मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ: दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) को मिली बंपर जीत के बाद निश्चित तौर पर आप मुखिया अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक कद बढ़ा है। अब सवाल यह है कि दिल्ली विजय के बाद आम आदमी पार्टी के लिए आगे की राह क्या होगी? देखने वाली बात यह होगी कि पार्टी खुद को दिल्ली की गद्दी तक सीमित रखेगी या अन्य राज्यों में भी चुनाव मैदान में उतर कर देश में भाजपा को चुनौती देने का रास्ता तैयार करेगी। दिल्ली में आप की जीत के बाद हर किसी की आप मुखिया अरविन्द केजरीवाल के अगले कदम पर है।
पंजाब में दिखाई थी दमदार मौजूदगी
दरअसल, आम आदमी पार्टी का गठन देश में भ्रष्टाचार के विरोध में सडक़ पर उतरे लोगों ने किया था, लेकिन दिल्ली के बाहर पार्टी का संगठन बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है। हालांकि, वर्ष 2017 के पंजाब विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को 20 सीटें मिली थीं और वह पंजाब में मुख्य विपक्षी दल की हैसियत में है। इसके अलावा हरियाणा और गोवा में भी पार्टी का संगठन सक्रिय है, लेकिन दोनों ही राज्यों के विधानसभा चुनावों में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। इसके अलावा आप ने गुजरात, मेघालय, नागालैंड, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना और महाराष्ट्र में भी हाथ आजमाया, मगर उसे हर जगह नाकामी ही मिली। दिल्ली चुनावों में मिली सफलता के बाद बढ़ी सियासी हैसियत के साथ अब केजरीवाल अपनी आम आदमी पार्टी के लिए नई जमीन तलाशने में जुट सकते हैं।
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केजरीवाल के लिए बेहतर मौका
इस साल के अंत में बिहार में विधानसभा चुनाव होना है और अपनी बढ़ी सियासी हैसियत की आजमाइश के लिए यहां केजरीवाल के लिए बेहतर मौका है। बिहार में नीतीश कुमार का यह तीसरा टर्म है और अब वहां लोग उनके विकल्प की तलाश जोर पकड़ रही है। इसके अलावा लालू यादव अस्पताल में भर्ती है और उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल भी अंदरूनी कलह से जूझ रही है। हालांकि लालू यादव ने डैमेज कंट्रोल करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा.रघुवंश प्रसाद सिंह और प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बीच सुलह करवा दी है, लेकिन अभी पार्टी का संगठन पूरी मजबूती से चुनाव में उतरने की स्थिति में नहीं लगता।
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इसके साथ ही बिहार में लोग तेजस्वी यादव को आसानी से अपना नेता नहीं स्वीकार कर पा रहे है। इसी तरह बिहार में कांग्रेस की स्थिति भी अच्छी नहीं है। कांग्रेस के पास बिहार में कोई ऐसा नेता भी नहीं है जो नीतीश कुमार का विकल्प बन सके। ऐसे में केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी के पास बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां वे दिल्ली में मिली सफलता को भुनाने पर विचार कर सकते हैं।
यह बात भी देखने वाली होगी
हालांकि अभी यह भी देखना होगा कि बिहार में पार्टी की बागडोर संभालने के लिए प्रशांत किशोर तैयार होते हैं या नहीं। फिलहाल तो वह तमिलनाडु में डीएमके के साथ काम करने जा रहे हैं। इसके अलावा केजरीवाल की एक ख्याति यह भी है कि वह अपनी पार्टी में किसी भी नेता के बढ़ते कद को बर्दाश्त नहीं कर पाते है। कुमार विश्वास जैसे केजरीवाल के पुराने साथी और आप नेताओं को केजरीवाल ने एक-एक करके पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। ऐसे में राजनीतिक दांवपेंचों में माहिर प्रशांत किशोर पर वह कितना भरोसा कर पाते है, यह देखने वाली बात होगी। किसी हिन्दी भाषी राज्य में पार्टी की बागडोर किसी अन्य के हाथ में सौंपने से उनकी राष्ट्रीय नेता बनने की मुहिम भी खतरे में आ सकती है। अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि केजरीवाल दिल्ली की तरह बिहार में भी अपने स्थानीय विकास और लुभावने वादों की फेहरिस्त के साथ उतरेंगे या दिल्ली की सीमाओं में ही सीमित रहेंगे।
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प्रशांत किशोर बना सकते हैं रोडमैप
आम आदमी पार्टी के पास प्रशांत किशोर जैसा चेहरा है, जो बिहार मेें आम आदमी पार्टी के लिए सियासी रोडमैप बना सकता है। नीतीश की जनता दल यूनाइटेड से किनारा करने के बाद प्रशांत किशोर ने दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी का साथ दिया और उनकी कंपनी आईपैक ने ही आप का चुनावी कैंपेन तैयार किया।
इस साल के आखिरी में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के लिए केजरीवाल और उनकी आप को बहुत मेहनत करनी होगी। केवल प्रशांत किशोर के भरोसे पर नहीं रहा जा सकता। पार्टी को पूरे बिहार में पार्टी का संगठन खड़ा करना होगा।