आखिर अचानक कहां से आ गए भेड़िये? नाकाम वन विभाग को खूब नचा रहे, ड्रोन भी फेल

Bahraich: बहराइच में भेड़ियों का आतंक इस कदर हो गया है कि लोग रात दिन खौफ में तो जी ही रहे हैं लेकिन अब सोना भी मुश्किल हो गया है।

Written By :  Snigdha Singh
Update: 2024-08-29 06:55 GMT

Wolves Attack in Bahraich (Photo: Social Media)

Bahraich News: बहराइच के 35 गांव... अंधेरी रातों में बढ़ी धड़कनें। अब यहां शाम से ही किंवाड़ बंद हो जाते हैं। रातों में दिखाई देती हैं तो बस दूर दूर तक रोशनी फेंकनी वाली जलती टॉर्चें। कारण हैं भेड़िया। काले सन्नाटे के बीच वन विभाग और पुलिस की टीम सर्च ऑपरेशन चला रही है। इसके बावजूद भी पकड़ने में नाकाम हो रही हैं। अब तक टीम ने चार भेड़ियों को पकड़ा है। भेड़ियों के आतंक का शिकार अब तक 9 लोग हो चुके हैं। कुछ लोगों पर हमला भी किया है। 

बहराइच जिले के महसी इलाके में खौफ और मौत का साया छाया हुआ है। रात रातभर जागकर ग्रामीण कर रहे बच्चों की रखवाली कर रहे हैं। आदमखोर भेड़िए अब तक 9 लोगों की ले चुके हैं जान। 8 बच्चों समेत 9 लोगों को अपना निवाला बना चुके हैं। गांवों में ग्रामीणों के बीच लगातार भेडिए अटैक कर रहे हैं। वन विभाग आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने में नाकाम हो रही है। रातभर विधायक सुरेश्वर सिंह भी अपनी रायफल लिए ग्रामीणों के साथ मौजूद रहे। यहां रात दिन ड्रोन कैमरों से भेड़ियों की खोजबीन शुरू है। महसी तहसील क्षेत्र में भेड़ियों के आतंक की शुरुआत मार्च में हुई, जब 10 मार्च को मिश्रनपुरवा की तीन वर्षीय बच्ची को भेड़िया उठा ले गया। 13 दिन बाद 23 मार्च को नयापुरवा में डेढ़ वर्षीय बच्चा भेड़िए का शिकार बना। अप्रैल से जून के अंत तक भेड़ियों के हमले में 10 बच्चे और वृद्ध घायल हुए। उसके बाद 17 जुलाई से अब तक एक महिला और छह बच्चों को भेड़ियों ने शिकार बनाया। अब तक भेड़ियों ने 9 लोगों को अपना शिकार बनाया। वहीं, 35 लोगों को घायल कर दिया।  



वहीं, एक सबसे बड़ा सवाल ये है कि अचानक से इतने भेड़िये कैस आ गए तो बता दें कि तराई क्षेत्रों में अक्सर भेड़िये होते हैं। हालांकि पहले की तुलना में अब कम हो रहे लेकिन फिर भी गांवों के जंगलों में 2-4 भेड़िये होते ही हैं। जानकारों का ऐसा कहना है कि भेड़िए समूह में रहते हैं। जब कोई एक नरभक्षी हो जाता है तो धीरे धीरे इनका पूरा समूह हमलावर होने लगता है।  

क्या कहते हैं अधिकारी

रेंज अधिकारी मो साकिब का कहना है कि ये घाघरा का कछारी क्षेत्र है। मानसून के कारण रेस्क्यू मे इतनी दिक्कत आ रही है। जलभराव हो रहा है। गन्ने का समय है तो गन्ना भी एक बड़ा कारण है। वहीं बाकी की ग्रास लैंड है। तापमान बढ़ रहा है और ह्यूमिडिटी हो रही है। बढ़ते तापमान के कारण कैमरों में ओवरहीटिंग हो रही। ये सब बड़े कारण बन रहे हैं कि टीम भेड़ियों को नहीं पकड़ पा रही है।

डीएफओ अजीत प्रताप सिंह ने बताया कि पांच में से चार भेड़ियों को पकड़ने में कामयाब रहे हैं। पहला मादा भेड़िया पकड़ा था लेकिन उसकी हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई थी। इनका मकसद इंसानों के बच्चों को मारना होता नहीं है। ये मारना तो चाहते किसी जानवर को। लेकिन ये एक बार अटैक कर देते हैं तो नरभक्षी हो जाते हैं तो फिर ये आदमी के भोजन को ज्यादा पसंद करते हैं। फिर उसी को खोजते हैं। बकरियों और छोटे जानवरों को छोड़ इंसानों पर अटैक करने लगते हैं।  



भेड़ियों के लिए एसटीएफ

भेड़ियों के खौफ में बच्चे घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं। वन विभाग की टीमों ने गांवों को छावनी बना रखा है। भेड़ियों को पकड़ने के लिए बाराबंकी के डीएफओ आकाशदीप बधावन को स्पेशल टास्क फोर्स के रूप में बुलाया गया। भेड़ियों के आगे वन विभाग की ओर से लगाए गए। 10 ट्रैप कैमरे, जाल, पिंजरा व ड्रोन कैमरे भी असहाय नजर आ रहे हैं। ड्रोन में पांच भेड़िये कैद हुए थे। इसमें चार भेड़ियों को पकड़ा जा चुका है। 

भेड़ियों का पुराने समय से रहा है आतंक

इसमें सबसे भयानक हमले यूपी में 1996 में हुए थे जब भेड़ियों ने पाँच महीनों में 33 बच्चों को उठा लिया था। 20 अन्य को गंभीर रूप से घायल कर दिया था। हज़ारों ग्रामीण और पुलिस अधिकारी भेड़ियों के शिकार पर निकले। वो केवल 10 जानवरों को ही मार पाए। इसने काफी आतंक पैदा कर दिया था। भारतीय भेड़ियों का बच्चों को शिकार बनाने का इतिहास रहा है। भारत में इनकी संख्या 2000 के आसपास होगी. इनकी उम्र 5 से 13 वर्ष की होती है तो वजन करीब 25 किलो के आसपास होता है। 

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