मितरों ! 10 पॉइंट्स में जानिए, वर्ष 1940 से अधिक पुराना नहीं है दीवाली और पटाखों का रिश्ता
लखनऊ : दीपावली पर पटाखों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सबके सामने है। इसके बाद देश में जनता जनार्दन दो भागों में बंट गई है। कुछ इसके समर्थन में हैं तो कुछ विरोध कर रहे हैं। ऐसे में हमने ये खोज निकाला की कब से पटाखे चलन में आए...
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- मुगल शासन ने पहले दीपावली सिर्फ दिए रौशन कर मनाई जाती थी। पूजन होता और भक्त सो जाते थे। जब बाबर ने देश पर आक्रमण किया तो वो अपने साथ बारूद लाया। इसके बाद सिर्फ गुजरात के कुछ इलाकों में रौशनी वाले पटाखे चलन में आने लगे। लेकिन बाकी का देश इससे अंजान था।
- वर्ष 1667 में औरंगजेब ने दीपावली पर दीयों और पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया।
- इसके बाद जब गोरे देश के शासक हुए तो उन्होंने भी पटाखों पर पाबंदी लगा दी।
- वर्ष 1923 में तमिलनाडु के दो भाई अय्या नादर और शनमुगा नादर कलकत्ता गए और माचिस फैक्ट्री में नौकरी करने लगे कुछ समय बाद उन्होंने शिवकाशी में माचिस फैक्ट्री बनाई।
- इसके बाद आया 1940, इस वर्ष गोरों की सरकार ने एक्स्प्लोसिव एक्ट में संशोधन किया और अधिक मारक पटाखों छोड़ बाकी को वैध कर दिया।
- नादर भाइयों ने इसके बाद 1940 में शिवकाशी में पटाखों की फैक्ट्री लगाई।
- वर्ष 1980 आते-आते शिवकाशी में 189 पटाखों की फैक्ट्रियां लग चुकी थीं।
- आज अगर आपके दिल में दिवाली का ख्याल आता है तो पटाखें अपने आप आखों के आगे फूटने लगते हैं। लेकिन नोट कर लीजिए दिवाली पर पटाखों का इतिहास 1940 से अधिक पुराना नहीं है।
- दीवाली के साथ पटाखे और चाइल्ड लेबर का रिश्ता चोली और दामन का रहा है और आज भी बना हुआ है। शिवकाशी में सैकड़ों की तादात में बच्चे इन कारखानों में काम कर रहे हैं।
- शिवकाशी के बाद अब चीन में भी बड़े स्तर पटाखे बनाने शुरू हुए हैं। ये पटाखे सबसे ज्यादा इंडिया आते हैं। इंडिया की सबसे बड़ी पटाखा कंपनी स्टैण्डर्ड फायरवर्क्स है। जिसने वर्ष 2005 में कई फैक्ट्रियां चीन में लगाईं हैं।