Barabanki News: बाराबंकी का एक सरकारी विद्यालय, जहां चलती है अनोखी क्लास, ग्रामीणों को साक्षर बना रहा अंगूठा से अक्षर अभियान
Barabanki News: शिक्षकों ने अंगूठा से अक्षर नाम से एक अभियान शुरू किया। शिक्षकों के इस अभियान का मकसद छात्रों के अशिक्षित अभिभावकों को पढ़ने और लिखने के तरीके सिखाने और बाकी ग्रामीणों को भी प्रोत्साहित करना था।
Barabanki News: बाराबंकी के एक सरकारी विद्यालय में लंच टाइम के दौरान अद्भुत क्लास चलती है। जिसमें बच्चों को नहीं बल्कि गांव की निरक्षर महिलाओं और पुरुषों को पढ़ना-लिखना सिखाया जा रहा है। यहां स्कूल के शिक्षकों के प्रयासों का असर बच्चों के साथ ही गांव के बड़ों पर भी पड़ा है। शिक्षकों ने अंगूठा से अक्षर नाम से एक अभियान शुरू किया। शिक्षकों के इस अभियान का मकसद छात्रों के अशिक्षित अभिभावकों को पढ़ने और लिखने के तरीके सिखाने और बाकी ग्रामीणों को भी प्रोत्साहित करना था। इस अभियान को स्कूल समय के बाद या लंच ब्रेक के दौरान चलाया जाने लगा। धीरे-धीरे शिक्षकों का यह प्रयास जब सफल होने लगा, तो फिर क्या था। उनकी इस पहल से गांव के बाकी लोग भी जुड़ने लगे और आज गांव की अच्छी-खासी संख्या साक्षर बन चुकी है।
अंगूठे से अक्षर नाम का यह अभियान बाराबंकी जिले में सिरौलीगौसपुर ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय गहरेला में चल रहा है। अभियान के तहत लग रही कक्षाओं में गांव के महिला और पुरुष कॉपी-कलम लेकर अक्षरों का ज्ञान ले रहे हैं। इसमें कोई तीस तो कोई पचास वर्ष का है। कुछ तो ऐसे हैं जिन्होंने जीवन में पहली बार अपने हाथों में कलम पकड़ी है। मगर साक्षर होने की ललक सभी में साफ देखी जा सकती है। शिक्षकों द्वारा दी गई कापी और पेन को सभी ने सहेजा और पढ़ाई शुरू की। आज इन्हें स्कूल के शिक्षकों के साथ ही गांव के बच्चे भी सिखा रहे हैं, जो बड़ी क्लासों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यह बच्चे खाली समय में स्कूल आते हैं और ग्रामीणों को साक्षर बनाने में शिक्षकों की मदद कर रहे हैं। आपको बता दें कि प्राथमिक विद्यालय गहरेला एक कॉन्वेंट स्कूल से कहीं ज्यादा बेहतर है। यहां के शिक्षकों ने इस स्कूल को जिले का मॉडल स्कूल बनाया है। इस खूबसूरत स्कूल में पढ़ाई भी अव्वल दर्जे की होती है। शायद यही वजह है कि स्कूल ऑफ एक्सीलेंस होने के लिए यह विद्यालय राज्य पुरस्कार भी जीत चुका है। विद्यालय के प्रधानाध्यापक मनीष बैसवार खुद 2019 में आईसीटी पुरस्कार जीत चुके हैं।
स्कूल में अ, आ से क्लास शुरू करने के साथ सबसे पहले ग्रामीणों को उनका नाम लिखना सिखाया जा रहा है। जिससे रमा देवी, जगदेवी, शिवपती और सरोजनी नाम की महिलाएं काफी खुश हैं। इनमें से कई महिलाएं और पुरुष तो साक्षर बनकर गांव में बाकी लोगों की मदद भी करने लगे हैं। वह गांव की दूसरे लोगों को पढ़ाई-लिखाई के फायदे बताकर उन्हें स्कूल आने के लिये प्रेरित कर रहे हैं। इतना ही नहीं गांव के जो बच्चे पढ़ाई करने बाहर जाते हैं। वह भी खाली समय में विद्यालय के शिक्षकों की मदद कर रहे हैं। गांव के अस्मित गुप्ता और मोनिका ने बताया कि शिक्षकों का प्रयास काफी सराहनीय है और वह भी इससे जुड़े हुए हैं। खाली समय में वह स्कूल आकर बच्चों के साथ गांव के लोगों को भी पढ़ाते हैं। शायद सभी के सामूहिक परिणाम की ही नतीजा है कि आज गांव के अच्छे खासी महिलाएं और पुरुष साक्षर हो चुके हैं। इनमें से कई लोग जो बैंक या दूसरी जगहों पर अंगूठा लगाते थे। वह भी आज अपना हस्ताक्षर करने लगे हैं।
स्कूल में प्रधानाचार्य पद पर तैनात मनीष बैसवार का कहना है कि बच्चों की पहली शिक्षक मां होती है, इसलिए हर महिला को साक्षर होना ही चाहिए। अगर मां शिक्षित है तो बच्चे भी शिक्षित और संस्कारित होते हैं। उन्होंने बताया कि जब उन लोगों को पता चला कि विद्यालय की रसोंइया ही शिक्षित नहीं हैं और वह हस्ताक्षर तक नहीं कर पाती तो ऐसे में उन्होंने अंगूठे से अक्षर अभियान के तहत सबसे पहले अपने विद्यालय की रसोइया को ही शिक्षित करने की शुरूआत की। फिर बच्चों के अभिभावकों को साक्षर करना शुरू किया। गांवों में घूमकर निरक्षरों को चिन्हित कर क्लास में आने के लिए घर-घर गए। इस दौरान निरक्षर तो कई मिले मगर उनकी कक्षा में आने के लिए कुछ ने सहमति दी। मनीष बैसवार ने बताया कि उन लोगों ने बच्चों से ही उनके अभिभावकों को प्रेरित कराया। फिर गांव के लोगों के सहयोग से उनकी इस पहल से लोग जुड़ते चले गये। उन्होंने बताया कि लंच के खाली समय में अब वह रोजाना ग्रामीणों को साक्षर बनाने के लिये क्लास चला रहे हैं।
विद्यालय के सहायक अध्यापक राज कुंवर दुबे ने बताया कि अभियान के तहत वह लोग गांवों में घूमकर निरक्षरों को चिन्हित कर क्लास में आने के लिए घर-घर जाते हैं। विद्यालय की पढ़ाई बाधित न हो इसलिये लंच टाईम में निरक्षरों की क्लास चलाई जा रही है। साथ ही आधे घंटे के लिये स्कूल आने से महिलाओं के घर का काम भी प्रभावित नहीं होगा और लंच टाइम का सदुपयोग भी हो जाएगा। राज कुंवर दुबे ने बतया कि जब उन्होंने नौकरी की शुरुआत की तो उनके मन में बच्चों को पढ़ाने का ही सपना था। लेकिन जब स्कूल में बच्चों के अभिभावकों और बाकी लोगों से मुलाकात की, तो पता चला कि ज्यादातर लोग पढ़-लिख नहीं पाते थे और अंगूठा लगाते थे। लेकिन उन लोगों में पढ़ने-लिखने की ललक थी। फिर हमने स्कूल के खाली समय में सभी को सिखाने और साक्षर बनाने की ठानी। हमारी पहल से लोग जुड़ते चले गये और आज अच्छी-खासी संख्या में लोग हमसे जुड़ चुके हैं। शिक्षक राज कुंवर दुबे ने बताया कि शुरुआत में हमें ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी। लेकिन आज गांव के कई लोग साक्षर बन चुके हैं। तो वह भी उनकी मदद कर रहे हैं।