और जब संजय गांधी के वफादार रहे जगमोहन बन गए अटल के वफादार

केन्द्रीय गृह मंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जब आज पूर्व नौकरशाह जगमोहन से मिले तो कई सालों बाद राजनीतिक क्षेत्र के लोगों ने उनकी कार्यशैली की चर्चा की और इंदिरा गांधी के जमाने से लेकर अटल सरकार तक के कार्यकाल को याद करने लगे।

Update:2023-03-20 22:33 IST

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: केन्द्रीय गृह मंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जब आज पूर्व नौकरशाह जगमोहन से मिले तो कई सालों बाद राजनीतिक क्षेत्र के लोगों ने उनकी कार्यशैली की चर्चा की और इंदिरा गांधी के जमाने से लेकर अटल सरकार तक के कार्यकाल को याद करने लगे।

पूर्व नौकरशाह रहे जगमोहन की खास बात यह है कि वह कभी इंदिरा गांधी के खासमखास हुआ करते थे। नब्बे के दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार का वह दौर याद भी याद आ गया जब वह काश्मीर के राज्यपाल हुआ करते थे और जगमोहन की कार्यशैली से काश्मीर के हालात में सुधार हुए थे।

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जगमोहन मल्होत्रा उस समय चर्चा में आए जब इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल की घोषणा की । उस समय जगमोहन मल्होत्रा दिल्ली विकास प्राधिकरण के चेयरमैन हुआ करते थे। तब इंदिरा गांधी के बेटे संजय गाधीं बेहद चर्चित हुआ करते थे। उस जमाने में संजय गांधी के इशारे पर जामा मस्जिद के पास बनी झुग्गी झोपडी को हटवाने का काम किया था। उनकी इस कार्यशैली की खूब चर्चा हुई थी।

जगमोहन के कार्यकाल के दौरान ही झुग्गियों को तोड़ने को लेकर दिल्ली में दहशत का माहौल बन गया. और तरह तरह की चर्चाएं होने लगी। चूंकि अधिकतर झुग्गी झोपडियां पुरानी दिल्ली की बहुसंख्यक आबादी मुस्लिम थी। तो राजनीतिक माहौल के तहत यह बात उडा दी गयी कि जगमोहन मुसलमानों से नफरत करते हैं जबकि जगमोहन कहते थे कि उनका इरादा जामा मस्जिद का पूरा इलाका साफ करने का था, क्योंकि धीरे धीरे पूरा इलाका वह पाकिस्तान बनता जा रहा था।

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उनकी इसी छवि को याद रखरकर जब देश में अटल विहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो जगमोहन को कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया। उस समय काश्मीर में आतंकवाद चरम पर था। इसके पहले भी वह इंदिरा गांधी की सरकार में राज्यपाल बन चुके थे। जब वह फारूख अब्दुल्ला को हटाकर उनके बहनोई गुल शाह को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं। रिश्ते में इंदिरा के भाई तत्कालीन राज्यपाल बीजू नेहरू ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो उनकी जगह जगमोहन लाए गए।

जगमोहन को जब 1990 में कुछ महीनों के लिए जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने तो उस समय विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को भाजपा का समर्थन मिला हुआ था। भाजपा जगमोहन के कार्यकाल को बढाना चाहती थी लेकिन जगमोहन की कार्यशैली से तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह संतुष्ट नहीं थें। जिसे लेकर दोनो दलों में मतभेद भी उभरे थें।

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खासबात यह है कि उनके राज्यपाल बनने से पहले 1987-88 से ही पंडितों ने घाटी छोड़ना शुरू कर दिया था। 14 सितंबर 1989 को भाजपा नेता पंडित टीका लाल टपलू की निर्मम हत्या कर दी गयी। गंजू ने जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल भट्ट को मौत की सजा सुनाई थी।

ऐसे माहौल में श्रीनगर पहुंचे जगमोहन ने कश्मीरी पंडितों को घाटी से सुरक्षित निकलने का मौका मुहैया कराया, जिसके लिए पंडित उन्हें आज भी मसीहा मानते हैं। बाद में जगमोहन भाजपा में शामिल हो गए और वाजपेयी सरकार में मंत्री बने। जिसके बाद जगमोहन लगाता कई सालों तक गैरभाजपा दलों के निशाने पर रहे।

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