अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश को कई जिलों के कान्सटेबिलो ने दी हाईकोर्ट में चुनौती

पुलिस विभाग में सिपाहियों की मनमाने तरीके से पारित किए जा रहे अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेशों को प्रदेश के विभिन्न जिलों में तैनात कान्सटेबिलो ने याचिका दायर कर चुनौती दी है। कहा गया है कि सेवानिवृत्ति के आदेश कानूनी प्रकिया का पालन किए वगैर और बिना सोच विचार किए मनमानी तरीके से पारित किया जा रहा है।

Update:2019-07-23 14:28 IST

प्रयागराज : पुलिस विभाग में सिपाहियों की मनमाने तरीके से पारित किए जा रहे अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेशों को प्रदेश के विभिन्न जिलों में तैनात कान्सटेबिलो ने याचिका दायर कर चुनौती दी है। कहा गया है कि सेवानिवृत्ति के आदेश कानूनी प्रकिया का पालन किए वगैर और बिना सोच विचार किए मनमानी तरीके से पारित किया जा रहा है। जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्र ने ऐसी कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद पुलिस विभाग व सरकार से 30 जुलाई तक जवाब मांगा है।

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वाराणसी में तैनात रहे महेन्द्र कुमार पाण्डेय व कई अन्य सिपाहियों की याचिका पर आदेश पारित कर कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करने के लिए 30 जुलाई की तिथि तय की है। ये याचिकाएं वाराणसी के अलावा गोरखपुर, आगरा, गाजियाबाद, कानपुर में तैनात कान्सटेबिलो ने दायर की है।

सिपाहियों की तरफ से बहस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम का तर्क था कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश व्यक्तिगत नाराजगी के आधार पर मनमानी ढंग से जिला के पुलिस कप्तान द्वारा पारित किया जा रहा है। कहा गया है कि इस प्रकार का आदेश पारित करने से पूर्व इस सम्बंध मे सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्णयों को दरकिनार कर दिया गया है।

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यहां तक कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति के सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गयी गाइडलाइन का भी पालन नहीं किया गया है। इसके तहत एक स्क्रीनिंग कमेटी होगी जो सेवानिवृत्ति किए जाने वाले कर्मचारी का उसकी सेवा से सम्बंधित सारा ब्यौरा जुटाएगी। कर्मचारी का सर्विस रिकार्ड देखा जाएगा। उसकी प्रतिकूल प्रविष्टि आदि पर ध्यान दिया जाएगा तथा कर्मचारी को अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर मिलेगा।

मगर इसके विपरीत पुलिस विभाग में बिना किसी जांच के मनमाने तरीके से सिपाहियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश दिया जा रहा है, जो गलत होने के साथ साथ गैरकानूनी है। अधिवक्ता विजय गौतम ने ऐसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश को रद्द करने की हाईकोर्ट से मांग की है तथा कहा है कि सिपाहियों को 60 वर्ष की आयु तक उन्हें सेवा में बने रहने दिया जाए। याचिका के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्णयों को आधार बनाया गया है तथा कहा गया है कि सारी कार्रवाई एकतरफा की जा रही है।

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