देश की इस पहलवान बेटी को भी है सरकार से आस, देखा है गोल्ड मेडल लाने का सपना
देहरादून
: हर कोई तो फिल्म 'दंगल' की बेटियों बबिता और गीता की तरह खुशनसीब तो नहीं होता है। हर किसी को महावीर सिंह की तरह पिता नहीं मिलते हैं, जो न केवल अपनी बेटियों को पहलवानी के गुर सिखाए और उन्हें ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाने के लिए प्रेरित कर सके। इसी तरह की ना जाने कितनी ही समस्याओं को झेलते हुए उसने कभी हार नहीं मानी। उसने ना केवल उत्तर प्रदेश के पुरुष पहलवानों को धूल चटाई, बल्कि उसने दिल्ली के पहलवानों को भी दिन में तारे देखने पर मजबूर कर दिया है।जी हां, हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड की 'लेडी सुल्तान' नेहा तोमर की, जिनका असली नाम फरजाना है। पहलवानी के लिए फरजाना ने समाज से लेकर परिवारवालों तक के ताने सहे, थोड़े टाइम के लिए लाइमलाइट में भी आई। लेकिन उसके बाद न केवल लोग बल्कि सरकार भी भूल गई। महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी यह महिला पहलवान हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है। फरजाना (नेहा तोमर) का दिल हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लिए धड़कता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि फरजाना का दूसरा नाम 'नेहा' है, जिसे इन्हें एक हिंदू परिवार ने दिया है।
ऐसे बनी फरजाना नेहा
फरजाना देहरादून के ढकरानी गांव में रहने वाले इस्लामुद्दीन व सलमा की बेटी हैं। फरजाना (नेहा तोमर) 2011 में हिमाचल के सिरमौर जिले के कलेथा गांव में रहने वाली बबीता तोमर से मिली। तालमेल बढ़ा तो फरजाना(नेहा तोमर) बबीता को अपनी बड़ी बहन मानने लगी। उसके बाद बबीता के परिवार वालों ने फरजाना (नेहा तोमर) को अपने घर में पनाह दी और उसे बबीता के बराबर प्यार मिलने लगा फरजाना (नेहा तोमर) मुस्लिम है, यह जानते हुए भी बबीता के परिवार वाले उस कठिन समय में फरजाना (नेहा तोमर) के लिए ढाल बनकर खड़े हुए।
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कुछ ऐसे बढ़े पहलवान बनने की ओर फरजाना के कदम
: 10 भाई बहनों में चौथे नंबर की फरजाना (नेहा तोमर) को बचपन से ही पहलवानी काफी पसंद थी। 2011 में नवीं कक्षा में पढ़ते हुए फरजाना (नेहा तोमर) ने जिंदगी की पहली फाइट में बैरागीवाला के युवक पहलवान को धूल चटाई थी। फिर गंगभेवा बावड़ी मेले में हुई कुश्ती में भी उसने भाग लिया और जीत गई। जन्मस्थान ढकरानी में रहने वाली फरजाना (नेहा तोमर) जानती थी कि उस गांव में उसे कोई पहलवानी के लिए आगे बढ़ने नहीं देगा। इसलिए वह कलेथा चली गई। हिमाचल में रहते हुए वह इसके दांव-पेंच सीखती रही। पांच साल की मेहनत के बाद वह एक चैंपियन के रूप उभरी।एक बार बरेली में हुए दंगल में उत्तर प्रदेश व दिल्ली के पहलवानों को धूल चटाकर उसने अपने इरादों को जता भी दिया। एक के बाद के जब फरजाना जब जीत हासिल करती चली गई, तो उसके गांव ढकरानी और कलेथा में लोग उसका नाम बड़े शान से लेने लगे वहीं फरजाना (नेहा तोमर) भी अपनी उपलब्धि का श्रेय मुंहबोले हिंदू माता-पिता को देती है।
कुश्ती को अपना जूनून मानती है फरजाना (नेहा तोमर) : देश की अनोखी महिला पहलवान नेहा तोमर का कहना है कि कुश्ती मेरा शौक नहीं जुनून है। मेरे पिता ने मुझे कुश्ती सीखने से कभी मना नहीं किया, लेकिन मां हमेशा ही रोकती थी। कई बार इसे लेकर लड़ाई भी हुई। ऐसे में मुझे बबीता दीदी ने मदद का हाथ आगे बढ़ाया था। मेरे रिक्वेस्ट करने पर वह मुझे अपने साथ ले गई, जहां मुंहबोले पिता पंचराम तोमर ने पिता इस्लामुद्दीन जैसा ही प्यार दिया। मेरे दो-दो घर हैं। एक ढकरानी में और एक कलेथा में।
कुछ यह कहना है फरजाना का : देश के लिए ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने का सपना देखने वाली फरजाना के घर में खाने की कमी है। उनके रहने की स्थिति काफी खराब है आमिर खान की दंगल से एक बार फिर से सबको फरजाना उर्फ नेहा तोमर महिला पहलवान की याद आ गई है। उन्होंने सरकार से गुजारिश की है कि वह उन्हें कुछ मादा मुहैया कराए, ताकि वह भी अपने देश का नाम रोशन कर सकें।