों को यह भरोसा हुआ कि उनकी समस्याएं अब सुनी जाएंगी।


चौधरी चरण सिंह की आलोचना भी हुई। उनके कुछ फैसलों को लेकर कहा गया कि उन्होंने उद्योगों की उपेक्षा की और सिर्फ कृषि क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया। लेकिन उनकी सोच स्पष्ट थी कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है, और जब तक गांव खुशहाल नहीं होंगे, तब तक देश तरक्की नहीं कर सकता।

राजनीति मे दिए योगदान की वजह से उनके जन्म पर मनाने लगी किसान दिवस

उनके जीवन पर निजी विवाद भी चर्चा का विषय बने।लेकिन उनके समर्थक हमेशा कहते रहे कि उनका निजी जीवन जितना साधारण था, उतना ही उनकी राजनीतिक यात्रा प्रेरणादायक थी। उनके योगदान को देखते हुए उनके सम्मान में 1999 में दिल्ली में स्थित राष्ट्रीय किसान दिवस (23 दिसंबर) उनके जन्मदिन पर मनाया जाने लगा।


चौधरी चरण सिंह को किसानों का हिमायती माना जाता है। उनके मंत्री और प्रधानमंत्री रहते हुए किसानों के हितों के लिए कई काम किये गए और किसानों को सशक्त बनाने का काम किया गया। उन्हीं को सम्मान देने के लिए अब प्रतिवर्ष नेशनल फार्मर्स डे मनाया जाता है।

उनकी विरासत

चौधरी चरण सिंह के नाम पर लखनऊ का अमौसी हवाई अड्डा और मेरठ में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों का नामकरण किया गया। ये संस्थान उनके योगदान को याद दिलाते हैं। उनका जीवन सादगी, ईमानदारी और जनता के प्रति समर्पण का उदाहरण है।

चौधरी चरण सिंह ने भारतीय राजनीति में जो विरासत छोड़ी, वह आज भी प्रासंगिक है। उनकी नीतियां और सोच उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा हैं, जो ग्रामीण भारत को सशक्त बनाने के लिए काम करना चाहते हैं। 29 मई, 1987 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा। लेकिन उनका नाम भारतीय राजनीति में सदैव अमर रहेगा।


चौधरी चरण सिंह को ‘किसानों का नेता’ कहे जाने के पीछे उनके जीवन और राजनीति की स्पष्ट दिशा थी, जो पूरी तरह से भारतीय किसानों के अधिकारों, उनकी समस्याओं के समाधान और ग्रामीण भारत के उत्थान पर केंद्रित थी। इसके पीछे कई कारण और ऐतिहासिक घटनाएं हैं जो उनके इस उपनाम को सही ठहराती हैं:

1. किसानों के जीवन और उनकी समस्याओं को समझना

चौधरी चरण सिंह खुद एक किसान परिवार से थे। उन्होंने बचपन से ही खेतों में काम करते हुए किसानों की परेशानियों को नज़दीक से देखा था। उन्हें पता था कि छोटे और मध्यम किसानों को जमींदारी प्रथा, साहूकारों के कर्ज़ और कृषि पर निर्भर रहने वाली अर्थव्यवस्था में किस तरह के संघर्षों का सामना करना पड़ता है।


इस अनुभव ने उन्हें किसानों की समस्याओं को समझने और उनके समाधान के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित किया।

2. जमींदारी प्रथा का उन्मूलन

1947 में भारत की आजादी के बाद किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या ज़मींदारी प्रथा थी। ज़मींदार गरीब किसानों से ऊंचे किराए वसूलते थे और उनकी फसल का बड़ा हिस्सा अपने पास रख लेते थे। चौधरी चरण सिंह ने ‘ज़मींदारी उन्मूलन अधिनियम’ का मसौदा तैयार किया, जिसने किसानों को उनकी जमीन का मालिकाना हक दिलाया।


यह अधिनियम किसानों की आजादी की दिशा में एक बड़ा कदम था, जिससे लाखों किसानों को सीधा फायदा हुआ।

3. कृषि पर आधारित नीतियां

उनका मानना था कि भारत की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है,जब तक किसानों की स्थिति नहीं सुधरेगी, तब तक देश प्रगति नहीं कर सकता।


मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने किसानों के लिए सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने, सस्ते कर्ज़ उपलब्ध कराने, फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने जैसे कदम उठाए। उनके प्रयासों से किसानों को वित्तीय स्वतंत्रता मिली और उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ।

4. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता

चौधरी चरण सिंह ने गांवों और कृषि को प्राथमिकता देने वाली नीतियों पर जोर दिया। उन्होंने गांवों में सड़कें, बिजली और पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं को बढ़ावा दिया। उन्होंने बार-बार यह कहा कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है।

5. किसानों की आवाज़ बनने की क्षमता

चौधरी चरण सिंह ने न केवल किसानों के लिए काम किया, बल्कि उनकी आवाज़ भी बने। उन्होंने हर मंच पर किसानों की समस्याओं को उठाया और उनकी बात को प्रभावशाली ढंग से रखा। उनके भाषणों और लेखों में हमेशा कृषि और किसानों का मुद्दा केंद्र में रहता था।

6. आपातकाल के दौरान किसानों का समर्थन

1975-77 के आपातकाल के दौरान, जब इंदिरा गांधी की सरकार ने लोकतांत्रिक अधिकारों पर अंकुश लगाया, चौधरी चरण सिंह ने किसानों और ग्रामीण भारत की स्वतंत्रता की आवाज़ बुलंद की।


उन्होंने जनता पार्टी के साथ मिलकर आपातकाल का विरोध किया और लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष किया।

7. सादगी और जनता के बीच रहना

चौधरी चरण सिंह की सादगी और जनता के बीच रहने की आदत ने उन्हें किसानों के दिलों में एक विशेष स्थान दिलाया। वे खुद किसान परिवार से होने के कारण उनके जीवन और संघर्ष को अच्छी तरह समझते थे। वे अक्सर गांवों में जाकर किसानों के बीच समय बिताते थे, उनकी समस्याओं को सुनते थे और उनका समाधान करते थे।

8. ‘किसान घाट’ का निर्माण

चौधरी चरण सिंह की मृत्यु के बाद, उनकी याद में दिल्ली में ‘किसान घाट’ का निर्माण किया गया। यह उनकी विरासत और उनके योगदान का प्रतीक है। यह स्थान आज भी उनकी सोच और विचारधारा को प्रतिबिंबित करता है।

9. किसानों की राजनीति को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना

चौधरी चरण सिंह ने किसानों की राजनीति को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उन्होंने ‘भारतीय लोकदल’ पार्टी के माध्यम से किसानों के मुद्दों को संसद और सत्ता के केंद्र तक पहुंचाया। वे हमेशा किसानों की ताकत पर विश्वास करते थे। उन्हें संगठित करने की दिशा में काम करते थे।

10. किसानों की समस्याओं का दीर्घकालिक समाधान

उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय यह सुनिश्चित करने में लगाया कि किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिले, उनके लिए सिंचाई और बीज की बेहतर सुविधाएं हों, और कृषि को देश की आर्थिक रीढ़ के रूप में विकसित किया जाए।

यूपी में लेखपाल का पद बनाया

यूपी में लेखपाल का पद चौधरी चरण सिंह ने ही बनाया था। उन्‍होंने उत्‍तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून पारित कराया। 1967 में वह यूपी के मुख्‍यमंत्री बने। इसके बाद 1968 में इस्‍तीफा दे दिया था। 1970 में दोबारा मुख्‍यमंत्री बने।इसके बाद गृह मंत्री रहते हुए उन्‍होंने मंडल और अल्‍पसंख्‍यक आयोग की स्‍थापना की। राष्‍ट्रीय कृषि ग्रामीण विकास बैंक नाबार्ड की स्‍थापना की।


इसके अलावा चकबंदी कानून, जमीदारी उन्मूलन विधेयक, ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की।

रंगनाथन की टिप्पणी और सम्मान

जाने-माने अर्थशास्त्री रंगनाथन ने चौधरी चरण सिंह को "भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था का संरक्षक" कहा। उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए हर साल 23 दिसंबर को ‘किसान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।चौधरी चरण सिंह को ‘किसानों का नेता’ कहना उनके जीवन के हर पहलू और उनके राजनीतिक सफर के लिए सटीक है। उनकी नीतियां, सोच, और समर्पण आज भी भारत के किसानों को प्रेरित करते हैं। वे भारतीय राजनीति में एक ऐसे नेता के रूप में याद किए जाते हैं, जिन्होंने गांव और किसान को भारत के विकास का आधार बनाया।

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