Chandauli News: आदमियों का झुंड चर गया काशी वन्य जीव प्रभाग चंदौली के जंगल

Chandauli News: देवकी नंदन के ‘चंद्रकांता’ के नौगढ़ का हरा-भरा घना जंगल अब काफ़ी कुछ नंगा हो चुका है। जंगल में जानवरो को यहां चारा मुश्किल से नसीब होता है लेकिन आदमी इसी जंगल को तेजी से चर रहा है।

Update:2023-02-12 22:18 IST

File Photo of Chandauli Forest (Pic: Newstrack)  

Chandauli News: जंगली लकड़ी के ठेकेदार देवकी नंदन खत्री को आज से क़रीब सवा सौ बरस पहले पेड़ों के चक्कर में चकिया और नौगढ़ के जंगली जानवरो से भरे घने जंगलो में वर्षों भटकना पड़ा था। नौगढ़ के जंगलो से निकल कर देवकी नंदन खत्री का उपन्यास “चंद्रकांता” हिंदी साहित्य में मील का पत्थर साबित हुई। देवकी नंदन के ‘चंद्रकांता’ के नौगढ़ का हरा-भरा घना जंगल अब काफ़ी कुछ नंगा हो चुका है।जंगल में जानवरो को यहां चारा मुश्किल से नसीब होता है लेकिन आदमी इसी जंगल को तेजी से चर रहा है। 

कब्जाधारियों ने जंगल के बड़े भू-भाग पर किया कब्जा

नौगढ़ के जंगलों में वर्षो से वन विभाग की भूमि पर क़ब्ज़ा होता आ रहा है जो आज भी जारी है। शिकायत मिलने पर वन विभाग बेदखली की कार्रवाई करता है फिर गहरी नीद में डूब जाता है। बेदख़ली का मौका मुआयना कर देखा जा सकता है कि नौगढ़ के आस पास आज भी जंगल के किनारे और भीतर बड़े भू-भाग पर अवैध क़ब्ज़ा बना हुआ है। वन विभाग वन को पूरी तरह अतिक्रमण मुक्त नही करा पाया है। पेड़ों की कटाई कर जंगल को नंगा करने का काम जारी है। पर्यावरण की क़ीमत पर होने वाली मोटी कमाई में काफ़ी लोग शामिल है।

वन पर कैसे हो गया कब्जा

ग्रामीणों का कहना है कि किसी भी वन क्षेत्र में कब्जा करने में या वन को नष्ट होने में काफी समय लगता है। फिर वर्षो तक कब्जा जमाए रहने वाले लोगो से यकायक ज़मीन खाली कराना समझ से परे है। सवाल यह भी उठता है कि वन की भूमि को खाली कराना था तो इनको बसने ही क्यों दिया गया? फिर वन की रखवाली करने के लिए बीट रक्षक,फारेस्ट गार्ड,डिप्टी रेंजर, वन क्षेत्राधिकारी,एसडीओ से लेकर प्रभागीय वनाधिकारी व अन्य आला अधिकारियों की फौज तैनात है। इसके बावजूद कैसे हो जाता है वन क्षेत्र में कब्जा? विभाग के अधिकारी और कर्मचारी कहां रहते है? बरसो बाद वन विभाग एकाएक जागता है और बेदखली की कार्रवाई शुरु कर देता है।

वन विभाग की कारवाई का हथौड़ा आदिवासियों,वनवासियों और गरीबो पर तेजी से चल कर जब थक जाता है तो वह बाहर से आए दबंगों पर थोड़ा चल कर शांत हो जाता है।निर्धन आदिवासी-वनवासी को बेघर बना कर वन विभाग अपनी पीठ थपथपा लेता है तो बाहर से आए सम्पन्न और पहुँच वाले लोग कुछ दिनो बाद पुरानी जगह पर दोबारा क़ाबिज़ हो जाते है।

सवाल उठता है कि अवैध क़ब्ज़े और पेड़ों की कटाई से वन क्षेत्र में हुए वानस्पतिक और कटान से हुए नुकसान की भरपाई कौन करेगा? ग्रामीणों का कहना है कि अतिक्रमित भूमि के खाली होने के बाद नुकसान की भरपाई विभागीय कर्मचारियों व अधिकारियों से भी की जानी चाहिए। नहीं तो जंगल में क़ब्ज़ा करने फिर वन विभाग उनको बेदख़ल करता है,और फिर हरियाली के नाम पर पुनः पौधा लगाने, मिट्टी भरने का वन विभाग का धंधा-पानी शुरू हो जाता है।

वन क्षेत्र में हुए अतिक्रमण और क़ब्ज़े के बाबत काशी वन्य जीव प्रभाग चंदौली जिले के प्रभागीय वनाधिकारी दिनेश सिंह से बात हुई। श्री सिंह ने कहा कि काशी वन्य जीव प्रभाग चंदौली का सम्पूर्ण वन क्षेत्र 74हजार 9 हेक्टेयर भूमि में फैला हुआ है।जिसमें वर्षों से 5036 हेक्टेयर भूमि अतिक्रमण था।इनमें से 15 वर्षो के बीच करीब 1700 हेक्टेयर भूमि को खाली भी कराया गया है।

श्री सिंह ने कहा कि यह कब्जा आज की नहीं बल्कि पचासों साल से चला आ रहा है।पचास साल पुराना क़ब्ज़ा हटाना प्रशासन के लिए भी एक काम है फिर भी अवैध क़ब्ज़े को खाली कराया जा रहा है। क़ब्ज़ा पूरी तरह हटाने में थोड़ा समय तो लगेगा। यह पूछने पर कि क्या पचास साल पहले वन विभाग का वजूद था। तो पचास सालो तक विभाग के कर्मचारी और अफ़सर आँखें क्यों बंद किए रहे? उस समय क्यों नहीं कार्रवाई की गयी ?अगर कारवाई हुई होती तो आज ये नौबत नही आती।

श्री सिंह ने कहा कि पचास साल पहले नौगढ़ के जंगलो तक पहुँचना मुश्किल था। सड़के नही थी।जंगल घने थे।स्टाफ़ कम थे। ग्रामवासियों में जागरूकता की कमी थी। तब और अब में सरकारी कामकाज में बहुत पारदर्शिता आ गयी है साथ ही बदलाव भी आ गया है। आज आमजन अधिकारियों से सीधे बात करते है,शिकायत दर्ज कराते है।एसे में प्रशासन की ज़िम्मेदारी बनती है कि शहर हो या गाँव या वन, यहाँ होने वाले सभी गैरकानूनी काम करने वालों के ख़िलाफ़ सख़्त कारवाई करे,और प्रशासन उचित कारवाई कर रहा है।

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