मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ: कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35 ए हटाने का खुमार स्वाधीनता दिवस पर उत्तर प्रदेश में भी दिखा। इस साल पिछले साल से अधिक राष्ट्रीय झंडे झंडे के विक्रेता और खरीदार दिखे। वैसे तो ध्वजारोहण के लिए खादी आश्रम के ही राष्ट्रीय झंडे मान्य हैं, लेकिन जब से कांग्रेस नेता नवीन जिंदल ने सर्वोच्च न्यायालय से अपने घरों पर भी राष्ट्रीय झंडा फहराने का अदालती आदेश हासिल कर लिया है, तब से खादी आश्रम से बड़ा बाजार बाहर के राष्ट्रीय झंडे का हो गया है, जो कपड़े और कागज के बनते हैं। अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के बाद राष्ट्रवाद के उभार के दौर में छोटी दुकानों पर भी कपड़े के झंडे मिलते दिखे। इस बार बड़े राष्ट्रीय झंडे भी जमकर बिकते दिखे।
हालांकि खादी आश्रम द्वारा बेचे जाने वाले राष्ट्रीय झंडों की संख्या में इस साल कमी देखने को मिली है। खादी आश्रम से राष्ट्रीय झंडों की बिक्री कम होने की बड़ी वजह बाहर बाजार में बेचे जाने वाले राष्ट्रीय झंडों का खादी आश्रम की तुलना में सस्ता होना भी है। यूपी में राजनीतिक दलों के बिल्ले, पोस्टर व झंडे बेचने वाले दुकानदारों ने मंदी के चलते अपने स्टाल पर राष्ट्रीय ध्वज को भी जगह दी। इन स्टालों पर राष्ट्रीय ध्वज की बिक्री ने बहुत दिनों से मायूस पड़े दुकानदारों के चेहरे पर खुशी की रेखा खींच दी।
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चार दिन चलता है काम
इस बार सड़क किनारे ठेले और खोमचों पर जमकर राष्ट्रीय ध्वज बेचे गए। केवल राजधानी लखनऊ में ही सैकड़ों ठेलों व दुकानों पर राष्ट्रीय ध्वज बेचे गए। ठेले और खोमचे वाले चार दिन ही ये काम करते हैं और प्रतिदिन तीन हजार रुपये के राष्ट्रीय ध्वज बेच लेते हैं। गोमतीनगर में फन माल के सामने ठेला लगाने वाले राजू निषाद ने बताया कि उसने 11 अगस्त से 15 अगस्त तक राष्ट्रीय ध्वज बेचा। रिवर फ्रंट पर ठेला लगाने वाले संतोष बताते हैं कि वे बीते दो साल से यह काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि यह काम कुल चार-पांच दिन का होता है। उसके बाद हम इन राष्ट्रीय ध्वजों को फिर से पैक करके रख देते हैं और अगले राष्ट्रीय पर्व पर बेचते हैं। यह पूछे जाने पर कि वह राष्ट्रीय ध्वज के बारे में क्या जानते हैं तो वह कुछ नहीं बता सकें, लेकिन यह जरूर कहा कि लोगों में इसकी खरीदारी में इस बार ज्यादा उत्साह दिखा।
तिरंगे की बिक्री से अच्छी कमाई
इंदिरा नगर में सेंट्रल स्कूल के सामने ठेला लगाने वाले राजेश पुष्कर ने बताया कि वैसे तो वे प्लास्टिक का सामान बेचते हैं, लेकिन दोस्तों की सलाह पर उन्होंने पहली बार राष्ट्रीय ध्वज बेचा। उन्होंने बताया कि यह केवल चार से पांच दिन का काम है, लेकिन इसमें लाभ ज्यादा है। रोज का एक हजार रुपया बच जाता है, जबकि प्लास्टिक का सामान बेचने में पांच से छह सौ रुपये ही बच पाते थे। हजरतगंज के सेन्ट फ्रांसिस स्कूल के सामने खोमचा लगाकर तिरंगा बेचने वाले गुलशन ने बताया कि वह दो-तीन साल से तिरंगे की बिक्री कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि सभी ठेले व खोमचे वाले स्थानीय थोक बाजार यहियागंज से खरीदकर तिरंगा बेचते हैं। वे बताते हैं कि हर ठेले या खोमचे पर राष्ट्रीय ध्वज के अलावा तिरंगे बिल्ले, तोरण, कैप और हैंड बैंड भी बेचे जाते हैं। इस बार 10 रुपये से लेकर 500 रुपये तक के झंडे-बिल्ले आदि बेचे गए। चार दिन के इस व्यवसाय में प्रतिदिन करीब एक हजार रुपये बचे जो किसी अन्य सामान को बेचने में नहीं बचते है। गुलशन बताते हैं कि वैसे तो इस काम में नुकसान का अंदेशा कम ही रहता है क्योंकि जो सामान बच जाता है उसे संभालकर रख लिया जाता है और अगले राष्ट्रीय पर्व पर फिर से बेचा जाता है। वैसे जब मौसम खराब होता है तो कभी-कभी नुकसान भी हो जाता है।
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भारतीय ध्वज संहिता
भारत का राष्ट्रीय ध्वज भारत के लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिरूप है। यह राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। सभी के मार्गदर्शन और हित के लिए भारतीय ध्वज संहिता-2002 में सभी नियमों, रिवाजों, औपचारिकताओं और निर्देशों को एक साथ लाने का प्रयास किया गया है। भारतीय ध्वज संहिता राष्ट्रीय ध्वज को फहराने व प्रयोग करने के बारे में दिए गए निर्देश हैं। ध्वज संहिता-भारत के स्थान पर भारतीय ध्वज संहिता-2002 को वर्ष 2002 में 26 जनवरी को लागू किया गया। इसमें कहा गया है कि भारतीय ध्वज संहिता के तहत जब भी ध्वज फहराया जाए तो उसे सम्मानपूर्ण स्थान दिया जाए। उसे ऐसी जगह लगाया जाए, जहां से वह स्पष्ट रूप से दिखाई दे। सरकारी भवन पर झंडा रविवार और अन्य छुट्टियों के दिनों में भी सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाता है। विशेष अवसरों पर इसे रात को भी फहराया जा सकता है। झंडे को सदा स्फूर्ति से फहराया जाए और धीरे-धीरे आदर के साथ उतारा जाए। फहराते और उतारते समय बिगुल बजाया जाता है तो इस बात का ध्यान रखा जाए कि झंडे को बिगुल की आवाज के साथ ही फहराया और उतारा जाए।
जब झंडा किसी भवन की खिड़की, बालकनी या अगले हिस्से से आड़ा या तिरछा फहराया जाए तो झंडे को बिगुल की आवाज के साथ ही फहराया और उतारा जाए। झंडे का प्रदर्शन सभा मंच पर किया जाता है तो उसे इस प्रकार फहराया जाएगा कि जब वक्ता का मुंह श्रोताओं की ओर हो और झंडा उनके दाहिने ओर हो। झंडा किसी अधिकारी की गाड़ी पर लगाया जाए तो उसे सामने की ओर बीचों-बीच या कार के दाईं ओर लगाया जाए। फटा या मैला झंडा नहीं फहराया जाता है। झंडा केवल राष्ट्रीय शोक के अवसर पर ही आधा झुका रहता है। किसी दूसरे झंडे या पताका को राष्ट्रीय झंडे से ऊंचा या ऊपर नहीं लगाया जाएगा, न ही बराबर में रखा जाएगा। झंडे पर कुछ भी लिखा या छपा नहीं होना चाहिए। जब झंडा फट जाए या मैला हो जाए तो उसे एकांत में पूरा नष्ट किया जाए। इसके लिए तीन तरीके हैं जिसमे झंडे को जमीन में दफन कर दिया जाए या उसे बहते जल में प्रवाहित कर दिया जाए या फिर उसे एकांत में जला दिया जाए।
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राष्ट्रीय ध्वज के मानक
भारतीय तिरंगा ध्वज देश में केवल दो ही स्थानों मुंबई में केडीपी इंटरप्राइजेज तथा हुबली में कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ में निर्मित होता है। यह तीन बराबर आयताकार पट्टियों से बना हुआ है, जिसमें शीर्ष पर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे वाली पट्टी में हरा रंग होता है। इसके साथ ही इसमे एक खादी ग्रे रंग की पट्टी भी होती है, लेकिन इसे ध्वज का हिस्सा नहीं माना जाता है। ध्वज इस तरह से सिला जाता है कि उसमें उल्टा व सीधा नहीं होता है। ध्वज का कोना ज्यादा मजबूत बनाया जाता है जिससे यह जल्दी खराब न हो। ध्वज की लंबाई और ऊंचाई का अनुपात 3 गुणे 2 होता है। बीच की पट्टी में गहरे नीले रंग के अशोक चक्र में 24 तीलियां होती हैं। एक मानक ध्वज हाथ से काटे गए और हाथ से बुने हुए ऊनी, सूती, सिल्क खादी के कपड़े से बनाया जाता है।
राष्ट्रीय ध्वज से संबंधित अपराध व दंड
झंडे की केसरिया पट्टी हमेशा सबसे ऊपर (शीर्ष प्रदर्शन के मामले में) और सटीक प्रदर्शित करके ही फहरानी चाहिए। झंडे को उल्टा (केसरिया पट्टी को नीचे) प्रदर्शित करके फहराना अपराध है। किसी फटे हुए या गंदे झंडे को प्रदर्शित करके फहराना भी एक अपराध है। किसी भी प्रयोजन के लिए राष्ट्रीय ध्वज को झुकाया नहीं जा सकता। राष्ट्रीय ध्वज का उपयोग किसी उत्सव या सजावट के रूप में नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही इसे जमीन से छूने नहीं दिया जाना चाहिए।
इसका उपयोग विज्ञापन, परिधान या किसी भी तरह की चादर के रूप में नहीं किया जाना चाहिए। इसे फाड़ा, क्षतिग्रस्त, जलाया या किसी भी तरह से अपमानित नहीं किया जा सकता। झंडे को आकर्षित करने के लिए उस पर किसी भी तरह का अभिलेख या भित्तिचित्र अंकित करना भी अपराध है। झंडे के अपमान पर नेशनल ऑनर एक्ट 1971 (2003 में संशोधित) में सजा का प्रावधान है। इसमे एक से तीन साल तक की जेल की सजा और जुर्माने का प्राविधान है।
सभी को मिली तिरंगा फहराने की अनुमति
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर तिरंगे को अपनाया था। संविधान कहता है कि भारत का राष्ट्रीय झंडा भारत के लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिरूप है। भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान इस झंडे के सम्मान और गौरव की रक्षा के लिए हजारों लोगों ने अपने जीवन का बलिदान कर दिया था। इस मौके पर सरोजनी नायडू ने कहा था कि यह झंडा केवल राजाओं, राजकुमारों व धनवानों का नहीं बल्कि देश के सभी नागरिकों, गरीबों और दबे कुचले लोगों के लिए है। लेकिन समय के साथ यह भावना दब गयी और राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अधिकार सीमित हो गया। उद्योगपति सांसद नवीन जिंदल के प्रयासों से उच्चतम न्यायालय के आदेश से 22 दिसम्बर 2002 को घरों और कार्यालयों में राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति मिली।
रात में भी फहरा सकते है राष्ट्रीय ध्वज
पहले राष्ट्रीय ध्वज को रात में नहीं फहराया जाता था, लेकिन अब भारतीय नागरिक रात में भी राष्ट्रीय ध्वज फहरा सकते हैं। इसके लिए शर्त होगी कि झंडे का पोल वास्तव में लंबा हो और झंडा खुद भी चमके। देश के गृह मंत्रालय ने उद्योगपति सांसद नवीन जिंदल द्वारा इस संबंध में रखे गए प्रस्ताव के बाद यह फैसला किया। इससे पहले जिंदल ने हर नागरिक के मूलभूत अधिकार के तौर पर तिरंगा फहराने के लिहाज से अदालती लड़ाई जीती थी। कांग्रेस नेता जिंदल को दिये गये संदेश में मंत्रालय ने कहा कि प्रस्ताव की पड़ताल की गयी है और कई स्थानों पर दिन और रात में राष्ट्रीय ध्वज को फहराने के लिए झंडे के बड़े पोल लगाने पर कोई आपत्ति नहीं है। जिंदल ने जून 2009 में मंत्रालय को दिए गए प्रस्ताव में बड़े आकार के राष्ट्रीय ध्वज को स्मारकों के पोलों पर रात में भी फहराने की अनुमति मांगी थी। जिंदल ने कहा था कि भारत की झंडा संहिता के आधार पर राष्ट्रीय ध्वज जहां तक संभव हो सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच फहराया जाना चाहिए, लेकिन दुनियाभर में यह सामान्य है कि स्मारकों पर बड़े राष्ट्रीय ध्वज 100 फुट या इससे उंचे पोल पर दिन और रात में फहराए जाते हैं।
राष्ट्रीय ध्वज के बारे में कुछ तथ्य
आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकय्या एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने तिरंगा का एक प्रारंभिक संस्करण तैयार किया था जिस पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज अब आधारित है। 22 जुलाई 1947 में संविधान सभा ने अपनी एक बैठक में वर्तमान भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया। 29 मई 1953 में भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा सबसे ऊंची पर्वत की चोटी माउंट एवरेस्ट पर यूनियन जैक तथा नेपाली राष्ट्रीय ध्वज के साथ फहराता नजर आया था। उस समय शेरपा तेनजिंग और एडमंड माउंट हिलेरी ने एवरेस्ट फतह की थी। 1984 में विंग कमांडर राकेश शर्मा ने तिरंगे को लेकर अंतरिक्ष के लिए पहली उड़ान भरी थी। 21 अप्रैल 1996 को स्क्वाड्रन लीडर संजय थापर ने एमआई-8 हेलिकॉप्टर से 10 हजार फीट की ऊंचाई से कूदकर पहली बार तिरंगा उत्तरी धुव पर फहराया। 7 दिसंबर 2014 को 50 हजार स्वयंसेवकों ने दुनिया में सबसे बड़ा मानव झंडा बनाकर गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज कराया था। 23 जनवरी 2016 को सबसे ऊंचा भारतीय ध्वज 293 फुट के स्तंभ पर फहराया गया था।