हिन्दुस्तान से बेपनाह मोहब्बत करने वाली बेगम हमीदा हबीबुल्लाह, जज्बे को सलाम
बेगम साहिबा के बेटे वाजाहट आईएएस में रहे और बाद में देश के चीफ इंफॉर्मेशन कमिश्नर भी रहे। मैं अपने को सौभाग्यशाली समझता हूं कि बेगम हामिद हबीबुल्लाह की 101 ईद की पार्टी पर हम सब उनके साथ थे।
लखनऊ: बेगम हमीदा हबीबुल्लाह का हजरतगंज स्थित घर लखनऊ की अदबी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का केंद्र रहा जहां देश के बड़े राजनेता, साहित्यकार, और कलाकार आते रहे। हबीबुल्लाह दंपती बहुत अच्छे मेजबान थे उनके घर दवतो के चर्चे देश विदेश में होते थे।
बेगम साहिबा के बेटे वाजाहट आईएएस में रहे और बाद में देश के चीफ इंफॉर्मेशन कमिश्नर भी रहे। मैं अपने को सौभाग्यशाली समझता हूं कि बेगम हामिद हबीबुल्लाह की 101 ईद की पार्टी पर हम सब उनके साथ थे।
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1979 की थी और वे इस तरह से बता रही थी जैसे कल की हो
खास बात उस उम्र में उनकी याददाश्त थी। जब बेगम साहिबा ने वहां उपस्थित रीता बहुगुणा को बताना शुरू किया कि प्रदीप के पिता बिशन कपूर जो मुंबई में टाटा हॉस्पिटल में इलाज के लिए भर्ती थे तो वे कैसे अपने पति मेजर जनरल हबीबुल्लाह के साथ उनको देखने गयी। अब ये बात 1979 की थी और वे इस तरह से बता रही थी जैसे कल की हो।
बेगम हमीदा हबीबुल्लाह जी ने ब्रिटिश हुकूमत देखी, देश का विभाजन देखा और मुल्क को आज़ाद होते देखा उसके बाद कांग्रेस की सरकारें भी देखी और अंत में बीजेपी का राज भी देखा। जिस दिन मुल्क आज़ाद हुआ तो दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू का भाषण भी सुना। दिल्ली में बारिश हो रही थी 15 अगस्त 1947 यह बात भी बेगम साहिबा को याद थी। बाद में उस दिन नेहरू जी से मुलाक़ात करके उनको बधाई भी दी।
समाज को जोड़ा जाए और सांप्रदायिक ताकतों से मुकाबला करना चाहिए
बेगम साहिबा को नेताओं का बार बार पार्टी बदलना और अपनी विचारधारा पर टिके न रहना का दुख था। वे इस बात से बहुत दुखी थी कि समाज को तोड़ा जा रहा है। उनका मानना था कि समाज को जोड़ा जाए और सांप्रदायिक ताकतों से मुकाबला करना चाहिए। बेगम साहिबा को इस बात से बहुत निराशा थी जो सपने मुल्क को आज़ाद होते वक्त देखे वे पूरे नहीं हुए। बेगम हमीदा हबीबुल्लाह ने अपनी पढ़ाई में हैदराबाद में गोल्ड मेडल लिया और टीचर्स ट्रेनिंग के लिए दो साल के लिए लंदन भी गई। बेगम हमीदा हबीबुल्लाह के पिता हैदराबाद में चीफ जस्टिस थे और वे इंडियन आर्मी।के बड़े अफसर इनायत हबीबुल्लाह से शादी के बाद लखनऊ रहने लगी।
हमीदा हबीबुल्लाह के पति मेजर जनरल के पद से रिटायर हुए
बेगम हमीदा हबीबुल्लाह के पति मेजर जनरल के पद से रिटायर हुए । जहां जहां वे पोस्ट रहे बेगम हमीदा हबीबुल्लाह सामाजिक कार्यों में अपनी पहचान बनाती रही। बेगम हमीदा हबीबुल्लाह नेहरू परिवार के बहुत करीब रही। वे विधान सभा और राज्य सभा की सदस्य भी रही। उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रह कर अपनी पहचान बनाई। औरतों के हक़ के लिए हमेशा आवाज़ बुलंद की और अपने को उनकी लड़ाई के लिए समर्पित कर दिया। बेगम हमीदा ने अपने पति जनरल हबीबुल्लाह अपने पति के रिटायर होने बाद सेना से रिटायर लोगो और उनके परिवारों के लिए काम करने लगी।
बेगम हमीदा हबीबुल्लाह ने लखनऊ शहर की अदबी और सांस्कृतिक विरासत को बचाने और उसको आगे बढ़ाने का काम किया। बेगम साहिबा इस तरह के तमाम आयोजन अपने घर पर करती थी । बेगम साहिबा को मुशायरे में जाने और देर रात तक रुख कर अच्छे शेर को अपने नोटबुक में लिखने का भी शौक था। मुझे भी बेगम साहिबा के साथ देर रात तक मुशायरे में बैठने का मौका मिला।
हमीदा हबीबुल्ला बहुत लंबे अरसे तक भारत सोवियत सांस्कृतिक सोसाइटी से जुड़ी रही
बेगम हमीदा हबीबुल्लाह ने लखनऊ की चिकनकारी को भी बहुत प्रोत्साहन दिया और इससे जुड़े हजारों महिलाओं और उनके परिवारों को रोज़गार के अवसर दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। बेगम हमीदा हबीबुल्ला बहुत लंबे अरसे तक भारत सोवियत सांस्कृतिक सोसाइटी से जुड़ी रही और तमाम कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। उनके घर तमाम रूसी कलाकारों के कार्यक्रमों को देखने का मौका मिला।
जिस जमाने में लखनऊ में शीशमहल क्रिकेट टूर्नामेंट होता था तो जनरल हबीबुल्लाह और बेगम साहिबा अपने घर दावत देते थे जहां नवाब पटौदी और बड़े क्रिकेटरों से मिलने का मौका मिला। सबसे खास बात यह थी कि बेगम साहिबा को आम लोगो से मिलना और उनकी मदद करना बहुत अच्छा लगता था। उनके दरवाजे हमेशा आम लोगो के लिए खुले रहते थे।
काफी हाउस जाकर लोगों से मिलना भी बहुत अच्छा लगा
बेगम साहिबा ने बताया कि रफी अहमद किदवई की बहन के कहने पर कई बार काफी हाउस गई जहां उनको डा जेड ए अहमद व कई बड़े नेता मिले। उनको काफी हाउस जाकर लोगों से मिलना भी बहुत अच्छा लगा। लखनऊ शहर में रानी राम कुमार भार्गव, स्वरूप कुमारी बक्शी और प्रेम कुमारी बाजपेई बेगम हमीदा हबीबुल्लाह की खास दोस्त थी।
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बेगम साहिबा में अपनी शर्तों पर ज़िन्दगी जीने का ज़बरदस्त जज्बा था और वे हमेशा अपनी सेहत और पहनावे पर भी ध्यान देती थी। 100 की उम्र में भी खूब प्रोग्राम मेरे पिता की दोस्ती जनरल हबीबुल्लाह जी से थी इसलिए बचपन से मुझे उनके घर जाने का और छोटे बड़े हर आयोजन में शिरकत करने का मौका मिला । मुझे बहुत कुछ सीखने को मौका मिला जनरल हबीबुल्लाह और बेगम साहिबा से जो हमेशा याद रहेगा।
रिपोर्ट- प्रदीप कपूर
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