UP Election 2022: पूर्वांचल में कितना कारगर होगा अखिलेश का वाई फैक्टर, क्या है रणनीति

UP Election 2022: समाजवादी पार्टी को प्रदेश में यादवों की पार्टी मानी जाती है। यही वजह है कि मुलायम सिंह यादव के बाद अखिलेश यादव राज्य में यादवों के स्वाभाविक नेता हैं। लेकिन बीते कुछ चुनावों में पार्टी की पकड़ अपने इस कोर वोट बैंक पर कमजोर हुई है।

Written By :  Krishna Chaudhary
Published By :  Deepak Kumar
Update:2022-01-24 17:10 IST

सपा प्रमुख अखिलेश यादव। 

UP Election 2022: हिंदी हार्टलैंड कहे जाने वाले उत्तर भारत के दो बड़े राज्य उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) औऱ बिहार (Bihar) में ब्राह्मण और ठाकुर सरीखे सवर्ण जातियों का सियासी वर्चस्व खत्म करने वाला पिछड़ा समुदाय यादव को ही माना जाता है। ओबीसी समुदाय में राजनीतिक रूप से सबसे अधिक जागरूक माने जाने वाले यादवों की पकड़ पहले भी सियासत में हुआ करती थी, लेकिन 90 के मंडल आंदोलन के बाद इसके सियासी ताकत में कई गुना इजाफा हुआ। देश के दो प्रमुख हिंदी भाषी राज्यों की कमान इस समुदाय से आने वाले नेताओं के हाथ में आ गई। चाहे उत्तर प्रदेश का मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) परिवार हो या बिहार का लालू यादव (Lalu Yadav) परिवार दोनों राज्य में सियासत के धूरी माने जाते हैं। ऐसे में देश के सबसे बड़े सूबे में विधानसभा चुनाव की गुंज ने यादव समाज (Yadav Samaj) के निर्णायक वोटों के प्रभाव के बारे में बहस छेड़ दी है।

2014 से लेकर 2019 तक के चुनावों में बीजेपी को पहले की तुलना में मिले यादव वोट

2014 से लेकर 2019 तक के लगातार तीन चुनावों में बीजेपी को पहले की तुलना में अच्छी खासी में यादव वोट मिले। जो राज्य में दशकों से चले आ रहे ट्रेंड के विपरित था। प्रदेश की आबादी में 9 प्रतिशत औऱ ओबीसी आबादी में 20 प्रतिशत माने जाने वाले यादव वोट के बड़े हिस्से पर सपा (SP) का कब्जा रहा है। आम बोलचाल की भाषा में लोग सपा को यादवों की पार्टी भी कहते हैं। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव (SP Patron Mulayam Singh Yadav) अब भी राज्य में यादवों के सबसे बड़े नेता हैं। भगवान श्रीकृष्ण को अराध्य मानने वाले यादव काफी धार्मिक प्रवृति के माने जाते हें। यही वजह रही कि बीजेपी धर्म के नाम पर यादवों के एक बड़े हिस्से का समर्थन हासिल करने में सफल रही। जो राज्य में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की असफलता का सबसे बड़ा कारण बना।

भाजपा ने बड़ी चतुराई से अपने यादव नेताओं को आगे कर इन्हें रिझाया। मसलन मौजूदा केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव (Union Minister Bhupendra Yadav) को तब बीजेपी संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दी गई। लालू यादव के बेहद करीबी माने जाने वाले रामकृपाल यादव को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया। इसके अलावा नित्यानंद राय औऱ हंसराज अहीर जैसे नेताओं को भी केंद्र में मंत्री बनाया गया। मौजूदा विधानसभा चुनाव (UP Election) में भी बीजेपी एकबार फिर आस्था के सहारे यादव मतों को अपने पक्ष में लामबंद करने में जुटी हुई है।

सपा

समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) को प्रदेश में यादवों की पार्टी मानी जाती है। यही वजह है कि मुलायम सिंह यादव (SP Patron Mulayam Singh Yadav) के बाद अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) राज्य में यादवों के स्वाभाविक नेता हैं। लेकिन बीते कुछ चुनावों में पार्टी की पकड़ अपने इस कोर वोट बैंक पर कमजोर हुई है। बीजेपी के हिंदुत्व के नाम पर लामबंद हो रहे यादवों को अखिलेश नहीं रोक पाए। जिसके कारण 'यादव लैंड' कहे जाने वाले इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, बदायू, फिरोजाबाद और एटा जैसी पारंपरिक सीटों पर भी 2019 के लोकसभा चुनाव (2019 Lok Sabha Elections) में नुकसान उठाना पड़ा।

इसके अलावा पूर्वांचल के संतकबीरनगर, बलिया और कुशीनगर जैसी यादव दबदबे वाली सीट पर भी हार का मुंह देखना पड़ा। मुस्लिम – यादव (MY) एमवाय समीकरण के कारण राज्य में मजबूत पकड़ रखने वाली सपा अब अपने दरकते कोर वोट को वापस हासिल करने जुट गई है। यूपी की असल लडाई जिस पूर्वांचल में लड़ी जा रही है, वहां का जातीय गणित हमेशा विषम रहा। जिस सियासी दल ने इस चक्रव्यूह को भेद दिया है लखनऊ की गद्दी पर बैठने से उसे कोई नहीं रोक पाया है। गैर यादव ओबीसी को एकजुट कर अबतक इस जातीय चक्रव्यूह को भेदने वाली बीजेपी से इसबार सपा ने भी सबक लिया है।

सपा ने बीजेपी के ही स्टाइल में बनाई चुनावी रणनीति

ओमप्रकार राजभर, केशव देव मोर्य़ा और संजय चौहान जैसे औबीसी नेताओं के साथ गठबंधन कर सपा ने बीजेपी के ही स्टाइल में चुनावी रणनीति बनाई है। अखिलेश (Akhilesh Yadav) ने बीजेपी (BJP) के प्रमुख ओबीसी नेताओं को अपने पाले में लगाकर भगवा कैंप में खलबली मचा दी औऱ साथ ही गैर यादव ओबीसी को एक बड़ा राजनीतिक संदेश की भी कोशिश की है। सपा प्रमुख अब भाजपा के पाले में गए यादवों को वापस अपने पाले में लाने की कवायद में जुट गए हैं। यही कारण है कि परिवार के मजबूत गढ़ करहल चुनाव लड़ने की घोषणा करने वाले अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के आजमगढ़ की गोपालपुर सीट (Gopalpur seat) से भी चुनाव लड़ने की चर्चा है। यादव बहुल इस सीट से सपा प्रमुख अभी लोकसभा सांसद भी हैं। उनके यहां से लड़ने से पूरे पूर्वांचल के यादवों में एक बड़ा सियासी संदेश जाएगा। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) अपने इस दांव से क्या पुनः यादवों को नेतृत्व के बैनर तले एकजुट कर पाते हैं।

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