घर-घर में दफ्न लाशें ! खौफ़ ऐसा, नहीं आता कोई भी रिश्तेदार

आगरा से करीब 30 किमी की दूरी पर अछनेरा ब्लॉक के छह पोखर गांव में 200 से ज्यादा मुस्लिम परिवार रहते है और यहां तकरीबन हर घर में कब्र बनी है। असल में, गांव में कब्रिस्तान नहीं है। 1964 में कब्रिस्तान की जमीन तालाब के हिस्से में चली गई थी। 80 के दशक में प्रशासन ने रेलवे लाइन के पास कब्रिस्तान के लिए जमीन दी थी।

Update:2019-08-18 12:02 IST

आगरा: आगरा से करीब 30 किमी की दूरी पर अछनेरा ब्लॉक के छह पोखर गांव में 200 से ज्यादा मुस्लिम परिवार रहते है और यहां तकरीबन हर घर में कब्र बनी है। असल में, गांव में कब्रिस्तान नहीं है। 1964 में कब्रिस्तान की जमीन तालाब के हिस्से में चली गई थी। 80 के दशक में प्रशासन ने रेलवे लाइन के पास कब्रिस्तान के लिए जमीन दी थी। गांव के प्रधान सुंदर बताते हैं कि कब्रिस्तान के लिए दी गई जमीन पर समाज के ही लोगों ने अपने मकान बना लिए। यही कारण है कि अब उन्हें घरों में कब्रें बनानी पड़ रही हैं।

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गांव के एक निवासी सरदार खान ने बताया कि उनके घर के सामने करीब डेढ़ हजार स्क्वेयर फीट से ज्यादा जमीन पड़ी हुई है। इसमें 10 से ज्यादा लोगों को सुपुर्द-ए-खाक किया गया था। 4 कब्रें पिछले डेढ़-दो साल में बनी हैं। कब्रों की वजह से बहुत सी परेशानियां भी उठानी पड़ती है। घर के बाहर कब्रें होने के कारण शादी करना मुश्किल होता है। रिश्तेदार भी आने से कतराते हैं। बड़ी मुश्किल से हमारे बच्चों के ब्याह तय हो पाए हैं।

'जमीन कम पड़ने लगी, इसलिए पक्की कब्र नहीं बनाते'

निवासी नफीसा बताती हैं कि घर के सामने हमारे दादा की कब्र है। उनकी पक्की कब्र बनाई गई थी, लेकिन अब जगह की कमी होने की वजह से हम पक्की कब्र नहीं बनाते। परिवार के किसी सदस्य का इंतकाल होने के बाद उन्हें ऐसे ही घरों के सामने दफन कर देते हैं। नफीसा बताती हैं कि घर के पास कब्रें होने से बच्चे डर जाते हैं। कभी कोई साया भी दिख जाए तो बच्चे रोने लगते हैं। स्थिति यह है कि रात में उठने और घर से निकलने में भी डर लगता है।

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'पहला निवाला पुरखों के नाम'

गांव की 60 वर्षीय मुन्नी बताती हैं कि पुरखों की कब्र के सामने ही हमारे घर का चूल्हा है। वहीं खाना बनता है। पहला निवाला दफन हुए पुरखों के लिए निकाला जाता है। घर में कब्र होने के कारण बच्चे कभी-कभार डरकर बीमार पड़ जाते हैं, लेकिन जगह की कमी के कारण हमें घर में ही कब्र बनानी पड़ रही है।

'नपाई होती है, लेकिन जमीन नहीं मिलती'

कब्रिस्तान बनवाने के लिए गांव के लोगों ने कई बार धरना-प्रदर्शन किया। अफसरों से लेकर नेताओं तक कई बार ज्ञापन भी भेजे गए। लेकिन, लेखपाल की नपाई के बाद सारे प्रयास धरे रह जाते हैं।

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प्रधान सुंदर बताते हैं कि जब भी लेखपाल जमीनों की नापजोख के लिए आते हैं, वे प्रशासन द्वारा आवंटित की गई कब्रिस्तान की जमीन पर मुस्लिम परिवारों के कब्जे दिखाते हैं। कब्रिस्तान के लिए मकान हटाने की शर्त पर कोई राजी नहीं होता है, इसलिए सब योजनाएं फेल हो जाती हैं।

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