इलाहाबाद : रामपुर में खनन की गलत परमिट देने के मामले में हाईकोर्ट के आदेश के क्रम में यूपी सरकार रामपुर के दोनों पूर्व जिलाधिकारियों राकेश कुमार सिंह व राजीव रौतेला के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करेगी। प्रदेश के महाधिवक्ता राघवेन्द्र सिंह ने इस मामले को लेकर सुनवाई कर रही चीफ जस्टिस डी.बी.भोसले व जस्टिस सुनीत कुमार की खण्डपीठ के समक्ष बताया कि जहां तक दोनों अधिकारियों के निलंबन का सवाल है तो अभी तक कोई ठोस सबूत उनके खिलाफ जांच में नहीं पाया गया।
कोर्ट द्वारा यह पूछे जाने पर कि उसके पूर्व आदेशोें का पालन क्यों नहीं हुआ तो इस पर महाधिवक्ता ने कहा कि सरकार उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाई करेगी। मालूम हो कि हाईकोर्ट ने विगत दिनों एक कड़ा आदेश पारित कर रामपुर में एक अवैध खनन की परमिट को लेकर वहां के दो पूर्व जिलाधिकारियों राकेश कुमार सिंह व राजीव रौतेला के निलंबन पर विचार कर निर्णय लेने का प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था। साथ ही यह भी कहा गया था कि सरकार इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करे परंतु इन दोनों ही निर्देशों का अनुपालन न होने से कोर्ट खफा थी। जिस पर महाधिवक्ता ने विभागीय कार्रवाई करने का इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट को आश्वासन दिया। अब हाईकोर्ट पुनः इस केस पर 16 मार्च को सुनवाई करेगी।
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किराएदारी खत्म होने पर मकान मालिक को मुआवजे के साथ कब्जा लेने का हक
इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किराएदारी अवधि समाप्ति होने के बाद यदि किराएदार कब्जा नहीं देता तो मकान मालिक नियमानुसार परिसर खाली करा सकता है। यही नहीं मकान मालिक जितने किराए पर मकान उठा सकता था, उतनी दर से क्षतिपूर्ति पाने का हकदार होगा।
यह आदेश न्यायमूर्ति एस.पी.केशरवानी ने जीटीबी नगर करैली, इलाहाबाद के डाक्टर आर अमीन खान की पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए दिया है। मकान मालिक ने याची की किरायेदारी समाप्त कर दी और मकान खाली करने का अनुरोध किया। मकान खाली न करने पर मकान मालिक ने लघुवाद न्यायालय मेें एक वाद दायर किया। उस वाद मेें उसके पक्ष में डिक्री हासिल हुई जिसे पुनरीक्षण याचिका दाखिल कर याची ने चुनौती दी थी।
कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि किरायेदारी समाप्त होने के बाद किरायेदार को मकान के कब्जे में बने रहने का हक नहीं है।
लोक सेवा आयोग भर्ती की सीबीआई जांच की अधिकारिता पर बहस जारी
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की पांच साल की परीक्षाओं की जांच सीबीआई को सौंपने की अधिकारिता के खिलाफ दाखिल याचिका पर सोमवार से सुनवाई जारी है। याचिका आयोग की तरफ से दाखिल की गयी है। आयोग के अधिवक्ता ने कहा कि आयोग एक संवैधानिक स्वायत्त संस्था है। उसके अध्यक्ष व सदस्यों के आचरण व भ्रष्टाचार के मामले में पद से हटाने अथवा उन्हें निलंबित करने की जांच करने का अधिकार अनुच्छेद 317 के तहत केवल सुप्रीम कोर्ट को ही है। अन्य कोई आयोग के क्रियाकलापों की जांच नहीं कर सकता।
उनका कहना था कि राज्यपाल की संस्तुति पर राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुप्रीम कोर्ट जांच कर कार्रवाई कर सकता है। इस तर्क के समर्थन में नजीरें भी पेश की गई। सुनवाई के दौरान कई सवाल भी उठे कि यदि आयोग अपनी कर्मचारियों की अनियमितता की शिकायत पर कार्रवाई नहीं करता तो राज्य सरकार क्या मूकदर्शक रहेगी। वह भी ऐसी दशा में जब वह आयोग के अध्यक्ष को हटाने की मांग नहीं करती। यह भी सवाल उठा कि व्यापक अनियमितता पर क्या सेवा से हटाना ही दण्ड है। या आपराधिक कार्रवाई भी की जानी चाहिए।
मामले की सुनवाई कर रहे चीफ जस्टिस डी.बी.भोसले व जस्टिस सुनीत कुमार की खण्डपीठ ने यह भी जानना चाहा कि यदि जांच के बाद सीबीआई इस निष्कर्ष पर आती है कि प्राथमिकी दर्ज कर विवेचना किया जाना जरूरी है तो ऐसे में क्या प्रक्रिया अपनानी होगी। हालांकि याची के वकील का कहना था कि राज्य सरकार को केवल सुप्रीम कोर्ट के जरिये जांच कराने की कार्रवाई का अधिकार है।
सीबीआई रेड कार्नर नोटिस के बाद भी निदेशकों पर क्यों नहीं कर रही कार्यवाही : हाईकोर्ट
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कानपुर की राजेन्द्रा स्टील कम्पनी की सम्पत्तियों की जांच कर रही सीबीआई से पूछा है कि वह कब तक जांच पूरी कर लेगी। अमेरिका में रह रहे निदेशकों डी.एस.बत्रा व एन.के. अग्रवाल को 2005 में रेड कार्नर नोटिस जारी हुई है। 2006 से सीबीआई जांच कर रही है। अभी तक आरोपियों का प्रत्यर्पण क्यों नहीं हो सका।
कोर्ट ने सीबीआई अधिवक्ता सहायक सालीसिटर जनरल ज्ञान प्रकाश से जानकारी उपलब्ध कराने को कहा है। याचिका की अगली सुनवाई 09 फरवरी को होगी। याची अधिवक्ता कष्ष्णजी शुक्ल व आफीशियल लिक्वीडेटर के अधिवक्ता अर्नव बनर्जी ने पक्ष रखा।
यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र ने सती राम यादव व अन्य श्रमिकों की बकाया भुगतान की मांग में दाखिल अर्जी की सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट के निर्देध पर सीबीआई ने प्रगति रिपोर्ट दाखिल कर कंपनी के पूर्व निदेशकों के प्रत्यर्पण की कार्यवाही 2011 से की जा रही है। 2013 में अमेरिका ने भारत सरकार से निदेशकों के खिलाफ दाखिल आठों मामलों में अलग-अलग प्रत्यर्पण मांगने का पत्र लिखा है।
सीबीआई सभी मामलों में प्रत्यर्पण की कार्यवाही कर रही है। कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की कि पिछले दस सालों से जांच चल रही है और सीबीआई आरोपियों तक नहीं पहुंच सकी है। कोर्ट ने ठोस कार्यवाही करने की जानकारी मांगी है और चेतावनी दी है कि यदि सीबीआई ऐसी ही ढीली कार्यवाही करेगी तो कोर्ट निदेशक को तलब कर जानकारी लेने का आदेश देगी। कंपनी के समापन के बाद कंपनी की कई शहरों में स्थित सम्पत्तियों को छिपाकर बेचने या दूसरों को कब्जा सौंपने का आरोप है। कोर्ट ने निदेशकों द्वारा कानून के विपरीत कार्य करने की जांच सीबीआई को सौंपी है, सुनवाई 09 फरवरी को होगी।