Sonbhadra: ग्लोबल वार्मिंग रोकने को कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण जरूरी, विशेषज्ञों ने जताई चिंता
यूपी में 90 प्रतिशत बिजली की आपूर्ति कोयले पर निर्भर है। महाराष्ट्र के बाद उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा बिजली की मांग है। उत्तर प्रदेश में कोयले पर निर्भरता बहुत ज्यादा है।
Sonbhadra News : वायुमंडल (Atmosphere) में कार्बन उत्सर्जन के चलते बढ़ते प्रदूषण (Pollution) और इसके कारण हीटवेव (Heatwave) तथा वैश्विक तापमान (Global Temperature) में होती बढ़ोतरी ने विशेषज्ञों को चिंतित कर दिया है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल यानी IPCC की हालिया असेसमेंट रिपोर्ट में भी इसको लेकर गंभीर चिंता जताई है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, आईपीसीसी के इतिहास में पहली बार जहां किसी रिपोर्ट में प्रौद्योगिकी नवोन्मेष (Technological Innovation) और मांग पक्षीय से संबंधित अध्ययन को शामिल किया गया है। वहीं, यूपी और महाराष्ट्र में बिजली की भारी मांग को देखते हुए, दोनों राज्यों के लिए इस रिपोर्ट को काफी महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। इसे लेकर क्लाइमेट ट्रेंड्स (climate trends) की तरफ से एक वेबीनार (webinar) का आयोजन किया गया।
सिंगरौली देश का तीसरा सबसे प्रदूषित क्षेत्र
वेबिनार में देश के तीसरे सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्र का दर्जा रखने वाले सोनभद्र सिंगरौली के पर्यावरण कार्यकर्ताओं के अलावा, देश के विभिन्न हिस्सों से विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने अपनी चिंता जाहिर करते हुए अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने पर जोर दिया। साथ ही, स्पष्ट किया कि वैश्विक तापमान डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक रोकने के लिए दुनिया को 2030 तक अपने कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीन हाउस गैसों (greenhouse gases) के उत्सर्जन को 45 प्रतिशत तक कम करना होगा। जिसमें सबसे अधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
कैसे अपने ऊर्जा क्षेत्र को कार्बन मुक्त कर सकते हैं?
वेबिनार में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (center for policy research) के एसोसिएट फेलो पार्थ भाटिया ने कहा, कि 'आईपीसीसी रिपोर्ट में भारत और खासकर हिंदी हृदयस्थल वाले राज्यों में ऊर्जा रूपांतरण से जुड़े प्रमुख सवाल उठाए गए हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि, हम कैसे अपने ऊर्जा क्षेत्र को कार्बन मुक्त कर सकते हैं। कहा, कि उत्सर्जन में जल्द कमी लाए जाने के लिए विकल्प मौजूद हैं जिस पर गंभीरता से पहल की जरूरत है।'
कोयले के इस्तेमाल पर प्रभावी नियंत्रण जरूरी
पार्थ भाटिया ने बताया कि वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये वर्ष 2050 तक कोयले के इस्तेमाल में 90 फीसदी, तेल के प्रयोग में 25 प्रतिशत और गैस के इस्तेमाल में 40 फीसद तक गिरावट लानी होगी। इसके अलावा वर्ष 2050 तक संपूर्ण बिजली का उत्पादन कार्बन रहित या फिर बहुत कम कार्बन वाले जीवाश्म ईंधन (fossil fuel) से करना होगा। मौजूदा स्थिति का जिक्र करते हुए कहा, कि प्रदूषणकारी तत्वों का उत्सर्जन सर्वोच्च स्तर पर है। दुनिया पहले ही 1.1 डिग्री तक गर्म हो चुकी है। समय रहते सभी क्षेत्रों में उत्सर्जन कम करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए, तो तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक रोकने में कामयाबी नहीं मिल पाएगी।
बिजली की मांग और बढ़ेगी
इस मौके पर आदित्य लोल्ला ने कहा, कि राजस्थान 14 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन करने लगा है। वहीं, उत्तर प्रदेश में बिजली की मांग भी आने वाले समय में बहुत तेजी से बढ़ने वाली है। कार्बन उत्सर्जन कम करते हुए उसे कैसे पूरा करेंगे, इस पर अभी से लगने की जरूरत है। अक्षय ऊर्जा एक किफायती विकल्प जरूर है, लेकिन इस पर पूरी तरह से निर्भरता रातों-रात नहीं हो सकती।'
झारखंड प्रदूषण नियंत्रित कर रहा
झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय में ऊर्जा अभियांत्रिकी विभाग के प्रोफेसर एसके समदर्शी ने कहा, कि देश का 27 प्रतिशत कोयला उत्पादन झारखंड में होता है। इस नाते यहां प्रदूषण भी अच्छा खासा है। लेकिन अच्छी बात यह है कि झारखंड अब कोल बेड मीथेन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह एक ऐसी प्रौद्योगिकी है जिससे ज्यादा प्रदूषण नहीं होता।
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 45% कम करना होगा
पर्यावरण वैज्ञानिक एवं संचारक डॉ. सीमा जावेद ने आईपीसीसी की ताजा रिपोर्ट का में जिक्र करते हुए बताया, कि 'रिपोर्ट यह बताती है कि ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक रोकने के लिए दुनिया को 2030 तक अपने कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 45 फीसद तक कम करना होगा। साथ ही कोयले पर आधारित बिजली को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ना होगा। उन्होंने कहा, कि कोविड-19 महामारी के दौरान इसमें कमी आई थी। मगर, अब फिर से वह पुराने स्तर पर पहुंच चुका है। जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बहुत सी ऐसी प्रौद्योगिकियों को अपनाना होगा जो अभी नवजात हैं।'
अक्षय ऊर्जा की तरफ तेजी से बढ़ना होगा
फिनलैंड की लहती यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ता मनीष राम ने कहा, कि 'कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए अक्षय ऊर्जा की तरफ तेजी से बढ़ना होगा। क्योंकि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विद्युतीकरण के माध्यम से ऊर्जा आपूर्ति में सोलर पीवी की महत्वपूर्ण और मजबूत भूमिका है।'
कोयले पर निर्भर है यूपी की 90 फीसद बिजली
यूपी में 90 प्रतिशत बिजली की आपूर्ति कोयले पर निर्भर है। महाराष्ट्र के बाद उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा बिजली की मांग है। उत्तर प्रदेश में कोयले पर निर्भरता बहुत ज्यादा है इसलिए यहां कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से समाप्त करने की बात नहीं सोची जा सकती। अगले 10 साल कोयले पर ही निर्भरता रहेगी क्योंकि अक्षय ऊर्जा का उत्पादन उतनी तेजी से बढ़ता नहीं दिखाई दे रहा। विशेषज्ञों का कहना था कि यूपी में सौर ऊर्जा में बढ़ोतरी को लेकर अभी से ध्यान देना होगा। खासकर प्रत्येक घर को सोलर पावर से कनेक्ट करने की दिशा में काम की जरूरत है।