शाहजहांपुर: इसी सरज़मीं पर जन्मे थे काकोरी कांड के अमर शहीद

बौखलाए फिरंगियों ने 26 दिसम्बर 1925 को पूरे उत्तर प्रदेश से 40 लोगों को गिरफ्तार किया जिसमें शाहजहांपुर के बिस्मिल, अशफाक और रोशन सहित 9 लोग शामिल थे। इन्हें अलग अलग जेलों में डालकर दो साल तक मुदकमे चलाए जाते रहे। फिर 19 दिसम्बर 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर में और अशफाक को फैजाबाद जेल में फांसी दे दी गई, 20 दिसम्बर को रोशन को इलाहाबाद की मलाका जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया।

Update:2016-08-14 17:05 IST

शहीदों को नमन...

शाहजहांपुर: उत्तर प्रदेश का शाहजहांपुर आजादी की लड़ाई में अपनी कुर्बानियों के लिए जाना जाता है। शहीदों की नगरी के रूप में विख्यात शाहजहांपुर की सरज़मीं बिस्मिल, आशफ़ाक़ और रोशन सिंह जैसे अमर शहीदों की जन्म भूमि रही है। आज़ादी के छह दशक बीत जाने के बाद भी यहां के बाशिन्दे क्रान्तिकारियों से अपने जुड़ाव पर गर्व महसूस करते हैं।

कोई आरज़ू नहीं है, है आरज़ू तो यह है

रख दे कोई ज़रा सी, ख़ाक ए वतन कफ़न में

...और इन्हीं लफ़्ज़ों के साथ अमर शहीद आशफाक उल्ला खां ने मुल्क की आज़ादी के लिए फांसी का फन्दा चूम लिया था। ये वही आशफाक उल्ला खां हैं, जो शाहजहांपुर की सरजमीं पर जन्मे और देश के लिए मौत को गले लगा लिया। अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर सन 1900 को शाहजहांपुर के एमन जई जलाल नगर के पठान परिवार में हुआ था। शुरुआती शिक्षा स्थानीय मिशन स्कूल में ली। यहीं पर उनकी दोस्ती पं. राम प्रसाद बिस्मिल से हो गई।

बिस्मिल का परिवार यहां के खिरनी बाग मोहल्ले में रहता था। लेकिन वे पक्के आर्य समाजी होने के नाते यहां के आर्य समाज मन्दिर में रहते थे। बाद में इन दोनों की दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि इस पक्के पठान ने बिस्मिल के निवास स्थान आर्य समाज में ही रहना शुरू कर दिया। और यहीं से इनकी क्रान्तिकारी गतिविधियों की योजनाएं बनने का दौर शुरू हुआ। बचपन में देश के प्रति मर मिटने के जज्बे के साथ बड़े हुए अशफाक जवानी के दौर में बिस्मिल के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों की टोली में शामिल हो गये।

शहीद अशफाक उल्ला खां के पौत्र अशफाक उल्ला खां, की मानें तो बिस्मिल के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों की टोली दिनोंदिन मजबूत होती जा रही थी। लेकिन उनके सामने देश की जंग ए आजादी को जीतने के लिए हथियारों की कमी सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही थी। इस समस्या को दूर करने के लिए सरकारी खजाने को ले जाने वाली ट्रेन को लूटने के अलावा कोई दूसरा चारा नही बचा था। लिहाजा सभी क्रान्तिकारियों ने एक राय होकर 9 अगस्त 1925 को काकोरी में फिरंगिरयों के खजाने को ले जा रही ट्रेन को लूट लिया। इस टोली में चन्द्र शेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन और राजेन्द्र लाहड़ी जैसे शामिल थे।

स्वतंत्रता आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए इस ट्रेन लूट से अंग्रेज सरकार पर करारी चोट लगी। इसी से बौखलाए फिरंगियों ने 26 दिसम्बर 1925 को पूरे उत्तर प्रदेश से 40 लोगों को गिरफ्तार किया जिसमें शाहजहांपुर के बिस्मिल, अशफाक और रोशन सहित 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इन्हें अलग अलग जेलों में डालकर दो साल तक मुदकमे चलाए जाते रहे। फिर ट्रेन लूट का आरोपी मानते हुए 19 दिसम्बर 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर और अशफाक को फैजाबाद जेल में फांसी दे दी गई, और 20 दिसम्बर को रोशन को इलाहाबाद की मलाका जेल में फांसी पर लटका दिया गया।

 

इन शहीदों ने देश को आजाद कराने में अपनी जान न्यौछावर कर दी। आजादी के पैंसठ साल गुजरने के बाद भी शाहजहांपुर के बाशिन्दे इस बात पर फख्र करते हैं कि उनका जन्म भी उसी सरज़मीं पर हुआ है जहां क्रान्तिकारी ही पैदा हुए हैं।

आशफाक और बिस्मिल की दोस्ती देश के मौजूदा हालात में लोगों के लिए एक सबक साबित हो सकती है। क्योंकि जब अंग्रेज एक दूसरे को लड़वा रहे थे तब अलग अलग धर्मो के इन दो महान क्रान्तिकारियों ने एक ही थाली में खाना खाकर जंग ए आजादी में अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिये। आज

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