राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ। हिंदुओं की आस्था के प्रतीक मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम का जीवन शांति, सद्भाव और न्याय का प्रतीक है। उनकी जीवन गाथा रामायण के रूप में संकलित हुई। अब यही ग्रंथ गंगा-जमुनी तहजीब की सुगंध बिखेर रहा है। रामपुर रजा लाइब्रेरी ने रामायण (वाल्मीकि) ग्रंथ को नये कलेवर के साथ तीन खण्डों में पेश किया है। इसकी शुरूआत ही बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम से हुई है। खास बात यह है कि मूल ग्रंथ के तीन पन्ने सोने की स्याही से लिखे गए हैं।
दरअसल संस्कृत में वाल्मीकि लिखित रामायण का सन 1715 में सुमेर चंद ने फारसी में अनुवाद किया था। तब इसका मकसद जनता के बीच कौमी एकता का संदेश पहुंचाना था। अब जब देश के नये वर्ग के युवाओं के बीच फारसी इतनी प्रचलित भाषा नहीं रह गई है, इस भाषा को पढने और समझने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। तब रामपुर रजा लाइब्रेरी ने इस ग्रंथ का हिंदी में अनुवाद करने का निर्णय लिया।
अनुवाद के बाद रामायण (वाल्मीकि) ग्रंथ तीन खण्डों में सचित्र प्रकाशित किया गया है। 1368 पेज के इस ग्रंथ में कुल 258 चित्र हैं, मूल ग्रंथ का फारसी से हिंदी में अनुवाद और संपादन शाह अब्दुस्सलाम और डा वकारूल सहन सिद्दीकी ने किया है। ग्रंथ की कीमत पांच हजार रूपये रखी गई है। दुनिया में इस तरह की यह इकलौती रामायण है।