भटकी प्रिया की बदल गई तकदीर, 3 साल की उम्र में छूटा था अपनों का साथ

Update: 2016-03-15 12:54 GMT

वाराणसीः 3 साल की उम्र में जब मां-पिता का साथ दिल्ली में स्टेशन पर छूट गया तब से प्रिया की जिंदगी बदल गई। वह छोटी सी बच्ची अपनों के बगैर बड़ी हो गई। कभी दिल्ली के बाल संरक्षण गृह में तो कभी वाराणसी के राजकीय संवासिनी गृह में रही, लेकिन योगसूत्र संस्था के मिशन नई उड़ान ने प्रिया के हौसले को उड़ान भरने के लिए पंख दिए। आज प्रिया बीस साल पहले छूटे सपनों की मंजिल को पाने के लिए फिर से सफर पर निकल चुकी है।

'नई उड़ान' ने बदली प्रिया की जिंदगी

संवासिनी गृह में पिछले 6-7 सालों से रह चुकी प्रिया वर्मा को मां पिता तो नहीं मिले, लेकिन वे लोग जरूर मिले जिनकी बदौलत आज उसकी अपनी नई पहचान है। योगसूत्र ने पिछले साल संवासिनी गृह में 'नई उड़ान' नाम से एक अभियान शुरू किया। जिसमें संस्था ने कई बच्चियों को चुना, जिन्हें नई जिंदगी देने का मिशन बनाया। इन बच्चियों को प्रोफेशनल ट्रेनिंग के साथ साथ योगा क्लास करवाए गए। ताकि उनमें सकारात्मक सोच विकसित हो सके। वो पुरानी जिंदगी को भूलकर नई जिंदगी की शुरूआत कर सके। इस अभियान के प्रयास से ही आज प्रिया की जिंदगी बदल चुकी है। संस्था ने प्रिया को नर्सिंग की ट्रेनिंग दिलवाई। अब प्रिया शहर के जाने-माने ओमेगा अस्पताल में नर्स है, जहां वो मरीजों की देखभाल करती है।

क्या कहती हैं पुष्पांजलि शर्मा

योगसूत्र की संचालक पुष्पांजलि शर्मा ने इस मिशन की बुनियाद रखी थी। पुष्पांजलि के लिए ये मौका भावुक भी है तो साहस देने वाला भी। अगर मेहनत के साथ पहल की जाए तो कोई भी मंजिल हासिल करना मुश्किल नहीं होता। उहोंने कहा कि जब हमने संवासिनी गृह में अभियान की शुरुआत की तब हमारे पास संसाधन नहीं थे। हमारे पास लोग नहीं थे लेकिन हमारा मकसद नेक था औऱ हमें कामयाबी मिली। आज मुझे निजी तौर पर बेहद खुशी है कि प्रिया को नई जिंदगी मिली। इस मिशन में हम कभी कामयाब नहीं हो पाते अगर प्रोबेशन अफसर प्रभात रंजन

का साथ नहीं मिला होता। जब भी कोई दिक्कत आईं उहोंने आगे बढ़कर इन दिक्कतों को दूर करने में हमारा साथ दिया। इसी का नतीजा है कि नई उड़ान कैंपेन आज कामयाबी की नई इबारत लिख रहा है।

डॉ. रितु गर्ग ने निभाई अहम भूमिका

प्रिया के सपने पूरे करने में डॉक्टर रितु गर्ग की अहम भूमिका रही। डॉ. रितु गर्ग ने ना सिर्फ ये सुनिश्चित किया कि प्रिया को नर्सिंग की ट्रेनिंग मिले। बल्कि ट्रेनिंग के बाद वो नौकरी करे और अपने पैरों पर खड़ी हो सके। इसमें भी उन्होंने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रिया की ये कहानी आज के समाज में एक मिसाल की तरह है। जहां लोग कई बार अपनों से कतराते हैं। वहां पराये आज प्रिया के लिए फरिश्ता साबित हुए। बीस साल पीछे जिस स्टेशन पर मां-पिता का हाथ छूटा था। वो अतीत का एक हिस्सा भर है, क्योंकि वो अब अपनी जिंदगी में नई मंजिलों को हासिल करने के लिए आगे बढ़ चली है।

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