जयपुर: भारत में खाने के बाद मीठा खाने का रिवाज है। और मीठे में सबसे ज्यादा खीर पसंद की जाती है. यही वजह है कि उत्तर की खीर दक्षिण जाते-जाते पायसम हो जाती है। लेकिन बनाने की विधि में कोई अंतर नहीं है. हां इतना जरूर है कि इसमें अलग-अलग चीजें डाली जाती हैं. भारत में इसका इतिहास ढाई हजार साल पुराना है. वहीं जानकारों की मानें तो खीर का इतिहास कैलेंडर से भी पुराना है।
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भारत में खाने के बाद मीठे में सबसे ज्यादा खीर पसंद की जाती है. यही वजह है कि उत्तर की खीर दक्षिण जाते-जाते पायसम हो जाती है। लेकिन बनाने की विधि में कोई अंतर नहीं है. हां इतना जरूर है कि इसमें अलग-अलग चीजें डाली जाती हैं। भारत में इसका इतिहास ढाई हजार साल पुराना है. वहीं जानकारों की मानें तो खीर का इतिहास कैलेंडर से भी पुराना है।खीर एक प्रकार का मिष्ठान्न है जिसे चावल को दूध में पकाकर बनाया जाता है। खीर को पायस भी कहा जाता है। 'खीर' शब्द, 'क्षीर' (= दूध) का अपभ्रंश रूप है। रामायण महाभारत काल में भी खीर का जिक्र है।
खीर का पहला उल्लेख 400 ईसापूर्व के जैन और बौद्ध ग्रंथों में भी मिलता है. आयुर्वेद में तो बाकायदा इसे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी बताया गया है. खीर शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के क्षीर से हुई जिसका अर्थ दूध होता है. उत्तर भारत में इसे खीर कहा जाता है और दक्षिण जाते यह पायसम में बदल जाता है. पायसम को दूध, चावल और गुण से बनाया जाता है. जबकि ज्यादातर खीर दूध, चीनी और चावल से बनती है. इसमें सूखे मेवे डालते हैं.खीर को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है, लेकिन बनाने की विधि में ज्यादा अंतर नहीं होता है. उत्तर भारत में इसे खीर कहा जाता है, जबकि पश्चिम बंगाल में यह पायेश हो जाती है. पायेश को दूध, चावल, घी, चीनी/गुड़ और खोया डालकर पकाया जाता है।
वही खीर उत्तर प्रदेश आते-आते बदल जाती है. बनारस में त्योहारों और हवन में इसे दूध, चावल, घी, चीनी, इलायची, मेवे और केसर डालकर पकाया जाता है. जबकि दक्षिण भारत में सेवैया और साबूदाने को मिलाकर खीर बनती है. इसें कुछ सूखे मेवे डाले जाते हैं.आसाम में खीर को पायोख कहा जाता है। इसमें काफी मात्रा में सूखे मेवे डाले जाते हैं. यहां इसका रंग थोड़ा गुलाबी होता है. कहीं-कहीं इसे साबूदाना से भी बनाया जाता है। ऐसी खीर असमी परिवारों में महत्वपूर्ण खाने के तौर पर बनाई जाती है.बिहार में खीर को चावल की खीर कहा जाता है। यहां इसे बनाने के लिए फुल क्रीम दूध, चीनी, इलायची पाउडर, सूखे मेवे और केसर डाला जाता है. अगर केसर न हो तो भी काम चल जाता है। वहीं कई जगहों पर रसिया खीर भी बनती है. रसिया में चीनी की जगह गुण डालकर पकाया जाता है।
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ओडिशा में खीर को पायस कहा जाता है। यह पुरी में दो हजार सालों से बन रही है। इसे अन्नप्रसादम में बांटा जाता है. इसे दूध, चावल और गुण से बनाया जाता है.साउथ इंडिया में खीर यानी पायसम को दूध, चावल और गुण से बनाया जाता है. कहीं-कही पायसम को चीनी, चावल और नारियल के दूध से तैयार किया जाता है. वहीं कर्नाटक में सेवैया से पायसम बनता है. इसमें साबूदाना भी मिलाया जाता है. जबकि हैदराबाद में लौकी की खीर खूब पसंद की जाती है। इसे गिल-ए-फिरदौस कहा जाता है. जिसे दूध और लौकी से बनाया जाता है।
भारत ही नहीं प्राचीन रोम और फारस क्षेत्र में भी खीर के सेवन का उल्लेख मिलता है. रोमवासी पेट को ठंडक पहुंचाने के लिए खीर खाया करते थे. जिस फिरनी को पंजाब में बड़े चाव से खाया जाता है. वो एक जमाने में पर्शिया के पसंदीदा व्यंजनों में से थी।पारसी लोगों ने ही फिरनी में गुलाबजल और सूखे मेवे डालना शुरू किया था. जबकि चीन में बनने वाली खीर में फलों को शहद में डुबोकर डाला जाता है।