यहां सांप मरने पर लोग मुंडवाते हैं सिर और मूंछें, मानते हैं बाप-बेटे का रिश्ता

Update:2016-08-21 17:50 IST

छत्तीसगढ़: अक्सर सांप का नाम लेते ही लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, लेकिन आपको यह जानकार हैरानी होगी कि छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में जोगीनगर के हर घर में जहरीला सांप पालने की प्रथा है। यहां सांपों की देखभाल इंसानी बच्चों की तरह की जाती है। इतना ही नहीं अगर पिटारे में ही सांप की मौत हो जाए, तो पालने वाले शख्स द्वारा पूरे सलीके से अंतिम संस्कार किया जाता है। वह अपनी दाढ़ी-मूंछें मुंडवाता है और फिर पूरे परिवार को भोज करवाता है।

जानें क्या है पूरा मामला

बता दें कि जोगी नगर महासमुंद नगर के उत्तर में 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नगर पंचायत गांव की सीमा में आबाद यह बस्ती खानाबदोश सपेरों द्वारा बसाई गई है। यहां के लोगों का काम ही सांपों को पकड़ना और उनकी नुमाइश से अपना गुजारा करना है।

सबसे खास बात यह है कि किसी भी सांप को सपेरा केवल दो महीने तक ही अपने पास रखता है। फिर उसे कहीं दूर खुला छोड़ आता है। यह सपेरे कई तरह की जड़ी-बूटियों के बारे में जानकारी रखते हैं और जरुरतमंदों की हर संभव मदद करते हैं। लेकिन अब वहां के सपेरों के इस पुश्तैनी काम में दिक्कतें आने लगी हैं क्योंकि वन-विभाग उनपर दबाव बना रहा है ताकि पर्यावरण को सुरक्षित किया जा सके।

शादी में गिफ्ट में दिए जाते हैं 21 सांप

जोगीनगर के एक सपेरे कृष्णा नेताम के कहना है कि उनके सामाजिक ताने-बाने में खास प्रथा यह है कि शादी के दौरान दुल्हन पक्ष की ओर से दूल्हा पक्ष को दहेज में 21 सांपों का तोहफा देना कंपलसरी है। इसके बिना शादी नहीं होती। यह प्रथा पूरी करना जरुरी होता है। कृष्णा कहते हैं कि उन्हें अपनी संस्कृति और परंपरा को बचाए रखने की छूट मिलनी चाहिए।

जंगल नहीं जाते हैं कभी सांपों को पकड़ने

वहीं यहां के सपेरों का कहना है कि कभी भी सांपों को पकड़ने के लिए वे जंगल नहीं जाते हैं। वे केवल उन्हीं सांपों को पकड़ते हैं, जो इंसानी इलाकों में घुस आते हैं और जो इंसानों को काट सकते हैं। जोगीनगर के सपेरे बताते हैं कि पीढ़ियों से चली आ रही परपंरा के विपरीत सांपों का सहारा लेकर यहां-वहां, दर-दर भटकना उन्हें भी नहीं अच्छा लगता है। वे भी खेती और नौकरी करना चाहते हैं, लेकिन कोई उनके उत्थान के बारे में नहीं सोंचता है।

वह तो यह भी कहते हैं कि उनको बसे हुए ढाई सौ साल से ज्यादा हो गए। लेकिन न तो उन्हें आजतक इंदिरा आवास का सहारा मिला है और न ही एकल बत्ती विद्युत कनेक्शन योजना की वजह से उनकी झोपड़ी में कोई बल्ब जल सका है।

 

 

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