Bateshwar Temple Agra: क्या गए हैं कभी बटेश्वर धाम, चलिए जानते हैं आगरा के इस खूबसूरत स्थल के बारे में

Bateshwar Temple Agra: बटेश्वर क्यों है खास। क्या है यहां का इतिहास। यह तो सबको पता ही होगा कि बटेश्वर दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पैतृक गांव रहा है।

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Vidushi Mishra
Update:2021-07-06 20:05 IST

बटेश्वर टेम्पल आगरा (फोटो- सोशल मीडिया)

बटेश्वर टेम्पल आगरा: उत्तर प्रदेश का अत्यंत पिछड़ा शहर बटेश्वर एक बार फिर चर्चा में आया है कारण पूर्व मंत्री राजा महेंद्र अरिदमन सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर आगरा जिले की तहसील के इस बटेश्वर शहर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग की है।

सवाल यह है कि बटेश्वर क्यों है खास। क्या है यहां का इतिहास। यह तो सबको पता ही होगा कि बटेश्वर दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पैतृक गांव रहा है। दूसरे यमुना नदी के तट पर 101 शिव मंदिरों के कारण इसे 'मिनी-काशी' के नाम से भी जाना जाता है। तीसरी सबसे बड़ी खासियत यह है कि बिहार के सोनपुर के पशुमेले के बाद दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला यहां लगा करता है।

धार्मिक पर्यटन

राजा महेंद्र अरिदमन सिंह ने अगर आवाज उठाई है तो इसकी खास वजह यह है कि बटेश्वर बाह विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है, जिसका सिंह छह बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उनकी पत्नी रानी पक्षालिका सिंह बाह से मौजूदा विधायक हैं।

त्रेता युग में बटेश्वर 'शूर सैनपुर' के नाम से जाना जाता था। बटेश्वर के घाट में प्रसिद्ध घाट आज भी 'कंश कगार' के नाम से जाना जाता है। भदावर के भदौरिया महाराजाओं ने यहाँ १०८ मंदिरों का निर्माण कर इस पवित्र स्थान को तीर्थ में बदल दिया। मंदिरों की श्रृंखला आज भी इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाती है। और इसे धार्मिक पर्यटन क्षेत्र बनाती है।

अठारहवीं सदी में जब औरंगजेब की मंदिरों का ध्वंस कर इस्लामी राज्य स्थापित करने के प्रयास चढ़ रहा था उस समय हिंदू भक्ति के महत्व का एक शानदार उदाहरण बटेश्वर शहर का निर्माण है। भदावर के राजा द्वारा 1720 से 1740 के बीच यहा 108 मंदिरों का निर्माण कराया गयाI

लड़की अपना भेद खुलने के डर से बहुत शर्मिंदा

अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत छोड़ो आंदोलन में इसी गांव से भाग लिया था और यहीं से वह और उनके भाई गिरफ्तार किये गए थे। इस तरह इस गांव से उनके राजनीतिक जीवन का प्रारंभ हुआ।

सुनने में अतिश्योक्ति लगती है। लेकिन बटेश्वरधाम के बारे मे यह कहानी मशहूर है कहते हैं भदावर और मैनपुरी के राजा में हमेशा युद्ध रहता था। सुलह के लिए यह निर्णय हुआ कि वे अपने बच्चों के साथ विवाह करके अपने मतभेदों को हल करेंगे। लेकिन दोनों की यहां लड़कियों का जन्म हुआ।

लेकिन भदावर ने घोषणा की कि उनके यहां एक बेटा पैदा हुआ है और सहमति के अनुसार, मैनपुरी के राजा की बेटी के साथ शादी की व्यवस्था की गई। भदावर ने अपनी बेटी को एक जवान आदमी के रूप में तैयार किया। लेकिन लड़की अपना भेद खुलने के डर से बहुत शर्मिंदा हुई और जब बारात नदी पर पहुंची तो वह उसमें कूद गई।

फोटो-सोशल मीडिया

कहते हैं इसके बाद भगवान शिव प्रकट हुए। भगवान शिव ने लड़की को उठा लिया और उसे एक लड़के में बदल दिया। उसके बाद, भदावर ने कृतज्ञता में मंदिर का निर्माण कराया और यह सुनिश्चित करने के लिए कि यमुना हमेशा इसके द्वारा बहती रहे, दो मील का एक बांध बनाया, जिससे उसका मार्ग बदल गया।

सुदृढ़ और पक्के घाटों का नदी तट पर निर्माण 

एक अन्य कहानी के मुताबिक अकबर के समय में यहाँ भदौरिया राजपूत राज्य करते थे। कहा जाता है कि एक बार राजा बदनसिंह जो यहाँ के तत्कालीन शासक थे, अकबर से मिलने गए और उन्हें बटेश्वर आने का निमंत्रण देते समय भूल से यह कह गए कि आगरे से बटेश्वर पहुँचने में यमुना को नहीं पार करना पड़ता, जो वस्तु स्थिति के विपरीत था।

घर लौटने पर उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ, क्योंकि आगरा से बिना यमुना पार किए बटेश्वर नहीं पहुँचा जा सकता था। राजा बदनसिंह बड़ी चिन्ता में पड़ गए और भय से कहीं सम्राट के सामने झूठा न बनना पड़े, उन्होंने यमुना की धारा को पूर्व से पश्चिम की ओर मुड़वा कर उसे बटेश्वर के दूसरी ओर कर दिया और नगर को यमुना की धारा से हानि न पहुँचे इसलिए एक मील लम्बे, अत्यन्त सुदृढ़ और पक्के घाटों का नदी तट पर निर्माण करवा दिया।

कहा यह भी जाता है कि बटेश्वर भगवान कृष्ण की माता देवकी की जन्मस्थली रहा है। कहते हैं कि चार धामों बद्रीनाथ, रामेश्वरम, द्वारका एवं पुरी के पश्चात यहां अवश्य जाना चाहिए। यहां के मंदिर प्राचीन वास्तुकला के नायाब उदाहरण हैं। पर्यटक इन्हें देखकर अभिभूत रह जाते हैं। सब्ज़ियों द्वारा बनाए गए पारंपरिक रंगों से बने सुंदर भित्तिचित्र दर्शकों को आकर्षित करते हैं।

जैन समुदाय के लोगों की मान्यता है। 22वें जैन तीर्थंकर नेमीचंद का जन्म यहीं पर हुआ था। इस कारण से यह शहर जैनियों के दोनों मतों श्वेताम्बर एवं दिगम्बर के लिए अहम तीर्थस्थल है। 400 साल से यहां दीपावली से पहले विशाल पशुमेला लगता आ रहा है। पिछले साल कोरोना के चलते पशु मेला नहीं लगा था। इस बार संभावना है कि पशुमेल लगे।

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