ये पता है आपको! वो शहर जहां दुनिया में सबसे ज्यादा होती है बारिश, जानें किस हाल में रहते हैं यहां के लोग
World Rainiest City Mawsynram: ज्यादातर लोग जानते हैं कि चेरापूंजी में सबसे ज्यादा बारिश होती है। पहले ऐसा था भी, लेकिन अब ये जगह दूसरे नंबर पर आ गई। आज के समय में दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश मेघालय के मासिनराम शहर में होती है। यहां की धरती को सबसे गीली जगह माना जाता है।
World Rainiest City Mawsynram: मानसून आते ही देश के कई राज्यों में जमकर बारिश होने लगी है। ज्यादातर लोग जानते हैं कि चेरापूंजी में सबसे ज्यादा बारिश होती है। पहले ऐसा था भी, लेकिन अब ये जगह दूसरे नंबर पर आ गई। आज के समय में दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश मेघालय के मासिनराम शहर में होती है। यहां की धरती को सबसे गीली जगह माना जाता है।
बिना मानसून के भी रोज बारिश
मासिनराम शहर में मानसून आए या ना आए तब भी रोज बारिश हो ही जाती है। साल के बहुत कम ऐसे दिन होंगे जब यहां बारिश नहीं होती है। इस समय यहां खूब बारिश हो रही है। मौसम विभाग के अनुसार ये बारिश लगातार बिना रुके 15 दिन चलेगी। यहां सालाना औसत बारिश 11,871 मिलीमीटर होती है। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी सबसे ज्यादा नम जगह के तौर पर इसी शहर का नाम दर्ज है।
चेरापूंजी में आज भी किसी-किसी रोज या हफ्तों तक मासिनराम से ज्यादा बारिश होती है। मगर, बारिश का सालाना औसत निकालने पर चेरापूंजी दूसरे पायदान पर ही आता है। दोनों जगहों के बीच की सड़क से दूरी करीब 80 किलोमीटर है।
यहां क्यों होती है ज्यादा बारिश
‘बंगाल की खाड़ी’ का मानूसन दक्षिणी हिंद महासागर से होते हुए भूमध्य रेखा को पार करके भारत में पूर्व की ओर पहुंचता है। यहां मानसून सबसे पहले म्यांमार की अराकान योमा तथा पीगूयोमा पर्वतमालाओं से टकराता है। यहां से होते हुए मानसूनी हवाएं सीधे उत्तर की दिशा में मुड़कर गंगा के डेल्टा क्षेत्र से होकर खासी पहाड़ियों तक पहुंचती हैं। यही हवाएं मेघालय के चेरापूंजी तथा मासिनराम घनघोर बारिश कराती है।
चेरापूंजी में कम क्यों हो गई बारिश
मौसम विज्ञान के डेटा के अनुसार साल 1973 से लेकर 2019 तक चेरापूंजी में हर साल 0.42 मिलीमीटर की कमी आने लगी थी। सैटेलाइट इमेज में वेजिटेशन एरिया में भारी बदलाव हो गया। ये हर साल 104 वर्ग किलोमीटर की दर से कम होने लगा। यहां आबादी बढ़ने के साथ हरयाली में कमी आ गई। इसके अलावा लोगों ने खेती-बाड़ी के पुराने तरीके छोड़कर, मॉर्डन ढंग अपना लिया। जिसका सीधा असर बारिश में देखने को मिल रहा है।
सालभर इस हाल में रहते हैं लोग
पहाड़ी जगहों की तरह ही यहां भी जीवन काफी संघर्षों से भरा है। यहां का रहन-सहन, पहनावा, खान-पान सबकुछ दूसरे लोगों से अलग होता है। यहां न ढंग से खेती हो पाती है, न ही खुले में दुकानें सज पाती हैं। मासिनराम कभी तेज, कभी धीमी बौछार गिरती रहती हैं। ऐसे में काम चलता रहे, इसके लिए स्थानीय लोगों के पास एक खास तरह का छाता रहता है। जिसे लोग सिर पर डालकर काम करते रहते हैं। कनूप नाम का ये छाता ताड़ के पत्ते की मजबूत और घनी सिलाई वाला होता है। इसमें दो लेयर होती हैं, ताकि पानी भीतर न आ सके।
प्लास्टिक लपेटकर बेचते हैं चीजें
यहां ज्यादातर खाने-पीने की चीजें शिलांग से आती हैं। दुकानों में ये सामान ऐसे संभालकर रखा जाता है कि नमी भीतर न घुस जाए। इस सामानों को प्लास्टिक में लपेटकर ड्रायर से सुखाकर बेचा जाता है। बिस्किट जैसी तुरंत नम होने वाले स्नैक यहां देखने को भी नहीं मिलते हैं। मासिनराम में एक से बढ़कर एक मौसमी फल-सब्जियां मिलती है। मीट की भी कई किस्में मिलती हैं। यहां के लोग अक्सर शाम को लाल चाय के साथ खास तरह का पुलाव खाते हैं, जिसे सोहरा पुलाव कहते हैं।
कपड़े सुखाना भी हैं बड़ा काम
यहां कपड़े सुखाना बहुत बड़ा काम है। नमी की वजह से मोटे, सूती कपड़े सूख ही नहीं पाते। इसलिए अक्सर लोग सिंथेटिक कपड़े पहनते हैं। वहीं, यहां बने पुल भी बारिश के कारण हमेशा जर्जर हालात में रहते हैं। जिसके चलते स्थानीय लोग पेड़ की जड़ों को बांधकर एक से दूसरे जगह जाने-आने का काम करते हैं। कुल मिलाकर मुंबई या बेंगलुरू जैसे शहर जब बारिश में अस्त-व्यस्त हो जाते हैं, तो इन शहरों का हाल कितना बेहाल रहता होगा, इसकी आप कल्पना कर ही सकते हैं