Lucknow KGMU: जरा संभलकर! लॉरी अस्पताल में इलाज से पहले ही दम तोड़ सकते हैं मरीज, डॉक्टर्स से पहले बाउंसरों से पड़ेगा पाला

Lucknow KGMU: लखनऊ स्थित KGMU लारी कार्डियोलॉजी विभाग में तैनात बाउंसर तीमारदारों के लिए मुसीबत बन गए हैं। बाउंसर अक्सर तीमारदारों के साथ दुर्व्यवहार करते नजर आते हैं।

Written By :  aman
Update:2023-01-18 21:39 IST

KGMU में तैनात बाउंसर (Photo: Ashutosh Tripathi)

Lucknow KGMU: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज (King George Medical College) इलाज के लिए आप जा रहे हैं, तो जरा संभलकर। आपको वहां डॉक्टरों से पहले बाउंसर्स का सामना करना पड़ेगा। बाउंसर की अनुमति के बिना कोई मरीज या तीमारदार अस्पताल में कदम नहीं रख सकता। भले ही वो एम्बुलेंस से गंभीर हालत में पहुंचा मरीज ही क्यों न हो। अब सवाल उठता है, कि अस्पताल में बाउंसर का क्या काम? आम आदमी अस्पताल लाचार होकर पहुंचता है। उसके सामने जीवन बचाने की जद्दोजहद रहती है, ऐसे में उसका सामना बाउंसर से हो तो ये अपने आप में सोचने वाली बात है।        

उत्तर प्रदेश को 'उत्तम प्रदेश' बनाने की बात प्रदेश सरकार की ओर से कही जाती है। स्वास्थ्य महकमे को चुस्त-दुरुस्त रखने के लाखों दावे भी किए जाते हैं। यूपी सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में नित नई सुविधाएं उपलब्ध करवाने के दावे और वादे भी करती आ रही है। प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक (Deputy CM Brajesh Pathak) जिनके जिम्मे स्वास्थ्य विभाग की कमान है उनकी नजर 'भारत जोड़ो यात्रा' में राहुल गांधी के टी-शर्ट और उन्हें ठंड लगती है या नहीं, इस तरफ जरूर जाती है। राहुल गांधी का ठंड लगना न लगना बड़ा मुद्दा बन जाता है लेकिन उसके ही नाक के नीचे लखनऊ KGMU के लारी कॉर्डियोलॉजी विभाग में बाउंसरों की तैनाती की तरफ नजर नहीं जाती है।

गंभीर हालत में मरीज को अंदर जाने से रोका    

दरअसल, सोमवार (16 जनवरी) को सुरेंद्र कुमार (काल्पनिक नाम) नामक एक शख्स को दिल का दौरा पड़ने के बाद लखनऊ KGMU के लारी कॉर्डियोलॉजी विभाग ले जाया गया। मरीज को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। आनन-फानन में एम्बुलेंस से उन्हें केजीएमयू के लारी कॉर्डियोलॉजी विभाग ले जाया गया। ऐसी स्थिति में जब इंसान सांस के लिए जूझ रहा हो। परिजन ईश्वर से उनकी जिंदगी की दुआएं मांग रहे हों। हालात नाजुक हों। ऐसे में आपका प्रवेश रोक दिया जाए। आपसे तरह-तरह के सवाल पूछे जाएं, तो किसी तीमारदार के ऊपर क्या गुजरेगी आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं। ऐसा ही हुआ सुरेंद्र कुमार के परिजनों के साथ। तैनात बाउंसर उन्हें मरीज के साथ अंदर जाने नहीं दे रहे थे। ये एक दिन की बात नहीं। हर रोज तीमारदारों को ऐसे ही बाउंसरों से उलझना पड़ता है। बाउंसरों के कठोर शब्दों का सामना करना पड़ता है। लेकिन, स्वास्थ्य महकमा है कि उसके कान पर जूं तक नहीं रेंगती।   

तीमारदार ने newstrack.com से किया संपर्क 

आख़िरकार, तीमारदारों ने कड़ी मशक्कत के बाद सुरेंद्र कुमार को किसी तरह लारी में भर्ती कराया। जिसके बाद मरीज के तीमारदार ने newstrack.com से संपर्क किया। उन्होंने अपनी आपबीती सुनाई। जिसके बाद मीडिया में हलचल मची। लेकिन, अब भी प्रदेश का स्वास्थ्य महकमा सुस्त ही पड़ा है। उसे इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ता। 

केंद्र ने बाउंसर हटाने के दिए थे निर्देश 

हालांकि, बीते साल नवंबर महीने के पहले हफ्ते में केंद्र सरकार ने बाउंसरों को लेकर बड़ी घोषणा की थी। तब कहा गया था कि सरकारी अस्पतालों में अब बाउंसर दिखाई नहीं देंगे। मरीजों के साथ लगातार बढ़ते अभद्र व्यवहार के मामलों के मद्देनजर केंद्र सरकार ने अपने अस्पतालों को बाउंसरों से मुक्त करने का फैसला लिया। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्य सरकारों को भी सलाह दी थी कि वे अपने अस्पतालों से बाउंसर हटा सकते हैं। बावजूद उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में अभी भी बाउंसर तैनात हैं। और वो तीमारदारों से आए दिन बदसलूकी करते नजर आते हैं।   

बाउंसर पर क्या कहा था केंद्र ने?

पिछले साल ही आखिरी महीने में स्वास्थ्य महानिदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा था कि देश के सरकारी अस्पतालों में बाउंसर तैनात करना एक 'प्रथा' बन गई है। यह इसलिए हो रहा है क्योंकि जब भी किसी अस्पताल में डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा की घटना होती है, बाउंसर की तैनाती कर दी जाती है। इससे घटनाओं में कमी नहीं आती है, बल्कि मरीजों के साथ अभद्र व्यवहार के मामले बढ़ रहे हैं। अनुमानित तौर पर एक अस्पताल में 10 से 12 बाउंसर तैनात किए जाते हैं। इसलिए केंद्र सरकार के अधीन अस्पतालों से इसकी शुरुआत की गई। साथ ही, राज्य सरकारों को भी सलाह दी है कि वे अपने अस्पतालों से बाउंसर हटा सकते हैं। बावजूद लखनऊ स्थित KGMU जैसे अस्पतालों में आज भी बाउंसर तैनात हैं। 

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