यह कैसा स्वच्छता अभियान जो बन गया मजाक

इस योजना के तहत गांव में कई हजार शौचालयों का निर्माण कागजों में हुआ क्योंकि गांव में लोग अभी भी शौचालय का प्रयोग नहीं कर रहे हैं । ऐसा ही हाल गांव उमरी भैरमपुर खिचरी एवं,टिकरीया जमुनिहाई विकासखंड मानिकपुर का है। इस अभियान को सफल दिखाने के लिए गांवों को ओडिएफ घोषित कर दिया है परंतु इन गांवों में कई लोग आज भी शौच के लिए बाहर जाते हैं ।

Update:2019-11-25 19:03 IST

अनुज हनुमत

बुन्देलखण्ड: 2 अक्टूबर सरकार के लिए खास दिन रहा लेकिन यह खास गांधी जयंती के लिए नहीं था बल्कि सरकार के स्वच्छ भारत अभियान के 4 साल पूरे होने पर इसकी सफलता का मूल्यांकन के कारण है । देश को स्वच्छता की ओर बढ़ावा देने के लिए बनी इस योजना में हर घर में शौचालय होने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। शौच मुक्त भारत करने के लिए पैसा भी पानी की तरह बहाया जा रहा है।

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जिसके लिए जोर लगाकर लोगों की जेब से पैसा निकाला गया पर अभियान की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है । इस योजना के तहत गांव में कई हजार शौचालयों का निर्माण कागजों में हुआ क्योंकि गांव में लोग अभी भी शौचालय का प्रयोग नहीं कर रहे हैं । ऐसा ही हाल गांव उमरी भैरमपुर खिचरी एवं,टिकरीया जमुनिहाई विकासखंड मानिकपुर का है। इस अभियान को सफल दिखाने के लिए गांवों को ओडिएफ घोषित कर दिया है परंतु इन गांवों में कई लोग आज भी शौच के लिए बाहर जाते हैं ।

स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने के लिए मानिकपुर ब्लाक और पहाड़ी ब्लाक में लीपापोती खूब हुई है । दूसरा सबसे बड़ा कारण है शौचालय का प्रयोग करने में आता है पानी की कमी जहां एक तरफ पाठा पानी की किल्लत से जूझ रहा है । वही शौचालयो की सफाई मे अत्यधिक पानी लगता है जहा एक तरफ लोग पानी की पूर्ति के लिए कई किलो मीटर की दूरी तय करते हैं।

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एक बोतल पानी का इस्तेमाल ही शौच के लिए करेंगे ना कि शौचालय सफाई बनाने के लिए एक बाल्टी पानी बर्बाद करेंगे पानी की उपलब्धता जब तक लोगों को नहीं मिलेगी वह शौचालय में नहीं जाएंगे। बुंदेलखंड में इस अभियान की सफलता तो देखिए शौचालय बने हैं पर प्रयोग के नहीं क्योंकि अभी भी आधे अधुरे ही शौचालय निर्माण हुआ है तो कभी खराब सामान लगाने मे सचिव एवं प्रधान ने कोई कोर कसर नही छोडी है।

इसलिए ज्यादा दिन तक नहीं चल पाते हैं स्कूलों में शौचालय का निर्माण तो बहुत तेजी से हुआ है लेकिन इन शौचालयों की सफाई पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके कारण ही इनका प्रयोग नहीं हो रहा शौचालय तो बन गऐ हैं लेकिन उनकी सफाई भगवान भरोसे है सफाई पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है ।क्योंकि गंदे शौचालय में शौच करना खुले में शौच करने से ज्यादा खतरनाक है।

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भृस्टाचार की भेंट चढ़ रहा शौचालय निर्माण –

इस योजना की सबसे सुखद बात ये है कि ग्रामीण अंचलों में घर घर तक ये योजना तेजी से पहुंच रही है । लेकिन शायद यही तेजी शौचालय निर्माण में भृस्टाचार को जन्म दे रही है। अप्रत्यक्ष रूप से अधिकांश स्थानों पर प्रधानों और सचिवों द्वारा ही शौचालय निर्माण कराया जा रहा है जिस कारण खराब क्वालिटी का मसाला प्रयोग किया जा रहा है । शासन से लेकर जिलाप्रशासन और ब्लाक तक इस योजना को तय समयसीमा तक पूर्ण कराने हेतु सिर्फ तेजी के दिखावे के साथ दबाव ही नजर आ रहा है । यही दबाव निर्माण कार्य मे भृस्टाचार को जन्म दे रहा है ।

ओडीएफ के बावजूद खुले मे क्यों…..

स्वच्छ भारत मिशन बड़ी संख्या में गांवों को ओडीएफ घोषित करने के बावजूद खुले में शौच की आदत बरकरार है क्योंकि शौचालय तो बनवा दिए गये लेकिन शौचालय के महत्व के बारे मे नहीं बताया गया।

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ओडीएफ की जल्दबाजी……

ओडीएफ की अनिवार्य शर्त शौचालय का इस्तेमाल है. यानी जब तक किसी गांव के सभी घरों के सभी सदस्य शौचालय का इस्तेमाल नहीं करते, तब तक उस गांव को ओडीएफ घोषित नहीं किया जा सकता। लेकिन जल्दबाजी के चक्कर मे शौचमुक्त गांव का दिखावा किया जा रहा है।गावों को ओडीएफ घोषित करने मे जबरदस्त तेजी है।ओडीएफ घोषित करने के तौर-तरीकों पर सवालिया निशान लग रहा है।

पानी की जद्दोजहद के बीच ‘शौचालय’

जी हाँ एक तरफ शौचालय निर्माण को लेकर प्रशासन तेजी से लगा है और अधिकांश गांवो में निर्माण प्रक्रिया अपने आखिरी चरण में है । लेकिन बुन्देलखण्ड जो कि सूखे के लिए हमेशा से चर्चा में रहा है यहां शौचालय निर्माण होने के बाद लोग सिर्फ इसलिए प्रयोग नहीं कर रहे हैं क्योंकि पानी की समस्या है ।

इस समस्या के कारण सबसे ज्यादा दिक्कत पाठा क्षेत्र में हो रही है । यहां मारकुंडी , अमचूर नेरुआ , इटवां , डोडामाफी , ददरी , रुकमा ,रानीपुर ,कशेरुआ जैसे क्षेत्रों में पानी की समस्या के कारण शौचालय बनने के बाद भी अधिकांश ग्रामीण बाहर ही शौच के लिए जाते हैं । तकरीबन सैकड़ो गांव पानी की समस्या के कारण प्रभावित हैं। अशिक्षा के कारण खुले में शौच जाने के लिए अभिशप्त ग्रामीण

किसी भी योजना का आम लोग तभी फायदा उठा सकते हैं जब वह शिक्षित हों । शायद यही कारण है कि खुले में शौच जाने को लेकर ज्यादातर लोग सही मानते हैं ।जबकि ऐसा नही है । सरकार को यही तेजी और दबाव लोगो की शिक्षा की गुणवत्ता पर लगाना चाहिए था ।

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बुन्देलखण्ड क्षेत्र वैसे भी शिक्षा की दृष्टि से काफी पीछे है और इसका पाठा क्षेत्र तो काफी पीछे है । यहां रहने वाले आधे से ज्यादा आदिवासी जाति के लोग बड़ी मुश्किल से ही हाईस्कूल तक पढ़ने गए होंगे । ऐसे में जिस योजना का (शौचालय) का जागरूकता से सीधा ताल्लुक हो उसमे अशिक्षित लोगो के समूह से आप किंतनी आशा कर सकते हैं । शायद यही विडम्बना है कि सरकार को जिस क्षेत्र में शिक्षा की गुणवत्ता पर धन और बल खर्च करना चाहिए वहीं पूरा सरकारी सिस्टम शौचालय और आवास निर्माण में लगा है।

प्रधानमंत्री की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में एक स्वच्छ भारत मिशन के तहत युद्धस्तर पर गांवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया जा रहा लेकिन अनुपयोगी शौचालय, आंकड़ों की बाजीगरी और घोटाले कुछ और कहानी कह रहे हैं

ग्रामीणों के बयान

"जब हमें पीने के लिए एक किमी. से पानी लाना पड़ता है तो हम शौचालय के लिए एक बाल्टी पानी का प्रयोग क्यों करेगे । जो शौचालय बनाये गए हैं उनमें गुणवत्ता का प्रयोग नहीं किया गया है और सबसे बड़ी बात ये है कि अधिकांश में छत भी नही है "

-हेमनारायण द्विवेदी (निवासी- हेला गांव)

"शौचालय निर्माण में भारी घोटाला हुआ है ,सिर्फ कागजों में बनाये गए हैं । हमारे गांव में शौचालय का निर्माण हुआ ही नही है । योजना अच्छी थी लेकिन जिम्मेदारों ने ध्यान नही दिया"

-कल्लू पयासी, चमरौहा गांव

"प्रधानों और सचिवो द्वारा शौचालय निर्माण के नाम पर जमकर लूट की गई है । मैं शासन से मांग करता हु की इस पर कड़ी कार्यवाही की जाए"

-शंकर दयाल गर्ग, मानिकपुर

"मानिकपुर ब्लाक के अंतर्गत आने वाले गांवो में जिनकी आप बात कर रहे हैं उनकी सच्चाई का पता लगाने हेतु जांच टीम का गठन किया जॉयेगा । अगर किसी ने भी लापरवाही बरती होगी तो जरूर कार्यवाही की जाएगी"

- संगम लाल,उपजिलाधिकारी मानिकपुर तहसील

इस सम्बंध में जब ब्लाक प्रमुख और बीडीओ से बात की गई तो उन्होंने जांच की बात करते हुए मामले को टाल दिया

"आपके माध्यम से हमे जानकारी हुई है और इस सम्बंध में जांच टीम गठित की जाएगी । अगर मामला सही पाया गया और किसी की भी लापरवाही सामने आई तो कड़ी कार्यवाही की जाएगी"

- शेषमणि पांडेय,जिलाधिकारी चित्रकूट

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