Sonia Gandhi: राजनीति की सबसे सफलतम बहू, जाने इटली से भारत का सफर

सोनिया गांधी का आज 74 साल की हो गई है और इस अवसर पर हम आज सोनिया गांधी के बीते पलों पर प्रकाश डालेंगे। बता दें कि लंबे समय तक कांग्रेस अध्यक्ष बने रहने का रिकॉर्ड भारतीय राजनीति की सबसे सफलतम बहू सोनिया गांधी के नाम पर दर्ज है। बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस पार्टी को इस वक्त अपनी अध्यक्षा सोनिया गांधी के भरोसे टिकी हुई है।

Update:2020-12-09 16:09 IST
Sonia Gandhi: राजनीति की सबसे सफलतम बहू, जाने इटली से भारत का सफर

लखनऊ: सोनिया गांधी का आज 74 साल की हो गई है और इस अवसर पर हम आज सोनिया गांधी के बीते पलों पर प्रकाश डालेंगे। बता दें कि लंबे समय तक कांग्रेस अध्यक्ष बने रहने का रिकॉर्ड भारतीय राजनीति की सबसे सफलतम बहू सोनिया गांधी के नाम पर दर्ज है। बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस पार्टी अपनी अध्यक्षा सोनिया गांधी के भरोसे टिकी हुई है। सोनिया गांधी का भारत आने और राजनीति के साथ-साथ देश की सबसे शक्तिशाली महिला बनने के पीछे की कहानी बेहद रोचक है। तो आइए एक नजर के डालते है, भारतीय राजनीति की सबसे सफलतम बहू सोनिया गांधी पर...

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में राजीव और सोनिया की हुई थी मुलाकात

आपको बता दें कि राजीव गांधी की मुलाकात सोनिया गांधी से कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में हुई थी। इटली की रहने वाली सोनिया को उस वक्त यह बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि राजीव गांधी भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे हैं। वहीं, भारत के पीएम इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी को पता था कि सोनिया गांधी को राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसलिए राजीव गांधी ने सोनिया से यह बात छिपाए रखी कि वह भारत के पीएम के बेटे हैं।

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लंदन में इंदिरा गांधी से पहली बार मिली सोनिया

सोनिया से मुलाकात होने के बाद लंदन में राजीव गांधी ने जब अपनी मां इंदिरा गांधी से मिलीं, तो काफी डरी हुई थी, डर के कारण उनके पैर कांप रहे थे। उन्होंने पहली बार साड़ी पहनी हुई थी। साल 1968 में इंदिरा गांधी की ओर से राजीव गांधी और सोनिया के रिश्ते को स्वीकार करने के बाद उन्होंने शादी कर ली।

भारत की गर्मी से परेशान थी सोनिया

पहली बार जब सोनिया भारत आई थी, तो उस समय देश में काफी गर्मी थी। भीषण गर्मी पड़ने के कारण सोनिया काफी परेशान थी। उन्होंने इतनी गर्मी की कभी नहीं झेला था। सोनिया को परेशान देखते हुए राजीव गांधी हमेशा अपने सारे काम जल्दी से निपटा लिया करते थे। काम निपटाकर वह शाम को जल्दी घर आकर सोनिया को दिल्ली में घूमने निकल जाते थे। इंडिया गेट पर आइसक्रीम खाते थे। उस दौरान की इस जोड़ी का फोटो आज भी खूब चर्चित है।

पहले ऐसी थी सोनिया गांधी

सोनिया गांधी राजनीति से कोसो दूर रहती थी। उन्हें सत्ता में कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन एक समय ऐसा समय आया कि वे देश की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस की केन्द्र बन गईं। सोनिया गांधी जब शादी करके भारत आईं थी, तो उन्हें यहां के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था। 1970 के दशक में भारत औद्योगिक क्रांति की ओर बढ़ रहा था और इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी मारुति कार की फैक्ट्री लगाने की कोशिश में जुटे हुए थे।

संजय ने अपनी कंपनी में सोनिया को बनाया था साझीदार

बता दें कि संजय गांधी ने मारुति कार की कंपनी विवादित थी। इस विवादित कंपनी में संजय गांधी ने सोनिया गांधी को साझीदार बना लिया था। इस विवादित फैक्ट्री के कागजों पर सोनिया के हस्ताक्षर थे जिनमें वे कंपनी की हिस्सेदारी थी। इस पूरे कारनामे के बारे में जब राजीव गांधी को पता चला, तो वह काफी नाराज हुए थे। राजीव गांधी ने जब सोनिया से सवाल पूछा कि क्या उन्हें पता भी है कि उन्होंने किन कागजात पर हस्ताक्षर किए हैं, तो सोनिया ने बताया कि उन्होंने संजय के कहने पर हस्ताक्षर किए हैं। इस पूरे मामले पर राजीव गांधी ने सोनिया के हस्ताक्षर को कानून के खिलाफ बताया। नियम के मुताबिक, कोई भी विदेशी नागरिक भारतीय कंपनी में उस वक्त तक साझीदार नहीं हो सकता था।

सोनिया को सरकार के कामों के बारे में बताती इंदिरा गांधी

जिस समय सोनिया भारत आई थी, तो उस वक्त देश में कांग्रेस की सत्ता थी और इंदिरा गांधी पार्टी के साथ ही सरकार भी संभाल रही थी। सोनिया का ध्यान सिर्फ परिवार पर रहता था, उन्हें देश की राजनीति में ना कोई दिलचस्पी थी और ना ही जानकारी थी। डायनिंग टेबल पर इंदिरा गांधी उन्हें सरकार के कामों और उनके लिए गए फैसलों के बारे में जानकारी दिया करती थीं।

सोनिया नहीं चाहती थी कि उनके पति राजनीति में आए

भारतीय राजनीति को देखते हुए सोनिया गांधी यह कभी नहीं चाहती थीं कि उनके पति राजीव गांधी किसी भी तरह के राजनीतिक पद को संभालें। लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उन्हें देश के प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया, जिससे सोनिया गांधी खुश नहीं थीं। सोनिया गांधी को राजीव गांधी को लेकर डर लग रहा था कि कभी कोई राजीव गांधी की भी हत्या ना कर दें। उनका यही डर एक दिन सच साबित हो गया और तमिलनाडु की एक चुनावी रैली के दौरान आतंकी संगठन लिट्टे ने उनकी हत्या कर दी।

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पार्टी की कमान संभालने को तैयार नहीं थीं सोनिया

वहीं राजीव गांधी के मृत्यु के बाद कांग्रेस पार्टी की कमान संभालने के कोई ऐसा पार्टी नेता था, जो पार्टी का अच्छा नेतृत्व कर सके। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के हत्या के बाद सोनिया उस वक्त पार्टी की कमान संभालने को तैयार नहीं थीं। वहीं पार्टी कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं के उन्हें बहुत समझाया। एक वरिष्ठ नेता और कांग्रेस वर्किंग कमेटी ( CWC) के प्रवक्ता ने आकर सोनिया गांधी को सूचना दी कि, सोनिया जी CWC ने नरसिम्हा राव के नेतृत्व में आपको पार्टी अध्यक्ष चुन लिया, लेकिन सोनिया इस फैसले को स्वीकार नहीं की। पार्टी नेताओं के लाख समझाने के बाद भी सोनिया राजनीति में हिस्सा नहीं ली और और उनकी जगह नरसिंह राव पार्टी को अध्यक्ष बना दिया गया।

1997 में सोनिया गांधी ने ज्वाइन किया अपनी पार्टी

लंबे समय के बाद, 1997 में सोनिया गांधी ने पार्टी की ज्वाइन किया और पार्टी की बागडोर संभाल ली। उसके बाद 2004 में सोनिया के नेतृत्व में यूपीए ने सत्ता में कमबैक किया और 10 साल तक सत्ता में छाई रहीं।

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