आगराः आने वाले वक्त में ताजमहल देखने आने वालों को निराश होना पड़ सकता है। ताजमहल का मुख्य गुंबद उन्हें संगमरमरी खूबसूरती लिए हुए नहीं दिखेगा। प्रेम के इस स्मारक का ऐसा हाल करीब एक साल तक रहेगा। दरअसल, प्रदूषण की वजह से ताज में लगे संगमरमर पीले पड़ रहे हैं। खासकर मुख्य गुंबद काफी पीला हो गया है। उसका पीलापन दूर करने के लिए मिट्टी का लेप यानी मडपैक लगाया जाएगा।
क्या है योजना?
ताजमहल के मुख्य गुंबद को एक साल तक स्केफोल्डिंग यानी लोहे के पाइपों के पाड़ से ढक दिया जाएगा। इसपर चढ़कर गुंबद पर मडपैक लगाया जाएगा। गुंबद पर लगे पीतल के 9.29 मीटर ऊंचे कलश की भी थेरेपी कर उसे चमचमाता बनाया जाएगा। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) इस काम को करने जा रहा है।
अभी मीनारों की चल रही सफाई
बता दें कि अभी ताज के चारों मीनारों पर मडपैक लगाया गया है। मुख्य गुंबद पर पाड़ का भार ज्यादा न हो, इसकी जांच लोड बियरिंग कैपेसिटी से की जाएगी। एएसआई के अधीक्षक पुरातत्वविद डॉ. भुवन विक्रम के मुताबिक तीन से पांच महीने का वक्त पाड़ बांधने में ही लग जाएगा। 250 फुट की ऊंचाई तक लोहे के पाइप पहुंचाना भी मुश्किल काम है। साथ ही गुंबद पर मडपैक थेरेपी के साथ संरक्षण का काम भी किया जाएगा।
वर्ल्ड वॉर के दौरान लगाया गया था पाड़
ताजमहल के मुख्य गुंबद पर 1940-41 में विश्व युद्ध के दौरान संरक्षण और सुरक्षा के लिए स्केफोल्डिंग लगाई गई थी। वहीं, ब्रिटिश काल में 1874 में तत्कालीन एक्जीक्यूटिव इंजीनियर जेडब्ल्यू एलेंक्जेंडर ने मुख्य गुंबद के संरक्षण पर 70 हजार 926 रुपए खर्च किए थे। तीन साल तक चले संरक्षण में गुंबद के टूटे पत्थरों को बदलने के साथ पच्चीकारी का काम कराया गया था।
इसके अलावा उस दौरान गुंबद पर पिनेकल पर मुलम्मा चढ़ाया गया था। इसके बाद 1880 में तत्कालीन डीएम एफ बाकर ने मेहमान खाने की ओर चमेली फर्श पर इसी कलश का काले ग्रेनाइट से छाया चित्र तैयार कराया।