Pitru Paksha 2021: शपथ ग्रहण कार्यक्रम में भाजपा ने दोहराई कल्याण सिंह की भूल

Pitru Paksha 2021: कल्याण सिंह अपना CM का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये। उन्हें BJP से अलग होकर अपना दल बनाना पड़ा।

Written By :  aman
Published By :  Ragini Sinha
Update: 2021-09-27 01:36 GMT

क्या पितृ पक्ष में शपथ लेना था कल्याण सिंह की भूल? (social media)

Pitru Paksha 2021: योगी आदित्य नाथ सरकार (Yogi Adityanath government) के मंत्रिमंडल विस्तार के शपथ ग्रहण (Oath ceremony) के समय में ऐन वक्त पर बदलाव करके भले ही राहुकाल को टाल लिया गया हो। पर पितृपक्ष में मंत्रिमंडल का विस्तार करके कई सवालों को जन्म दे दिया है। यही नहीं, भाजपा (BJP) ने पितृपक्ष में मंत्रिमंडल विस्तार करते समय अपने पुराने इतिहास को भी नहीं देखा। कल्याण सिंह (kalyan singh) ने 21 सितंबर, 1997 को पितृपक्ष में पंचमी के दिन शपथ ग्रहण किया था। आज भी पितृपक्ष का पाँचवा दिन है। रविवार आज भी है। 21 सितंबर को भी रविवार ही था। 


भाजपा के भविष्य को लेकर कई सवाल खड़े किये 

योगी मंत्रिमंडल का विस्तार वैसे तो साढ़े पाँच बजे था। पर उसके छह बजने के बाद शुरू किया गया। ज्योतिषाचार्य शिवहरि मिश्र बताते हैं कि आज सायं 4.30. से 6 बजे तक राहुकाल था। 6 बजे के बाद शपथ ग्रहण शुरू करके राहुकाल के प्रभाव से तो बचा लिया गया । पर पितृपक्ष में शपथ ग्रहण को लेकर भाजपा के भविष्य को लेकर कई सवाल खडे किये जा रहे हैं। कल्याण सिंह अपना मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये। उन्हें भाजपा से अलग होकर अपना दल बनाना पड़ा। भाजपा से दो बार गये और आये। राम मंदिर व हिंदुत्व की खाँटी राजनीति करने वाले कल्याण सिंह को लाल टोपी भी पहननी पड़ी थी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में उनका पहला कार्यकाल 24 जून, 1991 से 6 दिसंबर , 1992 तक रहा। इसी दौरान 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराया गया। उन पर आरोप लगे कि उग्र कारसेवकों को पुलिस और प्रशासन ने जानबूझकर नहीं रोका। कल्याण सिंह उन 13 लोगों में शामिल रहे जिन पर मूल चार्जशीट में मस्जिद गिराने की साजिश में शामिल होने के आरोप लगे। 



दो वर्षों का रहा कार्यकाल 

अपने दूसरे कार्यकाल में कल्याण सिंह 21, सितंबर 1997 को एक बार फिर यूपी के सीएम बने। यह कार्यकाल उनका दो वर्षों से थोड़ा अधिक का रहा। लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल के बाद कल्याण सिंह जैसा कद्दावर राजनेता अचानक नेपथ्य में चला गया। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक इसे गुणा-भाग करें, उनके फैसलों को सही-गलत कहें या उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को दोष दें, जो भी हो। लेकिन आज भी एक वर्ग है जो इसे विश्लेषक की नजर से नहीं बल्कि धार्मिक नजरिए से इसे देखता है। 

पितृ पक्ष में ली थी शपथ! 

कल्याण सिंह ने अपने दूसरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री पद की शपथ 21 सितंबर, 1997 को ली थी। दरअसल, यह समय हिन्दू मान्यताओं के लिहाज से शुद्ध नहीं माना जाता है। 21 सितंबर उस साल पितृपक्ष चल रहा था। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस एक पक्ष यानि 15 दिनों तक श्राद्ध कर्म आदि चलते हैं, इसलिए किसी भी शुभ कार्य से बचा जाता है। ऐसे लोग बहुतायत हैं, जो इस दौरान कोई नया सामान तक घर नहीं लाते और न ही कोई व्यापारिक समझौते करते हैं। भारतीय राजनीति के इतिहास में भी देखें तो ऐसे कई मौके आए हैं जब पितृपक्ष को देखते हुए मंत्रिमंडल का विस्तार, शपथ ग्रहण आदि को टाल दिया गया है। लेकिन कल्याण सिंह ने इसी दौरान अपने दूसरे कार्यकाल की शपथ ली थी।    


चमक फीकी पड़ने लगी

कल्याण सिंह साल 1967 में जनसंघ के टिकट पर अतरौली सीट से पहली बार विधानसभा पहुंचे थे। वो साल 1980 तक लगातार इस सीट से जीतते रहे । बाद में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। वर्ष 1977 में यूपी में जनता पार्टी की सरकार बनने पर उन्हें राज्य का स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। 1991 में कल्याण सिंह ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। उनकी छवि सिर्फ राम मंदिर आंदोलन और हिंदूवादी नेता की नहीं थी बल्कि, वह ईमानदार और सख्त प्रशासक भी थे। लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल में उनकी वो चमक फीकी पड़ने लगी थी।  

बीजेपी छोड़ नई पार्टी बनाई 

इस बार वो महज दो साल ही मुख्यमंत्री रह पाए। बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें हटाकर दूसरा मुख्यमंत्री बैठा दिया। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से उनके मतभेद भी बढ़ने लगे थे, आखिरकार कल्याण सिंह ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया और बाद में 'राष्ट्रीय क्रांति पार्टी' नाम से नया दल बनाया। हालांकि, बाद में कल्याण सिंह फिर बीजेपी में लौटे। एक बार फिर वो तब लाइमलाइट में आए जब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी। मोदी सरकार बनते ही कल्याण सिंह को राज्यपाल बनाया गया। भाजपा नेता कल्याण सिंह का 89 साल की उम्र में हाल ही में निधन हुआ। कल्याण सिंह की पहचान प्रखर हिंदूवादी नेता के तौर पर थी। उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत उस दौर में हुई जब उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व था। 90 के दशक की शुरुआत में  उन्होंने बीजेपी की ऐसी नींव रखी जिस पर पार्टी आज भी मजबूती से खड़ी है। लेकिन अपने दूसरे मुख्यमंत्रित्व काल में कल्याण सिंह के शपथ ग्रहण के समय चयन को आज भी बहुतेरे लोग उनके सफल राजनीतिक जीवन को ढ़लान की तरफ धकेलना मानते हैं।

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