SP-SBSP Alliance News: कल अखिलेश-ओपी राजभर मऊ में मंच करेंगे साझा, क्या बीजेपी के लिए खड़ी होगी मुसाबित

SP-SBSP Alliance News: ओपी राजभर कल यानी 27 अक्टूबर को मऊ में हलधर मैदान अपना शक्ति प्रदर्शन करेंगे। इस कार्यक्रम में उनके साथ मंच साझा करने के लिए समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) भी पहुंचेंगे। अखिलेश और ओमप्रकाश राजभर (OP Rajbhar) का मिशन 2022 के लिए तालमेल हो गया है

Written By :  Rahul Singh
Published By :  Deepak Kumar
Update:2021-10-26 23:48 IST

अखिलेश यादव और ओपी राजभरी। 

SP-SBSP Alliance News: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) को लेकर हर रोज नए समीकरण बन रहे हैं। इसी में अब एक नया नाम जुड़ गया है, बीजेपी के पूर्व सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर (OP Rajbhar Today News) का। ओपी राजभर कल यानी 27 अक्टूबर को मऊ में हलधर मैदान अपना शक्ति प्रदर्शन करेंगे। इस कार्यक्रम में उनके साथ मंच साझा करने के लिए समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav Today News) भी पहुंचेंगे। अखिलेश और ओमप्रकाश राजभर (OP Rajbhar) का मिशन 2022 के लिए तालमेल हो गया है। जिसके बाद एक नई राजनीतिक चर्चा शुरू हो गई है। क्या 2017 की तरह इसका फायदा 2022 में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav)को मिलेगा? क्या पूर्वांचल में इस नए गठजोड़ से अखिलेश यादव बीजेपी की तरह यूपी की सत्ता का दुबारा स्वाद चख पाएंगे? इसके लिए हमें कुछ साल पहले के आंकड़ों पर गौर करना होगा। जिससे यह अंदाजा लग जाएगा कि सुभासपा और सपा के गठबंधन से पूर्वांचल में क्या नए समीकरण बनेंगे और इसका किसे कितना लाभ मिलेगा। क्योंकि पूर्वांचल के लिए यह कहा जाता है कि जिसका पूर्वांचल हुआ उसके लिए सत्ता की राह आसान हो जाती है। 2017 में बीजेपी गठबंधन को 156 में से 106 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी भी पूर्वांचल में अपना पूरा फोकस कर रही है।

पूर्वांचल में राजभर मतदाता खेल बना, बिगाड़ सकते हैं?

वैसे तो ओमप्रकाश राजभर (OP Rajbhar) की पार्टी सुभासपा अकेले दम पर कभी कोई कमाल नहीं कर पाई है। 2012 के चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections) में जहां उसका खाता नहीं खुला था उन्हें सिर्फ 5 प्रतिशत वोट मिले थे। 2012 में लगे झटके के बाद 2017 के चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections) में राजभर अच्छी तरह से समझ गए कि बिना किसी बड़े दल से तालमेल किए उनके लिए जीत की राह आसान नहीं होगी। जिसके बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की ओर देखा और बीजेपी ने भी सुभासपा की पूरी हिस्ट्री खंगालकर उन्हें सहयोगी बना लिया और राजभर की पार्टी के पहली बार चार विधायक जीते। बीजेपी के साथ लड़े ओपी राजभर का वोट प्रतिशत भी बढ़ा 2012 में जहां उन्हें महज 5 फ़ीसदी वोट मिला था वहीं 2017 में यह बढ़कर 34 फ़ीसदी हो गया।

पूर्वांचल में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत में सुभासपा की अहम भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। अब ओपी राजभर का भाजपा से राजनीतिक मतभेद है और उन्होंने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के साथ तालमेल बिठा लिया है। अखिलेश और राजभर के बीच हुई बैठक में अभी तक सीटों पर कोई फैसला नहीं हुआ है लेकिन 2017 में सुभासपा ने जिन 8 सीटों पर चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections) लड़ा था उनमें से समाजवादी पार्टी के तीन प्रत्याशी दूसरे नंबर पर थे कुछ पर उनकी सहयोगी रही कांग्रेस के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर थे। अब सपा इसी रणनीति पर काम कर रही हैं अगर दोनों के वोट प्रतिशत मिला दिए जाएं तो जीत की राह आसान हो जाएगी।

अखिलेश को बड़े मुनाफे की उम्मीद

अब जरा समझने की कोशिश करिए कि अखिलेश आखिर किस रणनीति के तहत ओपी राजभर को अपने साथ लिए हैं। दरअसल उन्हें यह उम्मीद है कि पूर्वांचल में उनके साथ आने से बड़ा उलटफेर हो सकता है और समाजवादी पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है। क्योंकि 2017 में जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें अपने साथ लेकर खासकर उनके मतदाताओं का वोट हासिल किया। इसका फायदा दोनों को हुआ उसी तर्ज पर जिन सीटों पर सपा के प्रत्याशी दूसरे नंबर थे अगर सुभासपा-सपा का वोट प्रतिशत मिला दिया जाए तो ये जीत में तब्दील हो सकता है। इसी फार्मूले पर अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) काम कर रहे हैं और एक सोची-समझी रणनीति के तहत वह राजभर के साथ चुनाव लड़ने जा रहे हैं।

राजभर से मुकाबले के लिए राजभर तैयार

भारतीय जनता पार्टी से ओपी राजभर की खटपट होने के बाद बीजेपी ने अनिल राजभर को आगे किया और उन्हें ओपी राजभर के विभाग की जिम्मेदारी सौंपकर पूर्वांचल में राजभर समीकरण को साधने की कोशिश की है। अनिल राजभर ओपी राजभर की कमी को पूरा करने के लिए अपने समुदाय के लोगों को बीजेपी की तरफ मोड़ने का भरसक प्रयास भी कर रहे हैं। इसके साथ ही पूर्वांचल में बीजेपी का संजय निषाद और अनुप्रिया पटेल से गठबंधन भी है, फिर भी उन्हें नुकसान का अंदेशा है। क्योंकि गाजीपुर, बलिया, चंदौली, मऊ, वाराणसी समेत लगभग एक दर्जन जिलों में राजभर समुदाय के मतों की संख्या संख्या अच्छी खासी है।

हर विधानसभा में कम से कम चार से पांच हजार वोट तो हैं ही कहीं-कहीं तो ये सीट जिताने की पूरी हैसियत भी रखते हैं। अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और उनके रणनीतिकार अब इस समीकरण पर काम कर रहे हैं कि अगर उनके परांपरागत वोटर मुस्लिम, यादव गठजोड़ के साथ राजभर भी जुड़ जाएगा तो सपा का वोट प्रतिशत बढ़ेगा और इसका सीधे बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। हालांकि मंत्री अनिल राजभर का दावा है कि ओमप्रकाश राजभर (OP Rajbhar) को राजभर समुदाय अपना नेता नहीं मानता लेकिन योगी सरकार में बैठे बिठाये मंत्री पद पाने वाले अनिल राजभर की असली अग्निपरीक्षा अब इसी चुनाव में होगी कि वह बीजेपी के भरोसे पर कितना खरा उतर पाते हैं।

क्या कहता है पूर्वांचल का इतिहास?

यूपी के चुनाव में यह कहा जाता है कि जिसका पूर्वांचल हुआ उसके लिए सत्ता आसान हो जाती है। पिछले कुछ नतीजों को देखें तो पूर्वांचल में जिसे ज्यादा सीट हासिल हुई है वह यूपी की गद्दी पर विराजमान हुआ है। 2017 में बीजेपी ने 26 जिलों की 156 विधानसभा सीटों में से 106 पर जीत हासिल की थी। जिसके बाद बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। इससे पहले 2012 पर गौर करें तो सपा को यहां 85 सीटें हासिल हुई थी। जबकि 2007 में मायावती को पूर्वांचल में 70 सीटें मिली थी और यह दोनों पार्टियां 2012 में सपा 2007 में बसपा सरकार बनाने में कामयाब रही थी। ये सच्चाई बीजेपी के दिग्गजों को भी बखूबी मालूम है यही वजह है कि अब बीजेपी के सभी कार्यक्रम ज्यादातर पूर्वांचल में हो रहे हैं। अक्टूबर महीने में देखें तो पीएम मोदी कई बार पूर्वांचल का दौरा कर चुके हैं और अभी बनारस में भी उनका कार्यक्रम लग गया है। बीजेपी के नेता जानते हैं कि अगर पूर्वांचल हाथ से फिसला तो यूपी की गद्दी बचाना मुश्किल होगा। इसीलिए 27 अक्टूबर का दिन काफी अहम होने जा रहा जब अखिलेश और ओपी राजभर एक साथ मंच पर एक बड़ी रैली में नजर आएंगे।

ओम प्रकाश राजभर गठबंधन लिस्ट (Om Prakash Rajbhar Gathbandhan List)

ओम प्रकाश राजभर और सपा के बीच हुए गठबंधन को लेकर सियासी गलियारे में ओमप्रकाश की राजनीतिक हैसियत को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। आंकड़ों के मुताबिक यूपी में 4 फीसदी और पूर्वांचल में 18 से 20 फीसदी तक राजभर समाज से मतदाता हैं। पूर्वांचल के दो दर्जन के जिलों की सौ से अधिक सीटों पर राजभर समाज के लोग हार जीत तय करने की हैसियत रखते हैं। इन जिलों में वाराणसी की 5, आजमगढ़ी की 10, बलिया की 7, मऊ की 4, गाजीपुर की 7, जौनपुर की 9 और देवरिया की 7 सीटों पर राजभर मतदाता निर्णयक की भूमिका में हैं। राजभर के मुताबिक प्रदेश की 66 विधानसभा सीटों पर 40 से 80 हजार तक और लगभग 56 सीटों पर 25 से 45 हजार तक राजभर मतदाता हैं। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का दावा है कि उसके साथ करीब 90 से 95 फीसदी राजभर मतदाता हैं।

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