Firozabad News: अयोध्या की तर्ज पर फ़िरोज़ाबाद में भी इस बार जलेंगे गोमय दीप

अयोध्या की तर्ज पर फिरोजाबाद में भी जलेंगे गाय के गोबर से बने ​दीये

Report :  Brajesh Rathore
Published By :  Raghvendra Prasad Mishra
Update: 2021-11-01 05:32 GMT

अरिहंत जैन (फोटो-न्यूजट्रैक)

Firozabad News: दिवाली (Diwali 2021) के मौके पर मिट्टी से बने दीयों की खासी मांग होती है और इन्हीं दीयों से दिवाली जगमग होती है, लेकिन इस बार गाय के गोबर से बने दीपक भी दिवाली (Diwali 2021) की रौनक बढ़ाएंगे। फिरोजाबाद जिले में इन दिनों दिवाली के लिए गाय के गोबर से बने दीपकों (gaay ke gobar ke diye) को बनाने का काम चल रहा है। यही नहीं इस गोबर से भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्ति के अलावा उनकी चरण पादुकाएं और मालाएं भी बनाई जा रही है। इन्हें बनवाने वाले व्यक्ति का नाम अरिहंत जैन है, जो एक गौशाला भी चलाते हैं।

अरिहंत जैन (Arihant Jain) का कहना है कि यह गाय के गोबर से बने उत्पाद जहां एक और शुद्ध और शुभ माने जाते हैं। वहीं इनसे गौशालायें आत्मनिर्भर बनेंगी और गाय माता किसी को बोझ नहीं लगेंगी। इस कार्य से तमाम महिलाओं को भी रोजगार मिल रहा है।


फिरोजाबाद शहर के जलेसर रोड पर रहने वाले अरिहंत जैन वैसे तो एक गौ पालक है और शनिदेव मंदिर के पास उनकी एक गौशाला भी है। अरिहंत जैन (Arihant Jain) न केवल गाय के दूध पर निर्भर रहते हैं बल्कि वह गाय के गोबर (gaay ke gobar ke diye) और मूत्र से भी उत्पाद तैयार करते हैं। गौमूत्र से जहां दवाएं तैयार की जाती हैं, वहीं गाय के गोबर में लकड़ी का बुरादा और अन्य केमिकल मिलाकर आकर्षक उत्पाद तैयार किये जाते हैं। अलग अलग त्योहार के हिसाब से इन्हें तैयार किया जाता है। चूंकि अभी दिवाली का त्योहार है, तो फिलहाल गाय के गोबर से दीपक, भगवान गणेश और लक्ष्मीजी की मूर्तियां, उनकी चरण पादुकायें, शुभ लाभ, मालाएं जैसी कलात्मक वस्तुओं को तैयार किया जा रहा है। वैसे तो इन्हें एकदम साधारण तरीके से बनाया जाता है, लेकिन बाद में सुखाने और इनमें रंग भरने के बाद इन्हें काफी आकर्षक बनाया जाता है।


फिरोजाबाद में फिलहाल इन्हें बनाने का काम चल रहा है और बड़े पैमाने पर उन्हें बाहर भी भेजा जा चुका है। अरिहंत जैन के यहां 10 से 15 महिलाओं द्वारा इस कार्य को किया जा रहा है। इस कार्य से यहां की महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है। अरिहंत जैन (Arihant Jain) बताते हैं कि इस कार्य से उनकी भी जीविका चल रही है, साथ ही महिलाओं को भी रोजगार मिल रहा है। इसके अलावा किसी सरकारी सहायता के गायों का भी भरण पोषण हो रहा है।

उनका कहना है जो लोग गायों को छोड़ देते है या फिर गौशाला खोलकर सरकारी अनुदान पर निर्भर रहते हैं। वह लोग भी गौ मूत्र और गोबर (gaay ke gobar ke diye) से गौशाला को आत्मनिर्भर बना सकते हैं। उन्होंने बताया कि गाय के गोबर से बने दीपक की सप्लाई प्रदेश से बाहर भी काफी मात्रा में होती है। खासकर धार्मिक स्थानों पर यह ज्यादा बिकते हैं, क्योंकि धार्मिक स्थानों पर गाय के गोबर से बने दीपों को प्रज्वलित करना काफी शुभ माना जाता है।

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