गोविंद बल्लभ पंत: UP के पहले CM, जो नाश्ते का बिल भी अपनी जेब से भरते थे 

आजादी के वक्त कांग्रेस कई धड़ों में बंटी थी। तब वाराणसी के नेताओं का प्रदेश की राजनीति में वर्चस्व था।;

Written By :  aman
Published By :  Ragini Sinha
Update:2021-09-27 14:37 IST

गोविंद बल्लभ पंत: UP के पहले CM (social media)

लखनऊ: राजनीति वैसी होती नहीं जैसी दिखती है। अगर बात उत्तर प्रदेश की हो तो बात ही अलग है। बावजूद, जरूरी नहीं कि राजनीति अगर घाघ हो तो राजनेता भी वैसा ही हो। आज हम एक ऐसे नेता की बात करने जा रहे हैं , जो बेहद ज्ञानी, होशियार और फैसलों पर टिकने वाले थे। इन सब से ऊपर बेहद ईमानदार। हम बात कर रहे हैं , उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत की। कहते हैं आजादी के वक्त कांग्रेस कई धड़ों में बंटी थी। तब वाराणसी के नेताओं का प्रदेश की राजनीति में वर्चस्व था। ऐसे में पहाड़ों में जन्मे गोविंद बल्लभ पंत का उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना काम आश्चर्यजनक नहीं था। 

 अल्मोड़ा में हुआ था जन्म 

गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 1 सितंबर, 1887 को अल्मोड़ा (अब उत्तराखंड) के गांव खूंट में हुआ था। इनका परिवार महाराष्ट्रीयन मूल का था। इनकी माता का नाम गोविंदी बाई और पिता का मनोरथ पंत था। इनको माता के गोविंदी से ही 'गोविंद' मिला था। पिता मनोरथ पंत तब सरकारी नौकरी में थे। उनके तबादले होते रहते थे। इस वजह से गोविंद नाना के पास पले। बचपन में वो बहुत मोटे थे। कोई खेल नहीं खेलते थे। घंटों एक ही जगह बैठे रहते। घर वाले इसी वजह से उनको थपुआ कहते थे। लेकिन पढ़ाई में अच्छे थे।
बचपन से ही होशियार थे
बचपन की बात है। मास्टर ने क्लास में पूछा, कि 30 गज के कपड़े को रोज एक मीटर काटा जाए, तो यह कितने दिन में कट जाएगा। सबने कहा 30 दिन में। लेकिन बालक गोविंद बोले 29 दिन। मास्टर ने तारीफ की। गोविंद बल्लभ पंत पढ़ने-लिखने में बचपन से ही होशियार थे। 
नैतिक मूल्यों वाले वकील थे 
गोविंद बल्लभ पंत उच्च शिक्षा प्राप्त कर वकील बने। इनके बारे में आम चर्चा थी कि ये सिर्फ सच्चे केस लेते थे।  झूठ बोलने पर केस छोड़ देते थे। दरअसल, वो दौर ही नैतिकता वाले लोगों का था। पंत बाद में कुली बेगार के लिए भी लड़े। तब, कुली बेगार कानून में था कि स्थानीय लोगों को अंग्रेज अफसरों का सामान मुफ्त में ढोना होता था। पंत इसके विरोधी थे। पंत बढ़िया वकील माने जाते थे। काकोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल का केस भी उन्होंने ही लड़ा था। 
दो पत्नियों के निधन से टूट गए थे 
वकालत शुरू करने से पहले ही गोविंद बल्लभ पंत के पहले बेटे और पत्नी गंगा देवी का निधन हो गया। इसके बाद वह उदास रहने लगे थे। अब वह ज्यादा से ज्यादा वक्त वकालत और राजनीति में देने लगे। 1912 में परिवार के दबाव में उन्होंने दूसरा विवाह किया। लेकिन उनकी यह खुशी भी ज्यादा दिन नहीं रही। दूसरी पत्नी से एक बेटा हुआ। लेकिन कुछ समय बाद ही बीमारी से बेटे की मौत हो गई। 1914 में उनकी दूसरी पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया। फिर 1916 में उनका तीसरा विवाह कलादेवी से हुआ। 
 'मैं आज से तुम्हारी अदालत में कदम नहीं रखूंगा'  
अल्मोड़ा में एक मुकदमे की कहानी दिलचस्प है। हुआ कुछ यूं कि केस में बहस के दौरान गोविंद बल्लभ पंत की मजिस्ट्रेट से बहस हो गई। अंग्रेज मजिस्ट्रेट को भारतीय वकील का कानून की व्याख्या करना बर्दाश्त नहीं हुआ। वह गुस्से में बोला, "मैं तुम्हें अदालत के अंदर घुसने नहीं दूंगा।" गोविन्द बल्लभ पंत ने कहा, "मैं आज से तुम्हारी अदालत में कदम नहीं रखूंगा।" यह कहानी उनके व्यक्तित्व को दर्शाती है।
1921 में विधानसभा के लिए चुने गए
वर्ष 1921 पंत विधानसभा के लिए चुने गए। तब 'यूनाइटेड प्रोविंस ऑफ़ आगरा' और अवध होता था। बाद में नमक सत्याग्रह आंदोलन में गिरफ्तार हुए। 1933 में हर्ष देव बहुगुणा के साथ गिरफ्तार हुए। बाद में, जब कांग्रेस और सुभाष चंद्र बोस के बीच दूरियां बढ़ी तब इन्होने ही मध्यस्थता की। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तार हुए। तीन साल अहमदनगर किले में नेहरू के साथ जेल में भी रहे। बाद में नेहरू ने उनके स्वास्थ्य का हवाला देकर उन्हें जेल से मुक्त करवाया।
जेल में हुई थी नेहरू से प्रगाढ़ता 
इससे पहले 1932 में गोविंद बल्लभ पंत को नेहरू के साथ बरेली और देहरादून जेलों में रहना पड़ा था। उसी दौरान नेहरू से उनके अच्छे संबंध बन गए थे। जवाहरलाल नेहरू इनसे बहुत प्रभावित थे। इसीलिए जब कांग्रेस ने 1937 में सरकार बनाने का फैसला किया, तो पंत का ही नाम नेहरू के दिमाग में आया। नेहरू का पंत पर यह भरोसा आखिर तक बना रहा। 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में पंत लगभग सात सालों तक जेल में रहे। साइमन कमीशन के आने के खिलाफ 1927 में लखनऊ में प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजों की लाठी से पंत को चोटें आईं थी। कहते हैं इससे उनकी गर्दन झुक गई थी।
1937 में पंत यूपी के मुख्यमंत्री बने
वर्ष 1937 में पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। यहां नेहरू ने उनका चयन कर एक प्रयोग किया था, जो सफल रहा। उस वक्त कांग्रेस पर अंग्रेजों के कानून में बनी सरकार में शामिल होने का आरोप लगा था, बावजूद पंत के नेतृत्व वाले उत्तर प्रदेश में दंगे नहीं हुए। पंत का कार्यकाल अच्छे प्रशासन के लिए जाना जाता है। फिर पंत साल 1946 से दिसंबर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 1951 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पंत बरेली म्युनिसिपैलिटी से जीते थे। 
पटेल के निधन के बाद गृह मंत्री बने 
सरदार वल्लभ भाई पटेल के निधन के बाद 1955 में पंत को केंद्र सरकार में गृह मंत्री बनाया गया। इस पद पर वो 1961 तक रहे। इस दौरान भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन को उनकी उपलब्धि के तौर पर देखा जाता है। उस वक्त कहा जा रहा था कि भाषाई आधार पर देश टूट जाएगा, पर इतिहास देखें तो पाएंगे कि इस चीज ने ही भारत को सबसे ज्यादा जोड़ा।  अगर गोविंद बल्लभ पंत को सबसे अधिक किसी चीज के लिए जाना जाता है, तो वो हिंदी को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए। साल 1957 में पंत को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 
पंत जी से जुड़े किस्से:- 
'चाय का बिल पास हो सकता है, नाश्ते का नहीं'
एक बार गोविंद बल्लभ सरकारी बैठक में थे। इस दौरान चाय-नाश्ता लाया गया। जब बिल पास होने के लिए लाया गया तो हिसाब में छह रुपए बारह आने लिखा था। पंत जी ने बिल पास करने से मना कर दिया। जब उनसे ऐसा करने का कारण पूछा गया तो बोले,'सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से केवल चाय मंगवाने का नियम है। ऐसे में नाश्ते का बिल नाश्ता मंगवाने वाले व्यक्ति को खुद देना चाहिए। हां, चाय का बिल जरूर पास हो सकता है। 'अधिकारियों ने उनसे कहा, कि कभी-कभी चाय के साथ नाश्ता मंगवाने में कोई हर्ज नहीं है। चूंकि, उस दिन चाय के साथ नाश्ता पंत जी की बैठक में आया था तो उन्होंने अपनी जेब से रुपए निकाले और बोले, 'चाय का बिल पास हो सकता है, नाश्ते का नहीं। नाश्ते का बिल मैं अदा करूंगा। मैं नाश्ते पर हुए खर्च को सरकारी खजाने से चुकाने की इजाजत नहीं दे सकता। उस पर जनता और देश का हक है, मंत्रियों का नहीं।' सभी कर्मचारी मूक बस देखते रह गए। 
पीटने वाले अफसर से भी सौम्य रहे  
एक अन्य कहानी में, जब साइमन कमीशन के विरोध के दौरान पंत को पीटा गया था, तब एक पुलिस अफसर उसमें शामिल था। बाद में वह अफसर गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके अधीन ही काम कर रहा था। तब उन्होंने उसे मिलने बुलाया। हालांकि वह डर रहा था, मगर पंत ने उससे बहुत अच्छे से बात की

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