राष्ट्रीय चम्बल सेंचुरी की गोद में चहक रहा नन्हा नवजीवन

संकटग्रस्त प्रजाति विश्व प्रसिद्ध घड़ियालों व मगरमच्छों सहित कई प्रकार के कछुओं, विभिन्न प्रजातियों दुनिया भर में मशहूर, है।

Written By :  Sandeep Mishra
Published By :  Shweta
Update: 2021-06-23 08:59 GMT

 पानी में मगरमच्छ

Lucknow News: संकटग्रस्त प्रजाति विश्व प्रसिद्ध घड़ियालों व मगरमच्छों सहित कई प्रकार के कछुओं, विभिन्न प्रजातियों के लोकल व माइग्रेटरी पक्षियों, राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन (सूँस) के प्राकृतिक वास के लिए,दुनिया भर में मशहूर,यह एक मात्र ट्राइस्टेट इको रिजर्व (यूपी,एमपी,राजस्थान) में फैला राष्ट्रीय वन्यजीव विहार,राष्ट्रीय चम्बल सेंचुरी इस समय प्रकृति की गोद मे जन्में नन्हे नन्हे मेहमानों की गूं गू की धीमी धीमी आवाजों से गुलजार है। इस बार बड़ी अच्छी संख्या में चम्बल नदी में घड़ियालों के छोटे छोटे बच्चे पानी मे देखने को मिल रहे है। बीते शुक्रवार लगभग घड़ियालों के 1504 बच्चे चम्बल नदी के पानी में छोड़े गए।

जो कि पानी मे अठखेलियां करते नजर आ रहे है। वहीं 700 अंडे लखनऊ कुकरैल भेजे गए । सेंचुरी क्षेत्र के वन्यजीव अधिकारियों के अनुसार इस बार इटावा रेंज में घड़ियालों के 55 घोंसलों में से इस कुल 1504 बच्चे अंडो से निकले हैं। ऐसा माना जाता है कि, अमूमन घड़ियाल के एक नेस्ट में मौजूद लगभग 40 से 60 अंडो में से 30 तक ही बच्चे निकलते हैं। जिनका सर्वाइवल रेट भी घटता बढ़ता रहता है। जनपद में स्थित इस वन्यजीव अभ्यारण में बड़ी संख्या में नन्हे मेहमानों के कलरव से नदी के पानी मे आजकल हलचल है। विदित हो कि, पूर्व में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुई एक रिसर्च के अनुसार धरती पर मौजूद इस सरीसृप प्रजाति में लिंग निर्धारण हमेशा तापमान पर ही निर्भर हुआ करता है। जिसमें कि, तापमान 28 से 30 डिग्री होने पर नर घड़ियाल व 30 से 32 या 33 डिग्री तक होने पर मादा घडियाल की उतपत्ति होती है।वही दूसरी ओर यदि 35 डिग्री तक घोंसले (नेस्ट) का तापमान बढ़ता है तो उसमे मौजूद अंडे लगभग खराब ही हो जाते है फिर उनमें कोई जीवन शेष नही रहता है। राष्ट्रीय वन्यजीव विहार इटावा रेंज के क्षेत्रीय वनाधिकारी हरि किशोर शुक्ला के अनुसार इस वर्ष कुल मौजूद घोंसलों में से निकले बच्चों में मात्र 5 प्रतिशत तक ही घड़ियाल के बच्चे ही भविष्य में सर्वाइव कर पाएंगे।


वहीं डीएफओ राष्ट्रीय चम्बल सेंचुरी इटावा दिवाकर श्रीवास्तव ने बताया कि, चम्बल में पिछले वर्ष की गणना के अनुसार नदी में 1910 घडियाल व 598 मगरमच्छ मौजूद थे। इस वर्ष इनके प्रजनन का तापमान सही है यह समय घड़ियालों संतति को आगे बढ़ाने के लिये मुफीद भी है। सेंचुरी क्षेत्र में किसी भी नेस्ट में मौजूद कुल अंडो में से लगभग 30 अंडो से ही बच्चों के निकलने की संभावना रहती है। वहीं सेंचुरी में मौजूद मगरमच्छ की नेस्टिंग घडियाल से लगभग 15 दिन देर से ही चलती है व इनका नेस्ट घड़ियालों की अपेक्षा नदी से लगभग 200 से 300 मीटर तक दूर होता है। बस थोड़ी चिंतनीय बात यह है कि, अंडो से निकले बच्चे अक्सर ही प्राकृतिक शिकारी बाज, या अन्य जीव जन्तुओ के शिकार हो जाते है जिनमे कई शिकारी पक्षी इन्हें अपना भोजन भी बना लेते है क्योंकि ये किनारे ही तैरते है गहरे पानी में नहीम जा पाते है तभी कुछ पानी मे तैरते बच्चे मगर का भी शिकार हो जाते है फिर जुलाई माह में नदी के जलस्तर बढ़ने पर ये नंन्हे जीव बहुत दूर तक पानी के साथ बह कर भी चले जाते है। तब उस समय नदी का पानी गन्दा होने पर ये नदी किनारे भी आ जाते है तब इनकी संख्या प्राकृतिक प्रकोप व नेचुरल प्रीडेशन के कारण प्राकृतिक रूप से घटती ही है। 


अब धीरे धीरे वन्यजीव प्रेमियों के लिये भी यह एक अच्छी खबर है कि, इटावा की शान रही चम्बल नदी में घड़ियालों का कुनवा बढ़ रहा है। चम्बल नदी अब घड़ियालों व मगरमच्छों सहित अन्य प्रजातियों की सुरक्षित शरणस्थली भी बनती जा रही है। अब भविष्य में चम्बल मैं मौजूद इन प्रजातियों सहित अन्य प्रजातियों के भी यहाँ फलने फूलने से इन्हें देखने आने वाले पर्यटकों की संख्या में इजाफा भी अवश्य होगा व लोगों के आय के नये स्रोत भी बनेंगे,साथ ही पचनद पर्यटन शुरू होने से बीहड़ क्षेत्र की तस्वीर भी अवश्य ही बदलेगी। राष्ट्रीय चंबल विहार के डीएफओ दिवाकर श्रीवास्तव बताते है कि इटावा की शान रही चम्बल नदी में घड़ियालों का कुनबा साल दर साल बढ़ रहा है, इस वर्ष पूरी गणना में कुल 4050 घड़ियालो के हेचलिंग्स काउंट हुये है वहीं पिछले वर्ष की गणना के अनुसार नदी में 1910 घडियाल व 598 मगरमच्छ मौजूद है।

वन्य जीव जंतु विशेषज्ञ डॉ0 आशीष त्रिपाठी का मानना है कि किसी भी नदी में जैवविविधता की संख्या का लगातार बढ़ते रहना उस नदी के स्वस्थ्य इकोसिस्टम होने का एक अच्छा संकेत है। क्षेत्रीय वनाधिकारी राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी हरि किशोर शुक्ला बताते हैं कि क्षेत्र की नदी में मौजूद घड़ियालों के सभी बच्चों का सर्वाइवल रेट भविष्य में मात्र 2 से 5 प्रतिशत तक ही सीमित होता है।

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