क्या आप जानते हैं, कौन हैं किसान आंदोलन के जनक? UP से क्या था उनका नाता
स्वामी सहजानंद सरस्वती को किसान आंदोलन का जनक कहा जाता है। स्वामी सहजानंद सरस्वती का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के एक ब्राह्मण परिवार में 22 फरवरी, 1889 को हुआ था। ऐसे में स्वामी सहजानंद सरस्वती दण्डी सन्यासी थे। लेकिन उन्होंने रोटी को ही भगवान माना। और अन्नदाता यानि किसान को भगवान से भी ऊपर।
Lucknow: केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ बीते दस महीने से विभिन्न किसान संगठन सड़क पर हैं। आजादी से पहले और बाद भी किसान आंदोलन होते रहे हैं। आजादी के बाद के आंदोलनों से निकले कई नेता आगे चलकर 'राजनेता' बनकर उभरे और राजनीतिक फलक पर छा गए। लेकिन आज बात उस व्यक्ति की जिन्हें किसान आंदोलन का जनक कहा जाता है। भारत में संगठित किसान आंदोलन खड़ा करने का श्रेय इसी शख्स को जाता है। इनका नाम है स्वामी सहजानंद सरस्वती।
स्वामी सहजानंद सरस्वती दण्डी सन्यासी थे। लेकिन उन्होंने रोटी को ही भगवान माना। और अन्नदाता यानि किसान को भगवान से भी ऊपर। उनके किसानों के लिए दिया नारा काफी चर्चित है। उन्होंने कहा था,
जो अन्न-वस्त्र उपजाएगा, अब सो कानून बनाएगा
यह भारतवर्ष उसी का है, अब शासन वही चलाएगा।
बचपन से ही थे कुशाग्र और गुणी
स्वामी सहजानंद सरस्वती का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के एक ब्राह्मण परिवार में 22 फरवरी, 1889 को हुआ था। सहजानंद सरस्वती के बचपन में ही उनकी माता का निधन हो गया था। उनके पिता किसान थे। स्वामी सहजानंद बचपन से ही कुशाग्र और गुणी थे। प्रारंभिक शिक्षा के दौरान ही उनकी प्रतिभा निकलकर सामने आने लगी थी। लेकिन पढ़ाई के दौरान ही उनका मन अध्यात्म की ओर जाने लगा था। कहते हैं, बचपन से ही स्वामी सहजानंद इस बात को देखकर हैरान थे, कि कैसे भोले भाले लोग नकली धर्माचार्यों की शरण में जा रहे हैं और उनसे गुरुमंत्र ले रहे हैं। इसके बाद ही उनके मन में पहली बार विद्रोह का भाव आया।
ऐसे शुरू हुआ संगठित किसान आंदोलन
कहते हैं जब महात्मा गांधी ने बिहार के चंपारण में निलहा किसान के समर्थन में अंग्रेजों के खिलाफ किसान आंदोलन शुरू किया तो उसके केंद्र में स्वामी सहजानंद ही थे। उन्होंने ही देश के अन्य हिस्सों में घूम-घूमकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लोगों को खड़ा किया। इस दौरान सहजानंद भारत को समझने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन जब उन्हें महसूस हुआ कि अन्न उपजाने वाले किसानों की हालत तो गुलामों से भी बदतर है, तब उन्होंने भारतीय इतिहास में संगठित किसान आंदोलन खड़ा करते हुए उसका नेतृत्व भी किया। स्वामी सहजानंद सरस्वती कांग्रेस के सदस्य थे, बावजूद उन्होंने जमींदारी शोषण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। अब उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी। तब अंग्रेजों ने डरकर उन्हें जेल में बंद कर दिया। 1927 में सहजानंद सरस्वती ने पश्चिमी किसान सभा की नींव रखी। साल 1936 में वो अखिल भारतीय किसान सभा के प्रमुख बने।
किसान राजनीति समझें
स्वामी सहजानंद ने अनुभव किया था, कि कैसे किसान की मेहनत का फल जमींदार, साहूकार, बनिया, महाजन, पंडे, ओझा यहां तक कि चूहे, कीड़े और पक्षी भी निगल लेते हैं। किसानों के लिए लिखी किताबों में स्वामी सहजानंद ने कहा, कि 'सबसे पहले किसान को समझना होगा, कि उसकी फसल पर पहला हक उसके परिवार का है।' सहजानंद ने यह भी कहा, 'किसानों को राजनीति की समझ होनी चाहिए ,साथ ही उन्हें जागरूक और सतर्क भी रहना होगा। अपने दुश्मन को समझने के लिए वर्ग चेतना विकसित करनी होगी।'
'...लट्ठ हमारा ज़िंदाबाद'
स्वामी जमींदारों को गोरों का 'भूरा दलाल' कहते थे। वर्ष 1934 में जब बिहार में भूकंप से भारी तबाही हुई थी, तब सहजानंद राहत कार्यों में जुटे थे। इसी दौरान उन्होंने देखा कि हर तरह से बर्बाद हो चुके किसानों से भी जमींदार के लठैत टैक्स वसूल रहे थे। तब उन्होंने किसानों को अपने हक के लिए खड़े होने का साहस दिया। साथ ही ये मंत्र भी दिया 'कैसे लोगे मालगुजारी, लट्ठ हमारा ज़िंदाबाद' । बाद के समय में यही नारा किसान आन्दोलनों में लगातार गूंजता रहा। कहा जाता है, सहजानंद सरस्वती की ओजस्वी वाणी किसानों को जोड़ने का काम करती थी।
सहजानंद सबके अपने रहे
स्वामी सहजानंद सरस्वती के आंदोलन का ही असर था कि राम मनोहर लोहिया हों, जयप्रकाश नारायण हों या नंबूदरीपाद, या फिर नरेंद्र देव, समाजवाद के ये सभी बड़े नाम किसान सभा से जुड़े थे। चाहें गांधी विचारधारा के हों या वामपंथी सोच के सुभाषचंद्र बोस जैसे क्रांतिकारी हों या अन्य, सहजानंद सरस्वती सबके लिए अपने ही रहे। स्वामी सहजानंद सरस्वती ने बिहार की राजधानी पटना के बिहटा में 'सीताराम आश्रम' स्थापित किया था, जो किसान आंदोलन का केन्द्र बना।
मीडिया के अलग-अलग माध्यमों से मिली जानकारी के अनुसार, स्वामी सहजानंद सरस्वती के नेतृत्व में किसान रैलियों में जितनी भीड़ जुटती थी, वह उस समय कांग्रेस पार्टी की सभा में जुटी भीड़ से कई गुना ज्यादा होती थी।
स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किताब लिखी 'किसान क्या करें'। इसमें उन्होंने कुछ मंत्र दिए :
- खान-पान सीखें ।
- इंसान की तरह जीना सीखें ।
- हिसाब रखें भी और लें भी ।
- डरें कतई नहीं ।
- लड़ना सीखें ।
- वर्गचेतना हासिल करें।
स्वामी सहजानंद सरस्वती की लिखी इस बातों को आज 80 साल बीत गए। लेकिन इसे वर्तमान परिदृश्य में किसान आंदोलन से जोड़कर देखें, सच्चाई समझ आ जाएगी। स्वामी सहजानंद सरस्वती को भारत में किसान आंदोलन का जनक माना गया है। वह ऐसे सन्यासी थे, जिन्हें देश के भूखे, नंगे और गरीबों में भगवान नजर आता था। तभी उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन उन्हीं के नाम कर दिया। 1950 में स्वामी सहजानंद सरस्वती का निधन हो गया। उनके निधन पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था 'दलितों का संन्यासी' चला गया। आजादी के इतने वर्षों बाद भी किसानों का संघर्ष आज भी जारी है।