कब अौर क्‍यों लगता है प्रेसिडेंट रूल ? इस राज्‍य में लगा था सबसे पहले

Update:2016-03-27 17:14 IST

लखनऊ: नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड में प्रेसिडेंट रूल हटाने का आदेश दिया है। 29 अप्रैल को विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होगा। इससे पहले बीते 27 मार्च को हाईकोर्ट ने प्रेसिडेंट रूल लगाया था, जिस पर कांग्रेस ने इसे बीजेपी का षड्यंत्र करार दिया था। आईए आपको बताते हैं कि क्या होता है प्रेसिडेंट रूल और कब लगता है ?

प्रेसिडेंट रूल को सेंट्रल रूल भी कहते हैं। भारत में शासन के संदर्भ में इसका प्रयोग तब होता है जब किसी राज्य सरकार को भंग या निलंबित कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में राज्य प्रत्यक्ष तौर पर संघीय शासन के अधीन आ जाता है।

आर्टिकल-356 देता है अधिकार

भारत के संविधान का आर्टिकल-356, केंद्र की संघीय सरकार को राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन की दशा में उस राज्य सरकार को बर्खास्त कर वहां प्रेसिडेंट रूल लागू करने का अधिकार देता है। प्रेसिडेंट रूल उस स्थिति में भी लागू होता है, जब राज्य विधानसभा में किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं हो।

छह महीने के भीतर साबित करना होता है बहुमत

सत्तारूढ़ पार्टी या केंद्रीय (संघीय) सरकार की सलाह पर या राज्यपाल अपने विवेक पर सदन को भंग कर सकते हैं यदि सदन में किसी पार्टी या गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत ना हो। राज्यपाल सदन को छह महीने की अवधि के लिए ‘निलंबित अवस्था' मे रख सकते हैं। छह महीने के बाद, यदि फिर कोई स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना हो तो उस दशा में फिर से चुनाव आयोजित किए जा सकते हैं।

क्‍यों कहते हैं प्रेसिडेंट रूल ?

इसे प्रेसिडेंट रूल इसलिए कहा जाता है क्योंकि, इसके द्वारा राज्य का नियंत्रण बजाय एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के सीधे भारत के राष्ट्रपति के अधीन आ जाता है। लेकिन प्रशासनिक दृष्टि से राज्य के राज्यपाल को केंद्रीय सरकार द्वारा कार्यकारी अधिकार प्रदान किए जाते हैं। प्रशासन में मदद करने के लिए राज्यपाल आम तौर पर सलाहकारों की नियुक्ति करता है, जो आम तौर पर सेवानिवृत्त सिविल सेवक होते हैं। आमतौर पर इस स्थिति में राज्य में केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की नीतियों का अनुसरण होता है।

क्या है आर्टिकल-356

आर्टिकल-356, केंद्र सरकार को किसी राज्य सरकार को बर्खास्त करने और प्रेसिडेंट रूल लगाने की अनुमति उस अवस्था में देता है, जब राज्य का संवैधानिक तंत्र पूरी तरह विफल हो गया हो।

आलोचक संघीय वयवस्‍था के लिए खतरा मानते हैं

यह आर्टिकल एक साधन है जो केंद्र सरकार को किसी नागरिक अशांति (जैसे कि दंगे जिनसे निपटने में राज्य सरकार विफल रही हो) की दशा में किसी राज्‍य सरकार पर अपना अधिकार स्थापित करने में सक्षम बनाता है (ताकि वो नागरिक अशांति के कारणों का निवारण कर सके)।

प्रेसिडेंट रूल के आलोचकों का तर्क है कि अधिकतर समय, इसे राज्य में राजनैतिक विरोधियों की सरकार को बर्खास्त करने के लिए एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए इसे कुछ लोगों के द्वारा इसे संघीय राज्य व्यवस्था के लिए एक खतरे के रूप में देखा जाता है। 1950 में भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से केन्द्र सरकार द्वारा इसका प्रयोग 100 से भी अधिक बार किया गया है।

पहली बार केरल में लगा था

इस आर्टिकल का प्रयोग पहली बार 31 जुलाई 1959 को लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई केरल की कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त करने के लिए किया गया था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश की भाजपा की राज्य सरकार को बर्खास्त करने के लिए किया गया था।

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