उम्मीद के विपरीत भाजपा के लिए उपचुनाव
इस बार हुए 11 विधानसभा सीटों के चुनाव परिणाम ही क्यो न हों। भाजपा के लिए अपेक्षा के विपरीत मिले उपचुनाव के परिणामों की वजह जो भी हों पर इस सताधारी दल भाजपा के ढाई साल के कार्यकाल का मूल्यांकन ही कहा जाएगा।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: राजनीतिक इतिहास को देखा जाए तो जब भी यूपी में विधानसभा उपचुनाव हुए तो वह सत्ताधारी दल का एकतरफ दबदबा रहता था। परन्तु 2017 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व मेंं बनी यूपी की यह पहली सरकार है जिसमें सत्तासीन पार्टी के लिए उपचुनाव कोई खास उपलब्धि वाले नही रहे हैं। फिर चाहे वह पिछले साल तीन लोकसभा सीटों व एक विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के परिणाम हों अथवा इस बार हुए 11 विधानसभा सीटों के चुनाव परिणाम ही क्यो न हों। भाजपा के लिए अपेक्षा के विपरीत मिले उपचुनाव के परिणामों की वजह जो भी हों पर इस सताधारी दल भाजपा के ढाई साल के कार्यकाल का मूल्यांकन ही कहा जाएगा।
भाजपा सभी दलों की तुलना में दर्जनों रैलियां की
पिछले तीन महीनों से भाजपा उपचुनावों की तैयारी मे जुटी हुई थी। प्रत्याशी यचन से लेकर विधानसभा सीटों के लिए उसने चुनाव प्रभारी तक की तैनाती की थी। एक एक विधानसभा में दो दो प्रभारी मंत्री बनाए गए थे। उपचुनाव को लेकर पार्टी की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने अन्य सभी दलों की तुलना में दर्जनों रैलियां की, घर घर जाकर पार्टी का प्रचार किया।
भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने सभी सीटों प्रचार प्रसार और बैठकें भी की थीं। इतना ही नहीं, चुनाव वाले क्षेत्रों में मंत्रियों की भी ड्यूटी लगाई गई थी। इसके अलावा सांगठनिक नजरिए से डोर टू डोर कैंपेनिंग भी की जा रही थी। परन्तु पार्टी के दावे के अनुरूप् भाजपा को वह सफलता नहीं मिल सकी जिसकी उम्मीद की जा रही थी।
भाजपा एक रणनीति के तहत उपचुनावों में प्रचार प्रसार के दौरान राष्ट्रीय मुद्दों के इर्दगिर्द अपना चुनाव प्रचार करती रही।, उपचुनावों में कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने, मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति, राम मंदिर पर फैसला सुरक्षित होने, आजम खान के खिलाफ जिला प्रशासन की कार्रवाई और मतदान से ठीक पहले हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी की नृशंस हत्या के बीच लड़ा गया।
सूबे की जिन 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए। इनमें से 8 सीटों पर 2017 में भाजपा गठबन्धन ने कब्जा जमाया था|सपा-बसपा-अपना दल के पास एक-एक सीटें थीं। पर भाजपा न तो अपने पुराने नतीजे को दोहरा नही पाई और न अपने जनाधार को बढा सकी।
भाजपा को बडी चुनाती के संकेत
पिछले साल गोरखपुर और फूलपुर सीटों पर हुए उपचुनाव में सपा के हाथों मिली पराजय के बाद कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा सीटों के उपचुनाव में भी सत्तारूढ़ भाजपा को झटका लगा और इस बार उसने 2017 में जीती जबकि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी को उपचुनाव में कोई खास प्रयास न करने के बाद भी तीन सीटे मिली। पार्टी को मुस्लिम-यादव गठजोड़ का पूरा फायदा मिला। यह सीट सपा के गौरव रावत ने जीतकर पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को दीवाली का तोहफा दिया।
इन उपचुनाव की खास बात यह रही कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भले ही रामपुर छोडकर कही चुनाव प्रचार के लिए न गए हों बावजूद इसके समाजवादी पार्टी ने अपने खाते में तीन सीटे डालकर भविष्य में भाजपा को बडी चुनाती देने के संकेत दे दिए हैं।
इस उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी की उम्मीदों पर जरूर पानी फिर गया। पार्टी सुप्रीमों मायावती इस साल हुए लोकसभा चुनाव में मिली सफलता को लेकर बेहद संतुष्ट थी उन्हे लग रहा था कि जनता का झुकाव उनके दल की तरफ बढ रहा है। लेकिन चुनाव परिणाम उसकी भी अपेक्षा के अनुकूल नहीं रहे।
मायावती का फार्मूला पूरी तरह से असफल साबित
उम्मीद जताई जा रही थी कि सपा से गठबंधन तोड़ने के बाद मुस्लिम वोटबैंक बहुजन समाज पार्टी के साथ आ गया है। इसी लिए मायावती ने लोकसभा चुनाव के बाद पूरा फोकस दलित-मुस्लिम समीकरण पर रखा। पर उनका यह फार्मूला पूरी तरह से असफल साबित हुआ।
वर्ष 2007 में यूपी में बसपा की सरकार बनी थी, लेकिन 2012 में सत्ता छिनने के बाद से उसका जनाधार कम ही होता गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में तो बसपा का खाता तक नहीं खुल पाया था। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया और 10 सीटें जीतने में कामयाब रही, पर मायावती से चूक हो गयी। उन्होंने लोकसभा चुनाव के बाद ही सपा से किनारा कर लिया और उपचुनाव अपने दम पर ही लडने का फैसला किया। जिसका परिणाम उनके सामने है।
जबकि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी को उपचुनाव में कोई खास प्रयास न करने के बाद भी तीन सीटे मिली। पार्टी को मुस्लिम-यादव गठजोड़ का पूरा फायदा मिला।
दो साल में गंगोह में हुआ चौथा चुनाव
गंगोह में पिछले दो सालों में चौथी बार चुनाव हुआ। साल 2017 में भाजपा के प्रदीप चौधरी के विधायक चुनने के बाद यहां के मतदाताओं ने साल 2018 के लोकसभा उपचुनाव में एसपी-आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसम को संसद भेजा। इसके बाद साल 2019 के चुनाव में कैराना लोकसभा सीट के लिए चुनाव में गंगोह से विधायक प्रदीप चौबे भाजपा से चुनाव जीते। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में वह सहारनपुर से सांसद बन गए जिसके कारण यह सीट खाली हुई है। जिसके बाद हुए उपचुनाव में भाजपा के कीरत सिंह ने कांग्रेस के नोमान मसूद को चुनाव हराकर यह सीट भाजपा की झोली में फिर डाल दी।
वहीं इन चुनाव परिणामों के बारे में प्रवक्ता और ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने कहा कि भाजपा ने उपचुनाव में हारने के मिथक को इस चुनाव में पूरी तरह से तोड दिया है। श्रीकांत शर्मा ने कहा कि भाजपा हमेशा उपचुनाव हारती थी लेकिन इस कल्पित कथा को भाजपा ने समाप्त कर दिया है. यूपी की 11 सीटों के नतीज़ों पर पूछे गए सवाल को लेकर यूपी के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने कहा कि उपचुनाव में भाजपा का परफॉरमेन्स बहुत अच्छा रहा है।