चुनावी रण जीतने के लिए सभी दलों ने झोंकी ताकत, तैयारियों में भाजपा सबसे आगे

Update:2019-03-08 12:47 IST

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: लोकसभा के चुनावी महासमर का बिगुल अभी नहीं बजा है,लेकिन युद्ध के लिए सेनाओं के शिविरों में बेचैनी साफ दिख रही है। ऐसा लगता है कि राजनीतिक दल ताल ठोंककर एक-दूसरे से यह कह रहे हों कि आ देखे जरा किसमें कितना है दम। सभी दल सत्ता हथियाने को इतने आतुर हैं कि एक-दूसरे पर तीखे हमले बोले जा रहे हैं। खास बात यह है कि अगले लोकसभा चुनाव रूपी इस महायुद्ध में इस बार कमान भी कई नये सेनापतियों के हाथ में होगी। प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में यह शायद पहला मौका है जब सभी दलों में चुनाव के पूर्व ही इतनी बेचैनी दिख रही हो। इसका सीधा कारण केन्द्र और प्रदेश दोनों जगहों पर भाजपा की सत्ता का होना है। इसके पीछे एक कारण भाजपा की सांगठनिक स्तर पर मजबूत होना भी है।

जहां तक चुनावी तैयारियों की बात है तो भाजपा चुनाव के पहले कार्यकर्ताओं को सम्बल प्रदान करने के लिए ‘मेरा परिवार, भाजपा परिवार’ अभियान शुरू कर चुकी हे। लोकसभा चुनाव में पार्टी को 74 सीट जीतने की उम्मीद है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने ‘मेरा परिवार, भाजपा परिवार’ अभियान की शुरुआत की है। अभियान के तहत भाजपा की योजना पांच करोड़ घरों में भाजपा का झंडा फहराने और 20 करोड़ मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के तहत यह अभियान 2 मार्च तक चलाया गया। भाजपा ने दस करोड़ परिवारों तक इस अभियान के जरिए पहुंचने का जो लक्ष्य रखा, उसके लिए पार्टी के दस करोड़ से ज्यादा सदस्यों के देशव्यापी तंत्र का इस्तेमाल किया गया।

दस करोड़ परिवारों का मतलब करीब 50 करोड़ लोगों तक सीधे पहुंचना था। अमित शाह और उनके रणनीतिक सिपहसालारों को पूरा भरोसा है कि इस वृहद अभियान के जरिए भाजपा न सिर्फ मोदी सरकार के पांच साल के कामकाज की उपलब्धियां देश की जनता तक सफलतापूर्वक पहुंचा सकेगी, बल्कि उन्हें यह समझाने में भी कामयाब होगी कि देश में 2014 से पहले पिछले तीस साल में जितनी भी सरकारें आईं वह गठबंधन की सरकारें थीं और उन्होंने देश को करीब तीस वर्ष पीछे धकेल दिया।

युवाओं पर भाजपा की विशेष नजर

भाजपा नेतृत्व को भरोसा है कि अगर यह बात लोगों के दिमाग में उतार दी गई और लोगों को यह समझा दिया गया कि अकेले नरेंद्र मोदी ही ऐसे नेता हैं जिन्हें देश और जनता के भविष्य की चिंता है, तो 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को 2014 से भी ज्यादा बड़ा बहुमत मिल सकता है। इसके अलावा लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जोरशोर से जुटी भाजपा लखनऊ से मेरा पहला वोट मोदी को प्रचार अभियान शुरू कर चुकी है। इसमें सभी कार्यकर्ता सभी 80 लोकसभा सीटों व 403 विधानसभा क्षेत्रों में जाकर केन्द्र और प्रदेश सरकार की उपलब्धियों को गिनाने का काम कर रहे हैं।

दरअसल भाजपा ने अपने इस अभियान के तहत उन वोटरों को टारगेट किया है जो पहली बार आगामी लोकसभा चुनाव में वोट डालेंगे। इसके लिए भाजपा ने 18 से 19 साल के बीच पहली बार मतदाता बने 13 लाख मतदाताओं को चिन्हित किया है। पूरे एक महीने चलने वाले इस अभियान के तहत भाजयुमो कार्यकर्ता शहरों और गांवों में नए बने युवा मतदाताओं से मिलकर उन्हें मोदी व योगी सरकार की विकास योजनाओं के बारे में बता रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव की तरह ही पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने सभी एक लाख 20 हजार बूथों पर कार्यकर्ताओं को लगाने की योजना बनाई है। बूथों का पुनर्गठन करने के बाद अब इनकी संख्या 1 लाख 63 हजार हो गयी है। भाजपा का ‘बूथ चलों अभियान’ पहले ही सफलतापूर्वक पूरा किया जा चुका है।

लोकसभा क्षेत्र की टोह ले रहीं मायावती

पिछले लोकसभा चुनाव में एक भी सीट हासिल न कर पाने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती भी लगातार केन्द्र और प्रदेश सरकार पर हमलावर होने के साथ ही सांगठनिक तैयारियों में जुटी हुई है। वह प्रदेश अध्यक्ष को पहले ही बदल चुकी है और अब प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र की टोह लेने में जुटी हुई है। उन्होंने जोन संगठन भंग कर उनका नए सिरे से पुनर्गठन किया है। सपा-बसपा गठबंधन में 38-38 सीटों का बंटवाराहोने के बाद सपा ने अपने हिस्से की तीन सीटें मथुरा, बागपत और मुजफ्फरनगर रालोद को दे दी हैं। वहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कांग्रेस के भी गठबंधन में होने की बात करने लगे हैं।

गठबंधन की नींव पर गौर करें तो गोरखपुर, फूलपुर व कैराना लोकसभा सीट तथा नूरपुर विधानसभा सीट पर विपक्षी दल महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़े थे। गोरखपुर व फूलपुर में कांग्रेस इस गठबंधन में नहीं थी, लेकिन तमाम छोटे दलों ने सपा उम्मीदवार का समर्थन किया था। गैर-भाजपा दलों ने रालोद व सपा प्रत्याशी का समर्थन किया था। कमोबेश इसी तरह के गठबंधन का स्वरूप लोकसभा चुनाव को लेकर है। जबकि सपा से अलग हुए शिवपाल सिंह यादव को लेकर समाजवादी पार्टी चितिंत दिख रही है। अखिलेश यादव के प्रयागराज में छात्रसंघ के कार्यक्रम में जाने की राज्य सरकार की तरफ से अनुमति न दिए जाने के मामले ने भी प्रदेशकी राजनीति में सपा को चर्चा में लाने का काम किया। इस मामले में सपा पार्टी ने चार दिन विधानसभा में हंगामा कर राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करने का काम किया।

शिवपाल पहुंचा सकते हैं सपा को नुकसान

पिछले कई लोकसभा चुनाव के पहले यह पहला अवसर है जब विपक्ष में रहते हुए सपा के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव स्वास्थ्य कारणों से राजनीतिक गतिविधियों से अपने आपको काफी दूर किए हुए हैं। इसके अलावा लोकसभा में उनके द्वारा प्रधानमंत्री मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने की कामना से भी सपा-बसपा गठबंधन पर काफी असर पड़ा है। भाजपा यादव परिवार की इसी कमजोरी का लाभ उठाने की तैयारी में है। यही कारण है कि भाजपा सरकार ने शिवपाल सिंह यादव को आलीशान सरकारी बंगला (पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का आवास) एलाट कर बड़ा दांव खेला है। पार्टी को पता है कि सपा के परम्परागत यादव वोट बैंक को बिखराने के लिए शिवपाल सिंह यादव को बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है। प्रदेश के 44 जिलों में यादव जाति के वोटरों की संख्या 8 फीसदी से ऊपर है और इनमें से 9 जिलों में यादवों की हिस्सेदारी 15 फीसदी या इससे ऊपर है।

एटा, मैनपुरी और बदायूं (मुसलमानों के बराबर) जिलों में यादव सबसे बड़ा वोट बैंक हैं। भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में यादव बाहुल्य क्षेत्रों में भी सफलता पाई थी। अब पार्टी की रणनीति आगामी लोकसभा क्षेत्रों में यही प्रयोग दोहराने की है। उसे लग रहा है कि पिछले लोकसभा चुनाव में जो सीटे उसके हाथ से निकल गयी थी उन्हें इस चुनाव में सेक्युलर मोर्चा के सहारे हथिया लिया जाए। इसलिए भाजपा शिवपाल सिंह यादव के सहारे यादव बाहुल्य सीटों मैनपुरी, कन्नौज, फिरोजाबाद, आजमगढ़ और बदायूं भी हथियाने की रणनीति बना रही हैं।

प्रियंका के आने से कांग्रेस में उत्साह

उधर कांग्रेस में प्रियंका गाधी के सक्रिय राजनीति में उतरने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में मानो नई जान आ गयी हो। प्रियंका गांधी का जिस तरह से लखनऊ मेें रोड शो हुआ और उन्होंने चार दिन लखनऊ में डेरा जमाकर कार्यकर्ताओं की टोह ली, उससे पार्टी को 30 साल पहले वाली मजबूत स्थिति में ले जाने की संभावना दिखने लगी हे। कांग्रेस के दो युवा नेताओं प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया को यूपी की जिम्मेदारी देकर कांग्रेस हाईकमान ने बड़ा दांव खेला है। अब पूर्व और पश्चिम दो भागों में बांटने से प्रदेश संगठन को सही ढंग से दिशा दी जा सकेगी।प्रदेश में काफी लंबे वक्त से राजनीतिक वनवास झेल रही कांग्रेस ने प्रियंका गांधी के रूप में अपने ‘ब्रह्मास्त्र’ का इस्तेमाल किया है। प्रियंका की इस एंट्री को भले ही लोकसभा चुनाव के चश्मे से देखा जा रहा है, लेकिन कांग्रेस प्रियंका गांधी को 2022 में यूपी का सीएम कैंडिडेट बनाने का प्रयास करती नजर आ रही है।

प्रियंका की सीट को लेकर गहन मंथन

पार्टी में फिलहाल सर्वाधिक मंथन प्रियंका की चुनावी सीट को लेकर हो रहा है। कोशिश है कि उनके लिए ऐसी सीट चुनी जाए जिससे सूबे के साथ-साथ पूरे देश में एक बड़ा संदेश जाएा। इस कड़ी में जिन चार सीटों को विकल्प के तौर पर चुना गया है उसमें अमेठी, रायबरेली, लखनऊ और वाराणसी की सीट शामिल हैं। पार्टी का एक मजबूत धड़ा पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को चुनावी राजनीति में बनाए रखना चाहता है। सोनिया के नहीं मानने पर प्रियंका कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सीट अमेठी तो राहुल सोनिया की सीट रायबरेली से लड़ सकते हैं। ऐसी स्थिति में अमेठी में प्रियंका और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के बीच सीधी जंग होगी। प्रियंका के लिए लखनऊ और वाराणसी को भी विकल्प कहा जा रहा है। एक बात यह भी कही जा रही हे कि वाराणसी से प्रियंका पीएम मोदी के खिलाफ मैदान में तभी उतरेंगी जब अपना दल राजग का साथ छोड़ दे। पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि ऐसे में भाजपा का कुर्मी मतदाताओं में वर्चस्व कम होगा और ब्राह्मण मतदाताओं पर खुद प्रियंका भी अपना दावा ठोक सकेंगी।

युवाओं को बूथों पर लगाएगी कांग्रेस

पूरे प्रदेश में बूथ सहयोगी बनाने का लक्ष्य लेकर कांग्रेस अपनी तैयारियों में जुटी हुई है। 18 से 21 साल के युवाओं को बूथ स्तर पर लगाने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। योजना है कि बूथ सहयोगी 20 से 25 घरों में जाकर उनसे सम्पर्क करें। बेहतर काम करने वालों को ब्लाक, जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर इनाम भी दिया जाएगा। इसके साथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बदलने की संभावनाओं के बीच राजबब्बर संगठन को धार देने में जुटे है। पार्टी को लग रहा है कि ब्राह्मण वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए प्रदेश की कमान किसी ब्राह्मण को सौंपी जाए।

छोटे दलों का बन सकता है मोर्चा

आम चुनाव 2019 में भाजपा के खिलाफ छोटे दलों का भी कोई मोर्चा बन सकता है। अपना दल (कृष्णा गुट) व वामपंथी दलों के इस गठबंधन में शामिल होने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। प्रदेश में मिल रहे व्यापक जनसमर्थन से लबरेज शिवपाल सिंह यादव के दल से सबसे बड़ा खतरा सपा के अध्यक्ष और भतीजे अखिलेश यादव को ही है क्योंकि जिस तरह अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री रहते हुए अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को मंत्री पद से बेदखल कर उनका अपमान किया, वह बहुत से लोगों को अच्छा नहीं लगा। जहां तक कद की बात है तो राजनीतिक और सांगठनिक तौर पर अखिलेश यादव को शिवपाल सिंह यादव से कमजोर समझा जा रहा है। कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव ने विपक्ष की राजनीति उतनी नहीं की जितनी शिवपाल सिंह यादव ने अपने भाई मुलायम सिंह यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर की है।

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