Lucknow News: 150 वर्षों से हो रही महिलाओं की कुश्ती, नागपंचमी के दूसरे दिन होता है आयोजन

शनिवार को राजधानी के सुल्तानपुर रोड़ स्थित अहिमामऊ गांव में महिलाओं की 'पारंपरिक कुश्ती' का आयोजन हुआ।

Published By :  Raghvendra Prasad Mishra
Update: 2021-08-14 14:54 GMT

महिला कुश्ती में दांव आजमाती महिलाएं (फोटो-आशुतोष त्रिपाठी)

Lucknow News: शनिवार को राजधानी के सुल्तानपुर रोड़ स्थित अहिमामऊ गांव में महिलाओं की 'पारंपरिक कुश्ती' का आयोजन हुआ। महिलाओं की यह कुश्ती लखनऊ में पिछले 150 वर्षों से हो रही है। इसे 'हापा' कहा जाता है। इसका आयोजन नागपंचमी के दूसरे दिन इस गांव में होता है।


जानकारी के अनुसार, जब अवध में मुगलों का राज़ था, उसी वक़्त इस कुश्ती की शुरुआत हुई थी। लोग बताते हैं कि यहां पर बेगम साहिबा आराम फरमाने आया करती थीं। जिनकी मौजूदगी में यहां नाच-गाना, अवधी खान-पान व हापा का आयोजन किया जाता था।


बता दें कि गुरुवार से ही गांव की महिलाओं द्वारा दंगल यानि 'हापा' की तैयारी चल रही थी। जहां पुरुषों का आना सख्‍त मना है। हापा के लिए चुनौती जो एक महिला दूसरी महिला को देती है और शुरू होता है महिलाओं का दंगल।


विनय कुमारी औरों को मुकाबले के लिए ललकारती हैं और शांति मुकाबले के लिए मैदान में उतरती हैं। शुरू होता है दंगल। विनय कुमारी उसे जोरदार पटखनी देती हुई उसकी सीने पर चढ़कर बैठ जाती हैं।


शांति चारों खाने चित्‍त और जीत विनय कुमारी की होती है। इसके बाद राधा-बबली में राधा, बबली-सन्‍नो में बबली और राधा-राजकुमारी में राधा की जीत होती है। दंगल जीतने के लिए बबली को जहां पांच सौ रुपए मिले, वहीं अन्‍य विजेताओं को साड़ी दी गई।






 बेगम यहां आकर आराम फरमाती थीं

जानकारी के मुताबिक 150 वर्षों से नवाबों के जमाने में बेगम यहां आकर आराम फरमाती थी। उस समय नाच-गाना और खाना पीना हाेता था। महिलाएं आपस में मुंहजबानी कर चुहलबाजी करती थीं। मग़र समय के साथ यह सब बदल गया है। उस समय कुश्‍ती नहीं होती थी। अब यह सब होने लगा है। उस समय के आयोजन को ही हापा कहते थे। पिछले 8-9 साल से हो रही कुश्‍ती को भी हापा कहा जाने लगा है।


महिलाओं के हाथों में पूरा आयोजन

इस कार्यक्रम का सारा काम महिलाएं खुद ही करती हैं। इसमें किसी और की मदद नहीं ली जाती है। इसमें देवी पूजा के लिए एक टोकरी में फल, बताशे, खिलौने और श्रृंगार का सामान रखा होता है। जिसे रीछ देवी, गूंगे देवी और दुर्गा की पूजा के साथ भुईया देवी की जयकार के साथ होती है। इसके बाद महिलाएं ढोलक के साथ गाने गाकर मनोरंजन करती हैं।


पुरुषों के आने पर प्रतिबंध

हापा में पुरुषों का आना पूरी तरह से मना होता है। यहां तक कि अगर कोई पुरुष अपनी घर की छत पर भी खड़ा होता है, तो उसे भी अंदर जाने के लिए कहा जाता है। ताकि कोई इसे देख न सके। महिलाओं के साथ केवल छोटे बच्‍चों को ही आने की अनुमति है।



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