तीन तलाक, यूनिफॉर्म सिविल कोडः जानिए, क्या है मामला और क्यों हो रहा विरोध

Update:2016-10-16 00:19 IST

मुस्लिम महिलाओं की फाइल फोटो

नई दिल्लीः तीन तलाक और यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर आजकल राजनीति गरमाई हुई है। सरकार ने जहां सुप्रीम कोर्ट में कई मुस्लिम देशों का उदाहरण देते हुए तीन तलाक को गलत बताया है। वहीं, लॉ कमीशन ने यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए 16 सवालों पर लोगों की राय जाननी चाही है। तीन तलाक के मसले पर विपक्षी दल अमूमन कह रहे हैं कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पक्ष में हैं। लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड के मसले पर मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षियों का हमला जारी है। ऐसे में ये जानना जरूरी है कि आखिर तीन तलाक और यूनिफॉर्म सिविल कोड का मसला आखिर है क्या?

क्यों हो रहा है तीन तलाक का विरोध?

काफी वक्त से देखा जा रहा है कि सोशल मीडिया के जरिए तलाक दिए जा रहे हैं। इसके मद्देनजर पीड़ितों और मुस्लिम महिला संगठनों ने विरोध जताया है। सायरा बानो नाम की महिला ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है और तीन तलाक पर रोक की मांग की है। अर्जी देने वालों की दलील है कि ये गैर शरई है। यानी इस्लाम एक ही बार में तीन बार तलाक कहे जाने को वाजिब नहीं मानता है।

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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की मीटिंग की फाइल फोटो

इस्लामी देशों में क्या है नियम?

पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्की और मिस्र समेत कई इस्लामी देशों में तीन तलाक के खिलाफ कानून है। इन देशों में तीन महीने में यानी हर एक महीने एक बार तलाक कहे जाने का नियम है। ताकि पुरुष तीसरे और आखिरी तलाक बोलने से पहले अपने फैसले पर ठीक से विचार कर सके। इसके अलावा कई देशों में पति-पत्नी में सुलह कराने के लिए मध्यस्थता परिषद और न्यायिक हस्तक्षेप की भी व्यवस्था है।

भारत में क्या है व्यवस्था?

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) एक ही बार में तीन तलाक को शरीयत के मुताबिक सही बताता है। बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में ये दलील भी दी है कि औरतों की हत्या न होने देने में तीन तलाक का अहम रोल भी है। बोर्ड ने ये भी कहा है कि अनुशासन विहीन पत्नी दूसरी अनुशासित पत्नी के मुकाबले नुकसानदेह है। इस्लाम के मुताबिक पति-पत्नी में संबंध खराब हों तो शादी खत्म करने को कहा गया है।

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प्रतीकात्मक फोटो

तीन तलाक का कानूनी पहलू क्या?

-मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा संहिताबद्ध कानून नहीं है। इसे अंग्रेजों के वक्त के दो कानूनों से नियंत्रित किया जाता है।

-1937 के एक्ट में कहा गया है कि भारत के मुस्लिम शरीयत से चलेंगे, लेकिन ये नहीं बताया गया है कि शरीयत में क्या है और क्या नहीं।

-1939 के एक्ट में ऐसी 9 वजहें बताई गई हैं, जिनके आधार पर मुस्लिम महिला तलाक के लिए कोर्ट जा सकती है।

-1986 के रखरखाव एक्ट के तहत तलाक के बाद मुस्लिम महिला एकमुश्त रखरखाव पाने की हकदार होती है।

मुस्लिम महिला संगठनों का क्या है कहना?

-महिलाओं के हक के बारे में कुरान की हिदायतों की ज्यादा जानकारी नहीं दी जाती है।

-साल 2014 में करीब 250 मामलों में ज्यादातर तीन तलाक, एकतरफा तलाक और पत्नी या गवाहों की गैर मौजूदगी में तलाक के थे।

-पर्सनल लॉ को दिव्य बताया जाता है, जबकि इनके प्रावधानों को इंसानों ने ही बनाया है।

क्या कहते हैं इस्लाम के जानकार?

-इस्लाम के जानकारों के मुताबिक कुरान के तहत तलाक सबसे घृणित अपराध है। इसके इस्तेमाल से पहले काफी विचार की जरूरत बताई गई है।

-तीन तलाक की व्यवस्था इसलिए है, ताकि कोई तीसरा तलाक देने से पहले अपना मन बदलकर पत्नी के साथ कुछ प्रक्रिया के बाद फिर रह सकता है।

-अगर किसी महिला की शादी गलत आदमी से हो गई तो वह कुछ धार्मिक प्रक्रिया के बाद पति से अलग होकर दोबारा शादी कर सकती है।

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संविधान की प्रस्तावना

तीन तलाक के साथ ही यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे पर सियासत गरम है। विपक्षी दल इस मामले में लॉ कमीशन की ओर से 16 सवालों पर जनता की राय मांगे जाने को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। दरअसल, इसकी बड़ी वजह ये भी है कि इन सवालों में से सातवां सवाल तीन तलाक को लेकर है। विपक्ष और मुस्लिम संगठनों का कहना है कि तीन तलाक का सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की ओर से विरोध यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की दिशा में कदम है।

यूनिफॉर्म सिविल कोड पर क्या कहता है संविधान?

बता दें कि भारत के संविधान के 44वें अनुच्छेद में नीति निर्देशक तत्व हैं। नीति निर्देशक तत्वों के मुताबिक ही देश की शासन व्यवस्था चलनी चाहिए। इन नीति निर्देशक तत्वों में ये भी कहा गया है कि सरकार समान नागरिक आचार संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की कोशिश करेगी। बीजेपी इसके पक्ष में हमेशा रही है। इसी वजह से मोदी सरकार के दौर में लॉ कमीशन ने इस मुद्दे पर आम लोगों और संगठनों की राय जाननी चाही है।

क्या हैं लॉ कमीशन के सवाल?

1. क्या आप जानते हैं कि अनुच्छेद-44 में प्रावधान है कि सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की कोशिश करेगी?

2. क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड में तमाम धर्मों के पर्सनल लॉ, कस्टमरी प्रैक्टिस या उसके कुछ भाग शामिल हो सकते हैं, जैसे शादी, तलाक, गोद लेने की

प्रक्रिया, भरण पोषण, उत्तराधिकार और विरासत से संबंधित प्रावधान?

3. क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड में पर्सनल लॉ और प्रथाओं को शामिल करने से लाभ होगा?

4. क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड से लैंगिग समानता सुनिश्चित होगी?

5. क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड को वैकल्पिक किया जा सकता है?

6. क्या बहुविवाह प्रथा, बहुपति प्रथा, मैत्री करार आदि को खत्म किया जाए या फिर रेग्युलेट किया जाए।

7. क्या तीन तलाक की प्रथा को खत्म किया जाए या कस्टम में रहने दिया जाए या फिर संशोधन के साथ रहने दिया जाए?

8. क्या ये तय करने का उपाय हो कि हिंदू स्त्री अपने संपत्ति के अधिकार का प्रयोग बेहतर तरीके से करे, जैसा पुरुष करते हैं? क्या इस अधिकार के लिए

हिंदू महिला को जागरूक किया जाए और तय हो कि उसके सगे संबंधी इस बात के लिए दबाव न डालें कि वह संपत्ति का अधिकार त्याग दे।

9. ईसाई धर्म में तलाक के लिए 2 साल का वेटिंग पीरियड संबंधित महिला के अधिकार का उल्लंघन तो नहीं है?

10. क्या तमाम पर्सनल लॉ में उम्र का पैमाना एक हो?

11. क्या तलाक के लिए तमाम धर्मों के लिए एक समान आधार तय होना चाहिए?

12. क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड के तहत तलाक का प्रावधान होने से भरण-पोषण की समस्या हल होगी?

13. शादी के रजिस्ट्रेशन को बेहतर तरीके से कैसे लागू किया जा सकता है?

14. अंतरजातीय विवाह या फिर अंतर धर्म विवाह करने वाले कपल की रक्षा के लिए क्या उपाय हो सकते हैं?

15. क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

16. यूनिफॉर्म सिविल कोड, या फिर पर्सनल लॉ के लिए सोसाइटी को संवेदनशील बनाने के लिए क्या उपाय हो सकते हैं?

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