गजब! सूरज के चलते हजारों करोड़ का नुकसान, यही है टाइम जोन
क्या आपको पता है भारत के टाइम जोन की कीमत हमें 29,000 करोड़ रुपये चुकानी पड़ रही है और शिक्षा तथा वेतन का नुकसान इससे भी कहीं ज्यादा। इसकी पड़ताल के लिए दोस्तों आज हम आपको देश के टाइम जोन की सैर पर ले चलते हैं।
क्या आपको पता है सूरज के चलते भारत के सिंगल टाइम जोन की कीमत हमें 29,000 करोड़ रुपये चुकानी पड़ रही है और शिक्षा तथा वेतन का नुकसान इससे भी कहीं ज्यादा। इसकी पड़ताल के लिए दोस्तों आज हम आपको देश के टाइम जोन की सैर पर ले चलते हैं।
क्या कहता है अध्ययन
कॉर्नेल विश्वविद्यालय के एक रिसर्च स्कॉलर का एक नए अध्ययन महत्वपूर्ण है।
इस रिसर्च का नाम ‘पुअर स्लीप: सनसेट टाइम एंड ह्युमन कैपिटल प्रोडक्शन’ है।
इस अध्ययन में टाइम जोन के तहत भारत के परिणामों का विश्लेषण किया गया है।
अध्ययन में टाइम जोन की सीमाओं को नियंत्रित करने वाली नीति की आलोचना है।
इसके अनुसार भारत को सालाना मानव पूंजी का लगभग 4.1 बिलियन डॉलर
या लगभग 29,000 करोड़ रुपये या जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 0.2 फीसदी सहना पड़ रहा है।
कहां कितने टाइम जोन
ये बात तो आपको पता होगी कि हर देश का अलग-अलग टाइम जोन होता है।
जैसे कनाडा में छह, आस्ट्रेलिया में आठ, ब्रिटेन में नौ, रूस में 11, अमेरिका में 11 और फ्रांस में 12 टाइम जोन हैं।
अब जबकि भारत से कम क्षेत्रफल व जनसंख्या वाले देशों में कई टाइम जोन हैं तो भारत में सिर्फ एक टाइम जोन क्यों।
और इस एक टाइम जोन से क्या नुकसान है तो क्या फायदा।
कैसे तय होता है टाइम जोन
दरअसल टाइम जोन तय होता है सूर्य से।
जब सूरज का उदय होता है तो प्रकाश एक समय में पृथ्वी के किसी एक हिस्से में ही रह सकता है।
उस एक हिस्से में भी सूर्य की किरणें कहीं तिरछी पड़ती हैं तो कहीं सीधी।
यही कारण है कि दुनिया के किसी कोने में दोपहर हो रही होती है तो किसी स्थान पर रात और कहीं पर शाम।
अब यदि पूरी दुनिया की घड़ियों का एक ही समय कर दिया जाये तो कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
मान लीजिए आप कहीं जाने के लिए दोपहर में निकलते हैं और जब वहां पहुचेंगे तो क्या वहां भी दोपहर हो रही होगी, बिलकुल नहीं।
इस समस्या को हल करने के लिए समय देशांश रेखाओं के आधार पर क्षेत्रीय समय को बनाया गया, जिसे मानक समय भी कहते हैं।
क्या है भारत का मानक समय
भारत का मानक समय (आईएसटी), जीएमटी (ग्रीनविच मीन टाइम) से 82.5° पूर्व है,
जिसका अर्थ है कि हमारा मानक समय ग्रीनविच के मानक समय से साढ़े पाँच घंटे आगे है।
भारतीय मानक समय, समय की एकरूपता तो देता है लेकिन डेलाइट सेविंग टाइम की सुविधा नहीं देता है
क्या है इसका कारण
भारत की पूर्व-पश्चिम दूरी 2,933 किलोमीटर (1,822 मील) है जो 29 डिग्री अक्षांश से अधिक है।
जिसके परिणामस्वरूप पूर्व में सूर्य जल्दी उग जाता है और 2 घंटे पहले अस्त हो जाता है।
यानी देश के अन्य भागों से उत्तर पूर्वी राज्यों में सूर्योदय व सूर्यास्त लगभग दो घंटा पहले हो जाता है
और इसी कारण इन राज्यों की तमाम समस्याओं की शुरुआत होती है।
भारत में दो टाइम जोन की मांग
भारत में दो टाइम जोन की मांग करीब दो दशकों से चली आ रही है।
पूर्वोत्तर भारत के कई संगठन ऐसे है जो समय-समय पर अलग टाइम जोन की मांग उठाते आए हैं।
इनकी दलील है कि दो टाइम ज़ोन से कई समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है
बिजली पर होने वाली करोड़ों रुपये की फिजूलखर्ची से भी निजात पाई जा सकती है।
एक टाइम जोन से क्या हैं परेशानियां
अगर दो टाइम जोन की मांग पर विचार करें तो पश्चिम बंगाल-असम की सीमा से दूसरा टाइम ज़ोन शुरू किया जा सकता है।
दलील है कि पूर्वोत्तर राज्यों में सूरज तो सुबह 4 बजे उदय हो जाता है लेकिन ऑफिस टाइम सुबह 10 बजे से शुरू होता है।
अगर इन इलाकों में घडी की सुइयों को महज आधे घंटे पहले कर दिया जाये
तो बेमतलब में खर्च होने वाली करीब 2.7 अरब यूनिट बिजली बचाई जा सकती है।
इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा जर्नल करंट साइंस नामक अपने शोध में भी कहा गया है।
अगर भारत में दो टाइम जोन हो जाये तो यह न केवल डेलाइट को बचाएगा बल्कि उत्पादकता भी बढ़ाएगा।
क्योंकि पूर्व में सूरज जल्दी उदय हो जाता है और 2 घंटे पहले अस्त हो जाता है।
सर्दियों में यह स्थिति और भी खराब हो जाती है क्योंकि सर्दियों में दिन छोटे हो जाते हैं
जिसके कारण उत्पादकता कम हो जाती है और बिजली की खपत बढ़ जाती है।
एक टाइम जोन से परेशानी
दिन में सूरज की कम रोशनी मिलने की वजह से ही औद्योगिक विकास प्रभावित हो रहा है।
मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, बेंगलुरू और अहमदाबाद में सूरज की रोशनी ज्यादा देर तक मिलती है।
यह उनके विकसित होने की एक प्रमुख वजह है।
इसके अलावा सूरज की कम रौशनी के अभाव में लोगों के स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा हैं।
एक टाइम जोन के हिमायती क्या कहते हैं
एयरलाइंस, रेडियो, टेलीविजन और दूसरी सेवाओं को ध्यान में रखते हुए दो अलग-अलग टाइम जोन बनाना उचित नहीं होगा।
मंत्रालय ने वर्ष 2007 में संसद को बताया था कि दो अलग-अलग टाइम जोन बनाना उचित नहीं होगा।
मंत्रालय ने पूर्वी राज्यों में कामकाज का समय एक घंटा पहले करने का समाधान सुझाया था।
यह काम प्रशासनिक निर्देशों के जरिये हो सकता है।
ब्रिटिश शासनकाल में थे तीन टाइम जोन
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान देश में तीन अलग-अलग टाइम जोन थे।
ये बांबे टाइम जोन, कलकत्ता टाइम जोन और बागान टाइम जोन से जाने जाते थे।
पूरे देश के चाय बागान मजदूर इसी बागान टाइम जोन के हिसाब से काम करते थे।
असम के चाय बागानों में यह टाइम जोन अब भी लागू है, जो आईएसटी से एक घंटा आगे है।
संभव हैं दो टाइम जोन
आईएसटी का निर्धारण करने वाली राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (एनपीएल) का एक नया विश्लेषण आया है।
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, भारत में दो समय क्षेत्रों की मांग पर अमल करना तकनीकी रूप से संभव है।
दो भारतीय मानक समय आईएसटी को दो अलग-अलग हिस्सों में बांटा जा सकता है।
देश के विस्तृत हिस्से के लिए आईएसटी-1 और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए आईएसटी-2 को एक घंटे के अंतर पर अलग-अलग किया जा सकता है।
फिलहाल भारत में 82 डिग्री 33 मिनट पूर्व से होकर गुजरने वाली देशांतर रेखा पर आधारित एक समय क्षेत्र है।
क्या है नया सुझाव
नए सुझाव के अंतर्गत यह क्षेत्र आईएसटी-1 बन जाएगा, जिसमें 68 डिग्री 7 मिनट पूर्व और 89 डिग्री 52 मिनट पूर्व के बीच के क्षेत्र शामिल होंगे।
इसी तरह, 89 डिग्री 52 मिनट पूर्व और 97 डिग्री 25 मिनट पूर्व के बीच के क्षेत्र को आईएसटी-2 कवर करेगा। इसमें सभी पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ अंडमान और निकोबार द्वीप भी शामिल होंगे।
तकनीकी विशेषज्ञ क्या कहते हैं
एनपीएल के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है ‘दो समय क्षेत्रों के सीमांकन में परेशानी नहीं होगी
क्योंकि सीमांकन क्षेत्र काफी छोटा होगा जो पश्चिम बंगाल और असम की सीमा पर होगा।
अंतिम समाधान सरकार के पास
वैसे समस्या का अंतिम समाधान सत्ताधारी सरकारों के पास है।
वह चाहें तो इन इलाकों की समस्याओं के समाधान की दिशा में कदम बढ़ा सकती हैं।
आज से दो तीन दशक पहले नए टाइम ज़ोन को अंजाम दिया जाना शायद मुश्किल रहा हो
लेकिन आज के नए भारत में इस मांग को पूर्ण किया जाना ही पूर्वोत्तर राज्यों के लिए हितकर है।
वरना सेवन सिस्टर राज्यों की स्थिति दिन प्रति दिन और गंभीर होती जाएगी।