ब्रज का सांझी महोत्सवः श्राद्ध पक्ष का त्योहार, जब नहीं होते शुभ काम, मंदिरों में होता है ये पर्व
Mathura News: आचार्य शैलेन्द्रकृष्ण भट्ट ने कहा सांझी ब्रज की महत्वपूर्ण कला है। श्रीकृष्ण संस्कृति में रची-पगी इस परंपरा को आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साझा करने की जरूरत है।
Mathura News: वृन्दावन शोध संस्थान (Vrindavan Research Institute) में आयोजित सांझी महोत्सव (Sanjhi Festival) में स्थानीय प्रशिक्षणार्थियों सहित विदेशी (foreign) संस्कृति प्रेमियों ने भी सहभागिता की। इस अवसर पर सांझी कला के प्रति विदेशी जनों का आकर्षण देखते ही बन रहा था। शास्त्र सेवा प्रकल्प द्वारा प्रस्तुत नाम संकीर्तन ध्वनि तथा सांझी कला का महत्व समझ संस्कृति प्रेमी विदेशी अभिभूत हो उठे। राधारमण मंदिर (Radharaman Temple) से वैष्णवाचार्य सुमित गोस्वामी ने प्रतिभागियों को प्रशिक्षण दिया।
कार्यक्रम में यूक्रेन, उजबेकिस्तान, रशिया, कजाकिस्तान, जर्मनी, बेलारस, फ्रांस, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, अमेरिका, मालदोवा एवं दक्षिण अफ्रीका आदि के प्रतिभागी उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंतर्गत मंजरीदासी, नरोत्तमदास, पद्यावलीदासी, मंजुलादासी, चंचल अक्षी, वृंदावनसुंदरी, ब्रजचंद्रिका, वृंदारानी, ऋषिकेश गंगा, विष्णुतत्वदास, कर्तामसी, धनिष्ठा, मनीकुंडला, ब्रजसुंदरी, श्यामाप्रेमी ने सांझी कला को सराहा।
सांझी ब्रज की महत्वपूर्ण कला
इस अवसर पर आचार्य शैलेन्द्रकृष्ण भट्ट ने कहा सांझी ब्रज की महत्वपूर्ण कला है। श्रीकृष्ण संस्कृति में रची-पगी इस परंपरा को आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साझा करने की जरूरत है। आचार्य सुमित गोस्वामी ने कहा सांझी कला देवालयी परंपरा में उपासना का अंग है।
कला के अंतर्राष्ट्रीय प्रचार-प्रसार की आवश्यकता
आचार्य विभुकृष्ण भट्ट ने कहा ज्यामितीय कला तथा अलंकारिक बेल-बूटों के संयोजन से सांझी का कला पक्ष उत्तरोत्तर समृद्ध हुआ है। इन्द्रद्युम्न स्वामी ने कहा वर्तमान में श्रीकृष्ण भक्ति से जुड़ी इस कला के अंतर्राष्ट्रीय प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। डा. सीमा मोरवाल ने ब्रज के लोक जगत में बनने वाली सांझी के संदर्भ में विस्तारपूर्वक जानकारी प्रदान की।
वृन्दावन शोध संस्थान के निदेशक अजय कुमार पांडेय ने सभी अतिथियों का उत्तरीय उढ़ाकर अभिनंदन करते हुए कहा ब्रज की कला परंपराओं के संरक्षण की दिशा में वृंदावन शोध संस्थान सतत प्रयत्नशील है। हमारा उद्देश्य है कि अधिक से अधिक लोग संस्कृति की सेवा हेतु आगे आयें।