Balrampur: होली आई रे.. आधुनिकता की चकाचौंध में विलुप्त हो गई फगुवा गीत
Balrampur: आधुनिकता की चकाचौंध और बदलते परिवेश के साथ सदाबहार पुराने परंपरागत होली का फगुवा गीतों एवं ढोलक की थाप का लोप होता जा रहा है।
Balrampur News: आधुनिकता की चकाचौंध और बदलते परिवेश के साथ सदाबहार पुराने परंपरागत होली का फगुवा गीतों एवं ढोलक की थाप का लोप होता जा रहा है। कुछ साल पहले तक.. होली शुरू होते ही कस्बा और गांवों के गलियां, चौराहे फगुवा गीत से गुलजार हो जाते थे। ढोलक की थाप पर मजीरा, झांझ के साथ कर्णप्रिय गीत होली के एक सप्ताह पहले से होली आने की जानकारी देने लगते थे।
होली का फगुवा गीत समाजिक नसीहत व प्राकृतिक वातावरण को समेटे मर्मस्पर्शी और झंकार पैदा करने वाले होते थे। पूरे कस्बा और गांव के लोग एक जगह बैठकर शाम को नसीहत व मिठास भरे पुरातन गीतों को गाते व सुनते थे। सभी महिलाएं, पुरुष व बच्चे एक स्थान पर जुटकर गीत का आनंद उठाते थे.. किन्तु आज के भागम भाग भारी जीवनशैली और आधुनिकता के समय के साथ धूम-धड़ाके वाले बहरा कर देने वाले अश्लील गीतों के आगे सुमधुर आवाज वाले पुराने गीत गुम होते जा रहे हैं। वही फागुन की मिठास लिए फगुआ, चैता गीत गाने वाले की भी अब समय के साथ कमी हो गई है। अब वह पुराने गीत व गायक दोनों का लोप होता जा रहा है। अब आधुनिकता का पुट लिए अश्लील गीत उनका स्थान ले रहे हैं। वर्ग विशेष के सार्वजनिक उत्सव के नृत्य के साथ गाए जाने वाले गीत जैसे धोबिया, कहरवा, मल्हार आदि का भी उठान होता जा रहा है। पुराने गीतों की धार्मिकता भाव वाले गीत नहीं सुनाई पड़ते, गीतों के गायक भी अब कम ही बचे हैं।
इस संबंध में श्रावस्ती जनपद के गिलौला निवासी 88 वर्षीय पूर्व प्रवक्ता लाल जी पाठक व डा0 राम राज मिश्र निवासी 75 वर्षीय ने बताया कि पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। अब वह पुराने गीत खत्म होते जा रहे हैं। होली के एक सप्ताह पूर्व से ही शाम को गायक आते व गीत गाते तो वहां पर पूरा कस्बा इकट्ठा होकर सुनता था। स्वास्थ वैचारिक मतभेद के साथ सभी के बीच आपसी सामाजिक प्रेम रहता था, लेकिन वह सब गुजरे जमाने की अब बात होती जा रही है। पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव अधिक होने के कारण परंपरा खत्म होने लगी है। जैसे आज बिरज में होली रे रसिया, अवध में होली खेले रघुवीरा, के साथ ठुमरी की गूंज उठती थी तो मन अपने आप खुशी से झूमने को मजबूर हो जाता था।
वही फाग गीत गायक सुबखा निवासी लाल मनि सोनी,नीबर आदि जुड़े लोगों का कहना है कि आज मनोरंजन के अधिक संसाधन विकसित होने एवं युवा पीढ़ी का फाग गायन के प्रति रुचि न लेने के कारण फाग की दुर्दशा हो रही है। कहते हैं कि आज युवा पीढ़ी फाग गायन के लिए आगे नहीं आ रही है। स्थिति यह है कि अब होली पर फाग की जगह फिल्मी गीतों की गूंज तथा डीजे के माध्यम से गीत सुनाई देती है।
होलिका दहन 24 को रात 11.13 से 12.27 बजे तक
बलरामपुर शहर झारखंडी मंदिर के पुजारी व पंडित बुद्धि सागर तिवारी ने बताया कि पंचांग के अनुसार इस साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 24 मार्च को सुबह 9 बजकर 54 मिनट पर शुरू होगी। यह 25 मार्च को दोपहर 12.29 बजे समाप्त होगी। ज्योतिष के अनुसार ऐसे में होलिका दहन 24 मार्च को किया जाएगा। 24 मार्च को होलिका दहन के दिन भद्रा लग रही है। भद्रा का प्रारंभ सुबह 09 बजकर 54 मिनट से होगा जो रात 11 बजकर 13 मिनट तक रहेगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 24 मार्च को रात 11.13 बजे से रात 12.27 बजे तक रहेगा। पूर्णिमा तिथि 24 और 25 दोनों दिन रहने वाली है।
इस बार दो दिन रहेगी पूर्णिमा
पंडित बुद्धि सागर तिवारी ने बताया कि रंगोत्सव प्रतिपदा तिथि में होता है। होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा के दिन किया जाता है। अगले दिन रंगोत्सव मनाया जाता है। इस बार 24 मार्च को सुबह 9 बजकर 56 मिनट पर पूर्णिमा तिथि आरंभ हो रही है और इसका समापन 25 मार्च को प्रदोष काल से पहले हो रहा है। पंडित जी ने बताया कि दोनों दिनों में अगर पूर्णिमा तिथि हो तो पहले दिन अगर प्रदोष काल में पूर्णिमा तिथि लग रही है तो उसी दिन भद्रा रहित काल में होलिका दहन किया जाना चाहिए। इसी नियम के अनुसार, इस बार 24 मार्च को होलिका दहन और 25 मार्च को रंगोत्सव का त्योहार मनाया जाएगा।