RSS Ka Itihas Kya Hai: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इतिहास, स्थापना, विस्तार और संरचना

Rashtriya Swayamsevak Sangh History in Hindi: 2025 में सौ वर्ष पूर्ण करने जा रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या है इतिहास और कैसे हुआ इसका विस्तार आइये विस्तार से जानते है।;

Written By :  Shivani Jawanjal
Update:2025-02-06 13:44 IST

Rashtriya Swayamsevak Sangh History in Hindi

Rashtriya Swayamsevak Sangh History in Hindi: साल 1925 में नागपुर में एक डॉक्टर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS- Rashtriya Swayamsevak Sangh) नामक छोटेसे संगठन की नींव रखी, जिसका उद्देश्य हिंदू समाज को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित करना था। २०२५ में यह संगठन अपने 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है, और शायद ही किसी ने उस समय कल्पना की होगी कि यह छोटा सा संगठन एक दिन पूरी दुनिया में अपनी गहरी छाप छोड़ेगा और विश्व का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन बनेगा।

लेकिन क्या यह केवल एक सामाजिक संगठन है, या इसके राजनीतिक प्रभाव भी हैं? क्या यह विशुद्ध रूप से एक सांस्कृतिक संगठन के रूप में कार्य करता है, या इसके राजनीतिक आयाम भी मौजूद हैं?


वर्त्तमान समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को भारत का एक हिंदू राष्ट्रवादी, अर्धसैनिक स्वयंसेवक संगठन के तौर पर जाना जाता है जिसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) का वैचारिक संरक्षक भी माना जाता है। 1925 में स्थापित यह संगठन हिंदू समाज को एकजुट करने और हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को बढ़ावा देने के कार्यो के लिए भी जाना जाता है ।बीबीसी(BBC) के अनुसार, यह विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। जो समय के साथ, एक प्रमुख हिंदू राष्ट्रवादी संगठन के रूप में उभरा है और जिसने कई संबद्ध संगठनों की स्थापना की, जो इसकी विचारधारा को आगे बढ़ाते हैं।इस लेख के माध्यम से हम संघ के इतिहास, स्थापना और विस्तार और संरचना जैसे हर पहलू का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

संघ की प्रारंभिक यात्रा


साल 1907 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आज़ादी की जंग को मजबूत करने के उद्देश्य से क्रंतिकारियों ने बंगाल में अनुशीलन समिति की स्थापना की ।नागपुर से डॉक्टर की पढाई करने आये डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार(Dr. Keshav Baliram Hedgewar )इस समिति से जुड़े और साथ ही बाल गंगाधर तिलक(Baal Gangadhar Tilak)के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भी शामिल हुए। जिसके बाद डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार ने कांग्रेस(Congress) के साथ कई वर्षो तक कार्य किया ।

1917 में, जब तुर्की के खलीफा महमूद पंचम को सत्ता से हटाया गया, तो भारत में खिलाफत आंदोलन(Khilafat Movement) शुरू हुआ। महात्मा गांधी(Mahatma Gandhi) के नेतृत्व में कांग्रेस ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया, लेकिन डॉ. हेडगेवार इससे असहमत थे। हालांकि नाराजगी के बावजूद वे कांग्रेस में बने रहे ।अंदर ही अंदर परेशान हेडगेवार ने हिंदुओ के हित में कुछ करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने हिंदू समाज को संगठित करने की दिशा में अपने स्तर पर प्रयास शुरू कर दिए। जिसकी शुरुवात उन्होंने अपने गढ़ नागपुर(Nagpur) से की और अपने विचारों से लोगों को संगठित करने का कार्य शुरू किया ।

कहा जाता है कि प्रारंभ में उनके विचार सुनने के लिए केवल बारह लोग ही उपस्थित थे, लेकिन समय के साथ उनकी विचारधारा ने हजारों लोगों को आकर्षित किया। समय बीतने के साथ यह संख्या बढ़ती गई, और यही वह क्षण था जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का उदय हुआ। आज जितना बड़ा संघ का स्वरुप है, शुरुवात में डॉ . केशव हेडगेवार के सामने उतनी ही बड़ी चुनौतियां भी थी ।कहा जाता है डॉ . केशव हेडगेवार ने खुद योग, सूर्य नमस्कार, लाठी ट्रेनिंग और बौद्धिक चर्चा के साथ शाखा लगाना शुरू किया ।और फिर धीरे - धीरे शाखा में हजारों की संख्या में लोग आने लगे ।

संघ की स्थापना


आधिकारिक तौर पर 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना की ।शुरुआत में यह संगठन एक छोटे समूह के रूप में अस्तित्व में आया, लेकिन जल्द ही इसके विचार और उद्देश्यों ने लोगों को आकर्षित करना शुरू कर दिया। महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों, जैसे नासिक, पुणे, अमरावती और यवतमाल,(nashik, Pune, Amravati & Yavatmal) में संघ ने अपनी शाखाएँ स्थापित कर विस्तार की प्रक्रिया शुरू की। यह संगठन हिंदू समाज को एकजुट करने और राष्ट्रीय चेतना को बढ़ाने के उद्देश्य से बना, जो आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन माना जाता है।

भारत में विस्तार


आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना के बाद, इसका विस्तार केवल महाराष्ट्र तक ही सीमित था। लेकिन संघ को महाराष्ट्र के बाहर अपना विस्तार करने का अवसर तब मिला जब 1930 के आस-पास डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) जाने का अवसर मिला। यहाँ बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में ही उनकी मुलाकात पंडित मदन मोहन मालवीय(Pandit Madan Mohan Malviya) से हुई, जिन्होंने उन्हें BHU परिसर में संघ का कार्यालय स्थापित करने की अनुमति दी।

इसी दौरान हेडगेवार की मुलाकात माधव सदाशिवराव गोलवलकर (Madhav Sadashivrao Golwalkar) से भी हुई, जो उस समय एमएससी की पढ़ाई कर रहे थे और जिन्हें लोग गुरूजी कहकर संबोधित करते थे। इस मुलाकात के बाद, संघ का विस्तार पूरे भारत में सुनिश्चित हो गया। 1940 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की मृत्यु हो गई और सर्वसम्मति से संघ की कमान गोलवलकर को सौंप दी गई। गोलवलकर के नेतृत्व में, लाहौर, दिल्ली, कोलकाता, और चेन्नई (Lahore, Delhi, Kolkata, Chennai) समेत पूरे भारत में संघ का विस्तार हुआ। गोलवलकर, डॉ. हेडगेवार के माध्यम से ही संघ के सदस्य बने थे और उन्होंने संघ को व्यापक स्तर पर फैलाने का कार्य किया। गोलवलकर ने संघ के सिद्धांतों और विचारधारा को और भी मजबूत किया, जिससे यह संगठन हिंदू समाज में एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में स्थापित हुआ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की संगठनात्मक संरचना और कार्यप्रणाली


संघ में सबसे महत्वपूर्ण पद सरसंघचालक का होता है, जो पूरे संगठन की दिशा तय करता है। सरसंघचालक की नियुक्ति चयन द्वारा की जाती है, और वर्तमान सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी का नाम भी स्वयं निर्धारित करते हैं ।वर्तमान में, श्री मोहन भागवत(Mohan Bhagwat)संघ के सरसंघचालक हैं। संघ के अधिकतर काम शाखाओं के माध्यम से होते हैं, जो सार्वजनिक स्थानों पर सुबह या शाम को एक घंटे के लिए स्वयंसेवकों का मिलन आयोजित करती हैं। वर्तमान में भारत भर में संघ की लगभग 55,000 शाखाएँ हैं। शाखा संघ की बुनियाद है, और इन शाखाओं के द्वारा ही संघ इतना बड़ा संगठन बन पाया है। शाखाओं में होने वाली सामान्य गतिविधियों में खेल, योग, वंदना और भारत और विश्व के सांस्कृतिक पहलुओं पर बौद्धिक चर्चा शामिल हैं। संघ के संगठनात्मक ढांचे में केंद्र क्षेत्र, प्रांत, विभाग, जिला, तालुका, नगर, खंड, मंडल, ग्राम और शाखा का समावेश है। इस संरचना के माध्यम से संघ अपने कार्यों को देशभर में फैलाने और क्रियान्वित करने में सक्षम है।

संघ शाखाओं के प्रकार और उनकी गतिविधियाँ


सुबह शाम होने वाली मीटिंग या मिलन को शाखा या ब्रांच कहा जाता है। शाखा एक खुली जगह या मैदान में एक घंटे के लिए आयोजित की जाती है। इसमें व्यायाम, खेल, सूर्य नमस्कार, परेड, गीत और प्रार्थना की जाती हैं। आमतौर पर शाखा हर दिन एक घंटे के लिए लगती है। शाखाएँ निम्नलिखित प्रकार की होती हैं:

  1. प्रभात शाखा:- सुबह के समय लगने वाली शाखा को प्रभात शाखा कहा जाता है।
  2. सायं शाखा:- शाम के समय लगने वाली शाखा को सायं शाखा कहते हैं।
  3. रात्रि शाखा:- रात के समय लगने वाली शाखा को रात्रि शाखा कहा जाता है।
  4. मिलन:- सप्ताह में एक या दो बार लगने वाली शाखा को मिलन कहा जाता है।
  5. संघ-मंडली:- महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा को संघ-मण्डली कहा जाता है।

इन विभिन्न प्रकार की शाखाओं के माध्यम से संघ अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से संचालित करता है।

संघ परिवार के प्रमुख संबद्ध संगठन और उनका कार्यक्षेत्र

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से प्रेरित कई संगठन हैं, जो स्वयं को संघ परिवार का हिस्सा मानते हैं। संघ आज 80 से अधिक देशों में कार्यरत है। और पुरे विश्व में संघ के करीब 55 राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय सहायक संगठन है । इसके अलावा, 200 से अधिक संगठन क्षेत्रीय स्तर पर प्रभावशाली हैं। संघ के सहायक संगठनों में भारतीय जनता पार्टी (BJP), सहकार भारती, भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, सेवा भारती, राष्ट्र सेविका समिति, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), विश्व हिंदू परिषद (VHP), हिंदू स्वयंसेवक संघ, स्वदेशी जागरण मंच, सरस्वती शिशु मंदिर, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, बजरंग दल, लघु उद्योग भारती, भारतीय विचार केंद्र , विश्व संवाद केंद्र , राष्ट्रीय सिख संगत, हिंदू जागरण मंच (HJM), विवेकानंद केंद्र आदि का समावेश है। इन संगठनों के माध्यम से संघ परिवार समाज के विभिन्न पहलुओं में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है और अपने आदर्शों और विचारों को फैलाने का काम कर रहा है।

भारतीय समाज में संघ के योगदान

  1. राष्ट्रीय एकता और अखंडता:- संघ ने भारतीय समाज को एकजुट करने और विभिन्न जातियों, धर्मों और संस्कृतियों के बीच समानता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने के लिए कार्य किया है।
  2. समाज सेवा और मानव कल्याण:- संघ ने हमेशा समाज सेवा को अपनी प्राथमिकता दी है। इसके स्वयंसेवक प्राकृतिक आपदाओं, महामारी, और अन्य संकटों के दौरान लोगों की मदद करते हैं। विशेष रूप से ग्राम विकास, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, खाद्य वितरण, और स्वच्छता के क्षेत्र में संघ का योगदान सराहनीय रहा है।
  3. हिंदू संस्कृति का प्रचार:-
    संघ ने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित और बढ़ावा देने का कार्य किया है। यह संगठन भारतीय हिंदू संस्कृति को समाज में जागरूक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम और पहल करता है।

  1. शिक्षा के क्षेत्र में योगदान:- संघ ने के विभिन्न सहायक संगठनों के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए गए हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) जैसे संगठन ने छात्रों को सामाजिक और राष्ट्रीय दृष्टिकोण से जागरूक किया है। इसके अलावा, संस्कार भारती ने भारतीय कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अनेक प्रयास किए हैं।
  2. सामाजिक कल्याण और सेवा:- संघ ने समाज के कमजोर वर्गों, विशेष रूप से आदिवासियों, दलितों और पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए कई पहल की हैं। इसके स्वयंसेवक इन वर्गों के उत्थान के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर प्रदान करने का कार्य करते हैं।
  3. रक्षा और सुरक्षा:- संघ ने हमेशा देश की रक्षा और सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। इसने भारतीय सेना और सुरक्षा बलों के साथ मिलकर देश की सुरक्षा में अपनी भूमिका निभाई है और राष्ट्रीय संकट के समय नागरिकों को संगठित किया है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की  अन्य उपलब्धियां


  1. भारत में कश्मीर के विलय को लेकर भी संघ ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
  2. दादरा और नगर हवेली के भारत में विलय में संघ के स्वयंसेवकों ने अहम भूमिका निभाई। 21 जुलाई 1954 को संघ ने दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त किया, फिर 28 जुलाई को नरोली और फिपारिया, और अंततः सिलवासा को भी स्वतंत्र कराया। 2 अगस्त 1954 को संघ के स्वयंसेवकों ने पुर्तगाल का ध्वज उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, और दादरा नगर हवेली भारत सरकार को सौंप दिया।
  3. गोवा मुक्ति संग्राम में भी संघ के स्वयंसेवक सक्रिय रूप से शामिल हुए। जब नेहरू जी ने सशस्त्र हस्तक्षेप से मना किया, तो संघ के कार्यकर्ताओं ने जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में आंदोलन शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप कार्यकर्ताओं को दस साल की सजा हुई। परिस्थितियाँ बिगड़ने के बाद, भारत ने 1961 में सैनिक हस्तक्षेप किया और गोवा स्वतंत्र हुआ।
  4. 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने 1963 के गणतंत्र दिवस की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण दिया था और केवल दो दिनों की सूचना पर संघ से करीब तीन हजार से अधिक संघ सदस्य को पूर्ण गणवेश में परेड में शामिल हुए थे ।
  5. 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान संघ ने राहत कार्यों में सहयोग किया।
  6. राहत और पुनर्वास का कार्य संघ की पुरानी परंपरा रही है। संघ ने 1971 के उड़ीसा चक्रवात और 1977 के आंध्र प्रदेश चक्रवात के बाद राहत कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संघ के स्वयंसेवकों ने इन आपदाओं के दौरान प्रभावित क्षेत्रों में राहत पहुंचाई और पुनर्वास कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लिया।
  7. इसके अलावा, सेवा भारती, जो संघ से जुड़ा एक संगठन है, ने जम्मू और कश्मीर से आतंकवाद के कारण प्रभावित 57 अनाथ बच्चों को गोद लिया है, जिनमें से 38 मुस्लिम और 19 हिंदू हैं।

आरोप, आलोचनाएं और प्रतिबंध का सिलसिला


संघ का विवादों से पुराण नाता रहा है और इसपर बार - बार भारतीय राजनीती में हस्तक्षेप करने के आरोप लगते रहे है। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के इतिहास में इस पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया है।

  1. 30 जनवरी 1948 को संघ के पूर्व सदस्य नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया गया था। क्योंकि पंडित जवाहरलाल नेहरू इस हत्या के लिए संघ को जिम्मेदार मानते थे। हालांकि बाद में एक जाँच समिति की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद संघ को आरोपों से मुक्त कर दिया गया और प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया।
  2. 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आपातकाल (Emergency) घोषित किया, जिसके बाद आरएसएस समेत कई संगठनों पर प्रतिबंध लगाया गया था । इस दौरान संघ के कई नेताओं और स्वयंसेवकों को गिरफ्तार किया गया और संगठन की गतिविधियों पर रोक लगा दी गई।
  3. 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद, इस विनाश में संघ की भूमिका होने के आरोप करते हुए तत्कालीन सरकार द्वारा संघ पर प्रतिबंध लगाया था । हालांकि मार्च 1993 में, संघ द्वारा कानूनी प्रक्रिया के तहत अपनी सफाई देने के बाद, यह प्रतिबंध हटा लिया गया।

आरएसस और भगवा ध्वज: पहचान, विवाद और स्वीकार्यता


आरंभिक दौर में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगे की बजाय भगवा ध्वज को अपनाने का समर्थक था। 17 जुलाई 1947 को संघ के मुखपत्र "ऑर्गनाइज़र" में प्रकाशित "राष्ट्रीय ध्वज" शीर्षक संपादकीय में संघ ने भगवा ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार करने की मांग रखी थी।

संघ अपने कार्यक्रमों और आयोजनों में तिरंगे की जगह भगवा ध्वज को प्रमुखता देता रहा है, जिससे उसे कई बार विवादों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। हालांकि, समय के साथ संघ ने तिरंगे को स्वीकार किया, और आज स्वतंत्रता दिवस तथा गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्वों पर संघ मुख्यालय में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया जाता है। फिर भी, आरएसस अपने संघ ध्वज (भगवा ध्वज) को अपनी पहचान और प्रेरणा का प्रतीक मानता है।

संघ से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

  1. जो भी सदस्य शाखा में स्वयं की इच्छा से आता है, वह "स्वयंसेवक" कहलाता हैं।
  2. संघ में 1 करोड़ से अधिक प्रशिक्षित सदस्य शामिल है।
  3. उत्तर प्रदेश में संघ के 8000 से अधिक शाखा है , केरला जैसे कम हिंदू जनसँख्या वाले राज्य में भी 5000 शाखा है।
  4. विश्व में 40 से अधिक देशों में संघ की 57000 शाखाएं है और इन सभी शाखाओं हर रोज 50 लाख से अधिक लोग शामिल होते है।
  5. देश की हर तहसील समेत 60 हजार गावों में संघ की शाखाएं लगती है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भारत का एक प्रमुख सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी संगठन है, जिसने सामाजिक सेवा, राष्ट्रवाद, और हिंदू संस्कृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अपने शाखा मॉडल और अनुशासित कार्यशैली के माध्यम से संघ ने लाखों स्वयंसेवकों को राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरित किया है। हालांकि, अपने विचारों और कार्यप्रणाली को लेकर संघ कई बार विवादों और आलोचनाओं का सामना कर चुका है, फिर भी यह संगठन भारतीय समाज, शिक्षा, आपदा राहत, और राष्ट्रीय एकता के क्षेत्र में सक्रिय रूप से योगदान देता रहा है। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS) एक मजबूत और प्रभावशाली संगठन के रूप में स्थापित है, जो भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में अपनी भूमिका निभा रहा है।

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